दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) लगातार 3 बार सत्ता में आई। पहली बार साल 2013 में, दूसरी बार 2015 में और तीसरी बार 2020 में। 2015 और 2020 के चुनाव ऐसे रहे कि कांग्रेस का 38 फीसदी वोट बैंक ही साफ हो गया।साल 2025 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल खुद मानते हैं कि 70 विधानसभा सीटों में से 53 सीटें ही वे हासिल कर पाएंगे। पहले के चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने वाले अरविंद केजरीवाल अब इशारा कर रहे हैं कि उनका वोट शेयर घटा है।
AAP को कई सीटों पर डर लग रहा है। वजह यह है कि करीब 32 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां बेहद कड़ा मुकाबला है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का वोट बैंक एक है, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी अगर इन सीटों पर थोड़ा भी बेहतर प्रदर्शन करती है और कांग्रेस का भी वोट शेयर बढ़ता है तो AAP की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
दो बार दबदबा, इस बार डर क्यों?
साल 2015 में AAP ने कुल 67 सीटें जीती थीं। बीजेपी 3 सीटों पर सिमट गई थी। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 8 सीटों पर जीती तो आम आदमी पार्टी के पास 62 सीटें थीं। 2020 में आम आदमी पार्टी इन सीटों पर जीत तो गई थी लेकिन जीत का अंतर बेहद कम रहा।
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62 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का वोट शेयर बढ़ गया था। आम आदमी पार्टी का वोट शेयर करीब 32 सीटों पर गिर गया था, वहीं जीत का अंतर करीब 42 सीटों पर घट गया। बीजेपी का वोटर शेयर तेजी से बड़ा।
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली की 8 विधानसभा सीटों पर AAP का वोट शेयर घट गया। चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर पश्चिम जिले में सबसे ज्यादा वोट शेयर घटा। दक्षिण और पश्चिमी जिलों की 6-6 सीटों पर आम आदमी पार्टी का वोट शेयर कम हुआ।
बीजेपी का वोट शेयर करीब 10 प्रतिशत तक यहां बढ़ गया।उत्तर पश्चिम दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली के भी कुछ इलाकों में बीजेपी के वोट बढ़े। 23 सीटें ऐसी रहीं, जहां बीजेपी का वोट प्रतिशत 5 फीसदी तक बढ़ा।
कहां मजबूत रही बीजेपी?
बीजेपी सबसे मजबूत पटपड़गंज में रही, जहां इसका वोट प्रतिशत करीब 13.95 प्रतिशत तक बढ़ गया। मनीष सिसोदिया इस सीट से हारते-हारते बचे थे। किराड़ी विधानसभा में 13.35 प्रतिशत, तुगलकाबाद में 12.07 प्रतिशत और आदर्शन नगर में 12.02 प्रतिशत तक वोट बढ़े। विकासपुरी में 12.52 प्रतिशत तक वोट शेयर बढ़ गया। पटपड़गंज का हाल ऐसा रहा कि मनीष सिसोदिया को जंगपुरा से चुनाव लड़ना पड़ रहा है।
किन सीटों पर कमजोर हुई AAP?
करीब 24 सीटें ऐसी रहीं, जहां AAP के 10 हजार से ज्यादा वोटों में गिरावट आई। बिजवासन, आदर्श नगर, कस्तूरबा, पटपड़गंज, शालीमार बाग और छतरपुर जैसी सीटों में जीत-हार का अंतर 5 हजार से कम रहा। किराड़ी में 2015 के विधानसभा चुनावो में AAP 45 हजार वोटों से जीती थी लेकिन 2020 में जीत-हार का अंतर 4650 रहा।
कांग्रेस कहां मजबूत हो सकती है?
कांग्रेस की नजर पिछड़ा, अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक समुदाय पर है। दिल्ली को उम्मीद है कि कालाका जी, सीमापुरी, समयपुरा बादली, पड़पड़गंज और कस्तूरबा नगर में कुछ कमाल हो सकता है। कांग्रेस से जुड़े नेताओं की मानें तो नई दिल्ली तक की सीट पर वे कड़ी डक्कर दे सकते हैं।
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राजनीतिक विशेषज्ञों का दावा है कि मटिया महल, ओखला, जंगपुरा, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, सीलमपुर, नांगलोई जाट, सुल्तानपुर माजरा और बवाना जैसी सीटों पर कांग्रेस को ज्यादा उम्मीद है। इन सीटों पर कांग्रेस का वोट शेयर लगातार गिर रहा है लेकिन इन अगर यहां कांग्रेस जरा सी मजबूत हुई तो बीजेपी को फायदा हो सकता है। यहां कांग्रेस और AAP में असली लड़ाई है, इन सीटों पर अल्पसंख्यक वोटर निर्णायक भूमिका में हैं।
BJP उम्मीद में क्यों है?
बीजेपी ने इस बार अरविंद केजरीवाल को शीशमहल के मामले पर घेरा। कांग्रेस और बीजेपी की कथित आबकारी नीति को लेकर आलोचनाएं एक जैसी रहीं। पानी और बिजली के मुद्दे पर एक बड़ा वर्ग अरविंद केजरीवाल से नाराज है। शहरी मध्यम वर्ग के वोटर अरविंद केजरीवाल से बहुत खुश नहीं है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों तरफ से यह नैरेटिव सेट करने की कोशिश हो रही है कि इस बार अरविंद केजरीवाल कमजोर हुए हैं, उनके खिलाफ 10 साल की एंटी इनकंबेंसी है। अगर कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा तो बीजेपी को इसका फायदा हो सकता है।
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उत्तर पश्चिमी दिल्ली की कुछ सीटों पर लोकसभा चुनाव 2024 में जीत का अंतर 19 प्रतिशत से ज्यादा रहा। उत्तर और पश्चिम दिल्ली के संसदीय क्षेत्र वाले इलाकों में कुल 40 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें बीजेपी का वोट शेयर 10 फीसदी तक बढ़ गया है। ऐसा हो सकता है कि यहां बीजेपी अच्छा प्रदर्शन कर दे। बीजेपी उम्मीद में है कि 45 से ज्यादा सीटों पर 2020 की तुलना में ज्यादा वोट मिल सकती है।