पश्चिमी चंपारण जिले की चनपटिया विधानसभा सीट बेतिया लोकसभा क्षेत्र में आती है। पूर्वी चंपारण से सटी यह विधानसभा बेतिया, नौतन, सिकता, रक्सौल और सुगौली विधानसभा क्षेत्र से भी लगती है। चंपारण सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाने वाले राजकुमार शुक्ल चनपटिया के सतवरिया गांव में पैदा हुए थे। कोरोना काल में चनपटिया क्षेत्र स्टार्टअप जोन के रूप में उभरा और चर्चा बटोरी। बाद में इसी चनपटिया मॉडल को कई अन्य जगहों पर भी अपनाया गया। इस मॉडल के तहत प्रवासी कामगारों की स्किल के हिसाब से काम दिया गया।
चनपटिया में रोजगार और पलायन बड़ी समस्या है। चनपटिया में बंद पड़ी चीनी मिल का मुद्दा तो ऐसा है कि खुद विधायक उमाकांत सिंह इसे विधानसभा में उठा चुके हैं। 1998 से बंद इस मिल के बारे में सरकार ने जवाब दिया था कि यह केस हाई कोर्ट में चल रहा है। हाल ही में जब राहुल गांधी की यात्रा यहां पहुंची तक कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। चीनी मिल के अलावा चनपटिया रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों के ठहराव का मुद्दा भी पूरे क्षेत्र के लिए बेहद अहम है और इसके लिए कई बार प्रदर्शन हो चुके हैं। इस विधानसभा सीट पर ब्राह्मण और यादव मतदाताओं के अलावा भूमिहार, कोइरी और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक भूमिका में रहे हैं।
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मौजूदा समीकरण
चनपटिया विधानसभा में साल 2000 से हर बार बीजेपी ही जीतती आ रही है। हालांकि, एक रोचक बात यह है कि बीजेपी ने हर बार अपना उम्मीदवार भी बदला है। सिर्फ सतीश चंद्र दुबे इकलौते ऐसे विधायक रहे जो 2005 के दोनों चुनावों में बीजेपी के टिकट पर लड़े। उसके बाद एक बार चंद्र मोहन राय, एक बार प्रकाश राय और 2020 में उमाकांत सिंह विधायक बने। इसका फायदा भी बीजेपी को मिला है और हर बार वह जीतने में कामयाब रही।
2020 में विधायक बने उमाकांत सिंह क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। वह एक बार फिर दावेदारी भी पेश कर रहे हैं लेकिन बीजेपी का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो वह पिछले पांच चुनाव से हर बार अपना उम्मीदवार बदलती रही है। अगर यही फॉर्मूला इस बार भी चलता है तो उमाकांत सिंह को मायूस होना पड़ सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए मनीष कश्यप अब जन सुराज में शामिल हो चुके हैं और इस बात की पूरी संभावना है वह इस सीट से जन सुराज के उम्मीदवार होंगे।
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पिछली बार तीसरे नंबर पर रहे मनीष कश्यप यहां के चुनाव को रोचक बना सकते हैं। हालांकि, जन सुराज से ही राजकिशोर चौधरी भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। कांग्रेस की ओर से रवींद्र कुमार शर्मा भी टिकट के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव हारे अभिषेक रंजन एक बार फिर से चुनाव लड़ने के मूड में हैं और तैयारी भी कर रहे हैं। जेडीयू के कुछ नेता भी कोशिश में हैं कि यह सीट उनके खाते में आ जाए।
2020 में क्या हुआ?
2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर से अपने मौजूदा विधायक का टिकट काटा। 2015 में विधायक बने प्रकाश सिंह का टिकट काटकर बीजेपी ने उमाकांत सिंह को टिकट दिया। यह वही सीट थी जहां से यूट्यूबर मनीष कश्यप उर्फ त्रिपुरारी कुमार तिवारी ने भी अपनी किस्मत आजमाई। बीजेपी के उमाकांत सिंह के सामने कांग्रेस ने अभिषेक रंजन को टिकट दिया था।
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चुनाव के नतीजे आए तो बीजेपी का दांव सफल रहा। उमाकांत सिंह 83,828 वोट पाकर चुनाव जीत गए। वहीं, कांग्रेस के अभिषेक रंजन को 70,359 वोट मिले। मनीष कश्यप को सिर्फ 9239 वोट मिले और वह तीसरे नंबर पर रहे। RLSP के टिकट पर चुनाव लड़े संतोष कुमार गुप्ता को कुल 3526 वोट मिले थे।
विधायक का परिचय
2020 में विधायक का चुनाव लड़ने और विधायक बनने से काफी पहले से उमाकांत राजनीति में सक्रिय रहे हैं। हालांकि, तब वह मुखिया बनते रहे थे। वह 2001 से लगातार गोनौली पंचायत के मुखिया का चुनाव जीतते आ रहे थे और 2020 में विधायक बन गए। अपने क्षेत्र में खूब सक्रिय रहने वाले विधायक उमाकांत सिंह सोशल मीडिया पर अपने काम का ब्योरा भी देते रहते हैं। भूमिहार समुदाय से आने वाले उमाकांत सिंह मुखिया के समय से ही अपने काम की वजह से चर्चा में रहे हैं। जनता से उनके जुड़ाव का ही असर था कि बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया और वह पहली बार में ही विधायक बन गए।
10वीं तक पढ़े उमाकांत ने 2020 के अपने चुनावी हलफनामे में बताया था कि उनकी कुल संपत्ति 15 करोड़ से ज्यादा है और उनकी देनदारी लगभग 8 करोड़ रुपये की है। तब तक उनके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा भी नहीं था। चुनावी हलफनामे में दी गई जानकारी के मुताबिक, तब तक उनकी कमाई का जरिया खेती और कारोबार ही था। उनकी पत्नी शिक्षक हैं और वह भी खेती के कारोबार में शामिल हैं।
विधानसभा का इतिहास
पश्चिमी चंपारण जिला और बेतिया लोकसभा में आने वाली इस सीट पर 1957 में कांग्रेस की केतकी सिंह ने जीत हासिल की। फिर दो बार कांग्रेस के ही प्रमोद कुमार मिश्रा चुनाव जीते। वीर सिंह एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और एक बार जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। कुल तीन बार बीरबल शर्मा ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के टिकट पर चुनाव जीते। 1990 में जनता दल से विधायक बने कृष्ण कुमार मिश्र ने ही इस सीट पर साल 2000 में बीजेपी का खाता खोला था।
2005 में दोनों बार सतीश चंद्र दुबे यहां से चुनाव जीते लेकिन 2010 में उन्हें नरकटियागंज से उतारा गया। वहीं, 4 बार से रामनगर से चुनाव जीतते आ रहे चंद्र मोहन राय को 2010 में यहां से टिकट दिया गया। 2015 में प्रकाश राय को उतारा गया लेकिन वह बेहद मामूली अंतर से चुनाव जीत पाए। नतीजतन 2020 में उनकी जगह पर उमाकांत सिंह को टिकट दिया गया और अभी वही विधायक हैं।
1957-केतकी देवी- कांग्रेस
1962- प्रमोद कुमार मिश्र- कांग्रेस
1967-प्रमोद कुमार मिश्र- कांग्रेस
1969- वीर सिंह- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1972-उमेश प्रसाद वर्मा- कांग्रेस
1977-वीर सिंह- जनता पार्टी
1980-बीरबल शर्मा- CPI
1985-बीरबल शर्मा- CPI
1990- कृष्ण कुमार मिश्र- जेडीयू
1995-बीरबल शर्मा- CPI
2000-कृष्ण कुमार मिश्र- BJP
2005-सतीश चंद्र दुबे-BJP
2005-सतीश चंद्र दुबे-BJP
2010- चंद्र मोहन राय-BJP
2015-प्रकाश राय- BJP
2020-उमाकांत सिंह-BJP
