1 दशक तक लगातार शासन करने के बाद दिल्ली से आम आदमी पार्टी (AAP) की विदाई हो गई है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सत्ता में 27 साल बाद वापसी की है। राजनीति के कुछ जानकारों का मानना है कि ढाई दशक से ज्यादा वक्त तक सत्ता के लिए तरसती रही बीजेपी के लिए राहें अरविंद केजरीवाल ने खुद तैयार की हैं। 

अरविंद केजरीवाल ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कई ऐसी मांगों का जिक्र किया था, जिस पर खुद-ब-खुद बीजेपी मुहर लगाती चली गई। बात चाहे महिलाओं को 2100 रुपये देने की हो, फ्री बस सेवा की हो खुद बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि कोई भी लोक कल्याणकारी योजनाएं बंद नहीं होंगी। उनके इस भाषण पर दिल्ली की जनता ने भरोसा कर लिया।

कैसे एक मांग ने पलटी बाजी?
दिल्ली में साल 2011 की जनसंख्या के मुताबिक करीब 3 करोड़ 38 लाख लोग रहते हैं। दिल्ली के कुल वोटरों की संख्या करीब 1.78 करोड़ है। इनमें से कर देने वाले मतदाताओं की संख्या केंद्रीय बजट 2025-26 पेश होने से पहले करीब 40 लाख थी। अरविंद केजरीवाल ने मांग की थी कि 10 लाख तक की सालाना आय को कर मुक्त कर दिया जाए।

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अरविंद केजरीवाल की इस मांग से ज्यादा ही केंद्रीय बजट में देने की कोशिश की गई। 1 फरवरी को बजट पेश हुआ, वोटिंग 5 फरवरी को हुई और वहीं चुनाव के नतीजे 8 फरवरी को आए। राजनीति के जानकारों का कहना है कि बजट ने भी दिल्ली में बीजेपी को बढ़त दिलाई। जिस मध्यम वर्ग को टैक्स से राहत मिली, उन्होंने बीजेपी का साथ दे दिया।

जीत-हार का अंतर है बेहद कम
  चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच जीत-हार का अंतर बेहद कम है। जिन लोगों ने BJP पर भरोसा किया, उनकी संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन AAP का काम बिगाड़ने के लिए काफी थी।

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बीजेपी का साल 2025 के विधानसभा चुनाव में वोट शेयर बढ़कर 45.56% पर पहुंचा। आम आदमी पार्टी का वोट शेयर घटकर 43.57% पर आ गया। बीजेपी को 43.23 लाख वोट मिले और आम आदमी पार्टी को 41.33 लाख वोट मिले।

बीजेपी ने आम आदमी पार्टी से सिर्फ 1.89 लाख वोट ही ज्यादा हासिल किया है। जीत का अंतर 2 लाख से भी कम है। करीब 2 फीसदी ज्यादा वोट पाकर BJP ने सत्ता हासिल कर ली और अपनी ही मांग के चक्कर में अरविंद केजरीवाल बुरी तरह से घिर गए। आम आदमी पार्टी को जहां 22 सीटें मिलीं, वहीं BJP ने 48 सीटें हासिल कीं।

AAP के हारने की अहम वजहें क्या हैं?
- मध्यम वर्ग का मोह अरविंद केजरीवाल से भंग हुआ।
- AAP की लोक कल्याणकारी नीतियों का लाभ एक बड़े हिस्से को नहीं मिला।
- सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई के बाद भी मध्यम वर्गीय परिवारों ने AAP को नहीं सराहा।
- लोगों का मानना था कि सरकारी स्कूल की तुलना में प्राइवेट स्कूल बेहतर होते हैं।
- 200 यूनिट फ्री बिजली का लाभ भी मध्यम वर्गीय परिवारों को नहीं मिल पाया, फ्रिज, वॉशिंग मशीन और AC पर खर्च ज्यादा है।
- BJP ने वादा किया कि जनकल्याणकारी योजनाएं जारी रहेंगी, अरविंद केजरीवाल की गारंटी की तुलना में मोदी की गारंटी पर लोगों को ज्यादा भरोसा हुआ।