किसानों के हक में भूमि सुधार अधिनियम में संशोधन
वादा-
हम किसानों की भूमि पर अन्यायपूर्ण तरीके से लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाएंगे की धारा 33 और 81 में संशोधन हो, ताकि किसान अपनी भूमिका उपयोग अपनी इच्छा के अनुसार कर सकें।
4 फरवरी 2020 को दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि वह किसानों की जमीन पर लगे अन्याय पूर्ण केंद्रीय प्रतिबंधों को हटा देंगे। केंद्र सरकार पर दबाव बनाएंगे कि भूमि सुधार अधिनियम की धारा 33 और 81 में संशोधन किया जाएगा।
अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि वह चाहते हैं कि किसान अपनी जमीन का अपनी मर्जी के हिसाब से इस्तेमाल कर सके। उन्होंने आरोप लगाए थे कि मोदी सरकार किसानों को बड़े कॉरपोरेट्स के साथ अनुबंध करके खत्म कर देगी।
केंद्र ने अपने तर्क में क्या कहा था?
केंद्र सरकार ने कहा था कि किसानों को बिलों में पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की गई है। किसानों की भूमि की बिक्री, लीज या गिरवी रखना पूरी तरह से निषिद्ध है। किसानों की जमीन भी किसी भी रिकवरी से सुरक्षित है। निवारण के लिए स्पष्ट समयसीमा के साथ प्रभावी विवाद समाधान तंत्र प्रदान किया गया है।
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किन कानूनों के संशोधन का वादा था?
भूमि सुधार अधिनियम की धारा 33 (1) कहती है कि कोई भी भूमि धर, किसी धार्मिक या चैरिटेबल ट्रस्ट को छोड़कर किसी संपत्ति को बेच या उपहार में नहीं दे सकता है। इसके लिए शर्त यह है कि अगर भूमिधर के पास 8 एकड़ से कम जमीन बचती है तो उस पर यह प्रतिबंध लागू होगा।
इस नियम के पीछे का मकसद है कि कृषि योग्य जमीन का ऐसा विभाजन न हो, जो खेती के लिहाज से नुकसान न हो। धारा 33 कहती है कि केवल धार्मिक, धर्मार्थ संस्था को ही भूमि ट्रांसफर, या भूदान आंदोलन के प्रभारी शख्स को सौंपी जा सकती है।
धारा 81 कहती है, 'किसी जमीन के मालिक को कृषि, बागवानी या पशुपालन से जुड़े उद्देश्य के अलावा किसी और उद्देश्य के लिए जमीन का इस्तेमाल करने पर बेदखल कर दिया जाएगा। इसमें मछली और मुर्गी पालन भी शामिल है। ऐसी जमीन ग्राम सभा को दी जाएगी।'
इन कानूनों से परेशानियां क्या हैं?
ग्रामीण इलाकों में इन जमीनों के भूमिधर अपनी जमीन का इस्तेमाल घर या दूसरे व्यापारिक गतिविधियों के लिए नहीं कर सकते हैं। दिल्ली देहात के लोगों की मांग है कि यह धारा हटा ली जाए।
दिल्ली की पंचायतों का भी कहना है कि वे अपनी जमीन को अपनी ही जरूरतों के लिए बेच नहीं पाते हैं। अगर लोग अपनी ही जमीन पर कोई निर्माण करते हैं तो उनके खिालाफ केस दर्ज हो जाता है, जमीन छीन ली जाती है। दिल्ली में 357 से ज्यादा गांव है, उनमें से 308 को पहले ही अर्बन इलाका घोषित किया जा चुका है।
जैसे ही कोई क्षेत्र शहरी क्षेत्र के तौर पर घोषित होता है, वहां दिल्ली भूमि सुधार कानून लागू नहीं हो पाता है। जमीन दिल्ली नगर निगम अधिनियम 1957 के तहत आ जाती है। दिल्ली डेवलेपमेंट एक्ट 1954 भी लागू हो जाता है। लोगों का कहना है कि दिल्ली की जमीनों को अनाधिकृत तौर पर इस्तेमाल करने वाले लोगों की जमीन ग्रामसभा को देने के बजाय उन पर जुर्माना लगा देना चाहिए।
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वादे की हकीकत क्या है?
अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि यह सुधार केवल केंद्र सरकार कर सकती है। वह कई बार कह चुके हैं, 'दिल्ली विधानसभा ने इसके संबंध में साल 2020 में ही प्रस्ताव पारित किया था। इसे केंद्र के पास भेजा गया था। प्रधानमंत्री ने खुद वादा किया था कि सेक्शन 33 और 81 हटा दी जाएगी। इसके तहत कई मामले दर्ज हैं। दिल्ली के ग्रामीण इलाकों से आने वाले छोटे किसान बार-बार कोर्ट जाकर परेशान हो गए हैं। इन सभी मामलों को हटा लेना चाहिए। धारा 33 और 81 को हटा दिया जाए।'
अरविंद केजरीवाल यह वादा नहीं पूरा कर पाए हैं। इस वादे को पूरा करना उनके संवैधानिक अधिकारों के दायरे से बाहर भी है। उन्होंने 5 जनवरी को एक जनसभा में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि संशोधन कानून पर किए गए अपने वादे को लागू नहीं कर रहे हैं।
वादा भारतीय जनता पार्टी ने भी किया था कि केंद्र सरकार की मदद से धारा 33 और 81 हटा दी जाएगी लेकिन यह वादा पूरा नहीं हो सका।