बिहार में 1967 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी बहुमत से दूर हुई तो एक, दो नहीं, तीन-तीन बार सरकारें गठित हुईं। किसी की सरकार 13 दिन चली, किसी की 50 दिन। कभी जातीय समीकरण को लेकर बात उलझी, कभी शीर्ष नेतृत्व में चेहरे पर अनबन हुई। बिहार में कांग्रेस के कमजोर होने का खमियाजा जनता ने भुगता और मध्यावधि चुनाव कराए गए। साल 1969 में विधानसभा चुनाव हुए। 9 फरवरी 1969 को बिहार की 318 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ।

बिहार में हुए इस चुनाव ने कई बड़े नामों को मुख्यमंत्री बनने का मौका दे दिया। हरिहर सिंह का इंतजार पूरा हुआ, वह कांग्रेस पार्टी से थे। 116 दिनों तक सरकार चलाई लेकिन सहोयिगों ने समर्थन वापस लिया तो सरकार गिर गई। दूसरी बार भोला पासवान शास्त्री सीएम बने। 12 दिन बाद उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा।  

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एक चुनाव, कई मुख्यमंत्री

नतीजा यह हुआ कि 4 जुलाई 1969 से लेकर 16 फरवरी 1970 तक बिहार का कोई मुख्यमंत्री ही नहीं रहा। 227 दिनों तक, बिना सीएम के बिहार चला। दरोगा प्रसाद राय 309 दिनों के लिए सीएम बने। वह भी कांग्रेस के ही थे। उनकी विदाई हुई तो कर्पूरी ठाकुर को मौका मिला। 162 दिनों बाद उनकी भी सरकार गिरी। भोला पासवान शास्त्री के हाथों एक बार फिर सत्ता आई। वह 221 दिनों तक सीएम रहे। 

1969 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस के खाते में 118 सीटें आईं लेकिन बिहार को स्थाई मुख्यमंत्री नहीं बन। एक ही चुनाव में लगातार 5 मुख्यमंत्री बदले किसी का कार्यकाल 116 दिन का रहा, किसी का 12 दिन तो किसी ने 221 दिनों तक सरकार चलाई।

बिहार के इस चुनाव में त्रिकोणीय गठबंधन हुआ था। लोकतांत्रिक कांग्रेस दल, पजा सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी। इस गठबंधन ने 295 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 23 सीटें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को मिलीं थीं। जनादेश ऐसा बंटा हुआ आया कि किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका। एक-दो नहीं लगातार 5 सरकारें बनीं और गिरीं। बिहार की राजनीति में ऐसा हाल दूसरी बार हो रहा था। 

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जब हरिहर सिंह बने मुख्यमंत्री 

कांग्रेस पार्टी चुनाव में सबसे बड़ा दल बनकर उभरी। सरकार बनाने का न्योता भी राज्यपाल ने कांग्रेस को दिया। कांग्रेस ने 5 अन्य पार्टियों के सहयोग से सिर्फ 118 सीटें रहते हुए सरकार बना ली। बहुमत के लिए 160 सीटें अनिवार्य थीं। कांग्रेस इससे बहुत दूर थी। पहली सरकार बनाने में कई दिनों तक माथापच्ची चली। हरिहर सिंह का नाम तय हुआ। कांग्रेस ने जनता पार्टी, भारतीय क्रांति दल, बिहार प्रांत हुल झारखंड, शोषित दल, स्वतंत्र पार्टी और कुछ निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना ली। कांग्रेस के पास 118 सीटें थीं, जनता पार्टी के पास 14, क्रांति दल के पास 6 सीटें थीं। बिहार प्रांत हुल झारखंड के पास 5 सीटें, शोषित दल के पास 6 सीटें और स्वतंत्र पार्टी के पास 3 सीटें थीं। जनता पार्टी के मुखिया कमाख्या नारायण सिंह पर आरोप लगाकर शोषित दल ने अपना समर्थन वापस ले लिया। 26 फरवरी 1969 को सीएम पद की शपथ लेने वाले हरिहर सिंह की सिर्फ 116 दिनों बाद 22 जून 1969 को विदाई हो गई। उनकी सरकार गिर गई थी।

जब फिर भोला पासवान शास्त्री बने सीएम बने। 22 जून 1969 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 4 जुलाई 1969 को उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। लोकतांत्रिक कांग्रेस, विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाई थी। उनकी सरकार सिर्फ 12 दिनों तक सत्ता में रही। भोला पासवान ही विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, सीपीआई, जनसंघ, लोकतांत्रिक कांग्रेस दल और शोषित दल के समर्थन से वह बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। दिलचस्प बात यह है कि यह गठबंधन 12 दिन भी नहीं टिक पाया। 9वें दिन ही तीसरे संयुक्त विधायक दल मंत्लाय ने इस्तीफा दिया, जिसके बाद जन संघ ने समर्थन वापस ले लिया। जनसंघ का कहना था किसी भी दलबदलू को मंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए। कई विधायक दल बदलकर मंत्री बने थे। जनसंघ की बात कई दलों ने मानी और सरकार सिर्फ 12 दिनों में गिर गई। 

जब राज्य में लगा राष्ट्रपति शासन 

जनसंघ के इस फैसले का असर दूरगामी हुआ। 4 जुलाई 1969 से लेकर 16 फरवरी 1970 तक बिहार में 227 दिनों तक के लिए कोई सरकार नहीं रही। राष्ट्रपति शासन लागू था। अब दो विकल्प थे। या तो बिहार में फिर नए सिरे से चुनाव हों या आपसी सामंजस्य से समान विचारधारा वाले दल एक साथ आएं। एक तीसरी सरकार की राह तैयार हुई।

जब दरोगा प्रसाद राय के हाथ आई सत्ता

1969 में राष्ट्रपति शासन के दौरा कांग्रेस का दो हिस्सों में विभआजन हुआ। कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर)। 118 दलों वाली पुरानी कांग्रेस अब दो खंडों में बंट चुकी थी। कांग्रेस (ओ) के साथ 50 विधायक आए, कांग्रेस (आर) के साथ 60 विधायक। दरोगा प्रसाद राय, कांग्रेस (आर) से थे। उन्होंने छोटे दलों से सरकार बनाने के लिए बातचीत की। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, सीपीआई, हुल झारखंड, शोषित दल और भारतीय क्रांति दल की मदद से वह मुख्यमंत्री बन गए। उन्होंने मुंगेरीलाल आयोग का गठन किया, जिसने ओबीसी के लिए आरक्षण देने की पेशकश की। उनके मंत्रालय में पिछड़ी जातियों के मंत्रियों को तरजीह दी गई थी। करीब 10 महीने तक सरकार चली। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और शोषित दल ने इस सरकार से भी अपना समर्थन वापस ले लिया। 16 फरवरी 1970 को शपथ लेने वाले दरोगा प्रसाद राय की सरकार 309 दिनों बाद गिर गई। एक साल का भी कार्यकाल नहीं पूरा कर पाई।

जब जननायक कर्पूरी ठाकुर को मिली मुख्यमंत्री पद की कमान 

दरोगा प्रसाद राय की सरकार गिरने से पहले ही दरोगा प्रसाद राय के मुख्यमंत्री बनने की भूमिका तैयार हो चुकी थी। कई दलों के साथ वह संपर्क में थे। सरकार बनाने की पेशकश उन्होंने राज्यपाल के सामने कर दी। उनके इस मिशन में संयुक्त विधायक दलों ने साथ दिया। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जन संघ, कांग्रेस (ओ), जनता पार्टी, भारतीय क्रांति दल, स्वतंत्र पार्टी, झारखंड पार्टी, शोषित दल और हुल झारखंड के समर्थन ने कर्पूरी ठाकुर सत्ता में आ गए। वह 6 महीनों तक मुख्यमंत्री रहे।
 

कर्पूरी ठाकुर सत्ता में तो आ गए थे लेकिन यह गठबंधन बहुत बेमेल था। गठबंधन में शामिल दल, आपस में ही उलझ गए थे। समर्थन करने वाले कई छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया। यह गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन था, जिसकी वजह से कई विवाद हुए। 22 दिसंबर 1970 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले संयुक्त सोशलिस्ट के अगुवा कर्पूरी ठाकुर को सिर्फ 162 दिनों के भीतर अविश्वास प्रस्ताव से गुजरना पड़ा। 2 जून 1972 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।  

जब एक कार्यकाल में 5वीं बार बिहार में बदला मुख्यमंत्री 

कर्पूरी ठाकुर के इस्तीफे की राह एक बार फिर भोला प्रसाद पासवान तक रहे थे। वह भी सियासी जोड़तोड़ में शामिल थे। उन्होंने कांग्रेस (आर), शोषित दल, झारखंड पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, सीपीआई की मदद से सरकार बना ली। वह लोकतांत्रिक कांग्रेस के नेता थे। उनका साथ भी राजनीतिक पार्टियों रास नहीं आया। 2 जून 1971 को मुख्यमंत्री बनने वाले भोला प्रसाद पासवान की सरकार 221 दिनों बार 9 जनवरी 1972 को गिर गई। 

 

नारे जो चर्चा में रहे 

  • पिछड़ों को हिस्सेदारी, सामाजिक न्याय की गारंटी
    प्रसंग: कर्पूरी ठाकुर और बीपी मंडल जैसे नेताओं ने यह नारा दिया।
  • कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ
    प्रसंग: भारतीय क्रांति दल, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया और जनसंघ जैसे दलों ने अपने-अपने संदर्भ में इन नारों का इस्तेमाल किया था।

 

 

विधानसभा चुनाव 1969, एक नजर

  • कुल सीटें: 318
  • कुल वोट: 15,455,159    
  • वोट प्रतिशत: 52%
    किस पार्टी को कितनी सीटें मिलीं?
  • इंडियन नेशनल कांग्रेस (R): 118
  • भारतीय जनसंघ:    34
  • संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी: 52
  • कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया: 25
  • प्रजा सोशलिस्ट पार्टी: 18
  • लोकतांत्रिक कांग्रेस दल: 9
  • शोषित दल: 6
  • जनता पार्टी: 14
  • भारतीय क्रांति दल: 6
  • CPI (M): 3
  • स्वतंत्र पार्टी: 3
  • ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक:    1
    निर्दलीय: 24