चुनाव सही तरीके से हो सकें। निष्पक्ष हो सकें। इसके लिए 60 के दशक में आचार संहिता लाई गई। शुरुआत केरल के विधानसभा चुनाव से हुई। बाद में इसे लोकसभा चुनाव और फिर बाकी राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी लागू किया गया। चुनाव तारीखों का ऐलान होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है। नतीजे घोषित होने के बाद आचार संहिता को हटा लिया जाता है।


दिल्ली में 8 फरवरी तक आचार संहिता लागू रहेगी। 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे। 3 फरवरी को चुनाव आयोग ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया था कि चुनाव के दौरान आचार संहिता उल्लंघन की 7,499 शिकायतें दर्ज की गई थीं। इनमें से 7,467 का निपटारा किया जा चुका था।

क्या है आचार संहिता?

1960 के केरल विधानसभा चुनाव में पहली बार आचार संहिता लागू की गई थी। आचार संहिता में नियम-कायदे होते हैं, जिसका पालन राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों को करना होता है। 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार आचार संहिता लागू हुई थी। 1967 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव में इसे लागू किया गया।


1991 के लोकसभा चुनाव से पहले आचार संहिता में काफी बदलाव हुआ था। उसी साल तय हुआ कि चुनाव तारीखों की घोषणा के साथ ही आचार संहिता को लागू किया जाए। हालांकि, केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया। मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट से भी कोई फैसला नहीं हुआ। आखिरकार 16 अप्रैल 2001 को चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के बीच एक बैठक हुई, जिसमें आचार संहिता को चुनाव तारीखों की घोषणा के साथ ही लागू करने पर सहमति बनी।

 

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आचार संहिता के अहम नियम क्या होते हैं?

  • आचार संहिता लागू होते ही नई सरकारी योजनाओं का ऐलान नहीं किया जा सकता है। सभी तरह की परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास पर रोक लग जाती है।
  • मुख्यमंत्री, मंत्री या विधायक चुनाव प्रचार के लिए सरकारी गाड़ी, सरकारी विमान या सरकारी बंगले का इस्तेमाल नहीं कर सकता। कोई भी जुलूस या रैली करने से पहले अनुमति लेनी पड़ती है।
  • धर्म या जाति के आधार पर वोट नहीं मांग सकते। ऐसी कोई भी टिप्पणी या बयानबाजी नहीं कर सकते, जिससे दो धर्मों या समुदायों के बीच तनाव पैदा हो।
  • वोट डालने के लिए पार्टियां या उम्मीदवार वोटरों को डरा या धमका नहीं सकते, उन्हें लालच नहीं दे सकते या फर्जी वोट नहीं डलवा सकते। पोलिंग बूथ तक जाने के लिए उम्मीदवार या पार्टियां वोटरों को गाड़ियां भी नहीं दे सकतीं। कुल मिलाकर ऐसी कोई भी गतिविधि नहीं कर सकते, जिससे वोटर प्रभावित हों।
  • वोटिंग से 48 घंटे पहले प्रचार थम जाता है। वोटिंग के दिन शराब की दुकानें बंद रहती हैं। वोटिंग के दिन पोलिंग बूथ से 100 मीटर के दायरे में प्रचार नहीं किया जा सकता।

उल्लंघन पर क्या हो सकता है?

आचार संहिता को लागू करने और उसे ठीक तरीके से पालन करवाने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है। आचार संहिता का उल्ंलघन होने पर चुनाव आयोग उस राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार को नोटिस जारी कर जवाब मांग सकती है। उल्लंघन का नोटिस मिलने पर जवाब देना जरूरी होता है। अगर उस जवाब से आयोग संतुष्ट नहीं होता है तो फिर जवाब मांगा जाता है।


इसके अलावा चुनाव आयोग उस राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार के प्रचार करने पर भी रोक लगा सकती है। 2019 में चुनाव आयोग ने भोपाल से सांसद प्रज्ञा ठाकुर के प्रचार करने पर 72 घंटे तक रोक लगा दी थी।


आचार संहिता उल्लंघन पर चुनाव आयोग बहुत सख्त कार्रवाई इसलिए नहीं कर पाता, क्योंकि ये सिर्फ गाइडलाइंस हैं, कोई कानून नहीं है। 80 के दशक में चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था। प्रस्ताव था कि आचार संहिता के कुछ नियमों को कानून का हिस्सा बनाया जाए। हालांकि, ये प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।

 

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कितनी सजा हो सकती है?

हालांकि, आचार संहिता के कुछ प्रावधान भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं में भी लागू होते हैं। आचार संहिता के उल्लंघन से जुड़े मामलों में BNS की धारा 169, 170, 171, 172, 173, 174, 175, 176, 177, 353, 196 और 197 के तहत केस दर्ज होते हैं। इसके तहत जेल और जुर्माने दोनों की सजा का प्रावधान है।


इन धाराओं के तहत, वोटरों को डराने-धमकाने, रिश्वत देने या किसी भी तरह का लालच देने की कोशिश करने पर 1 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। चुनाव से जुड़ा कोई भी अवैध लेनदेन करने पर भी इतनी ही सजा होती है। 


इसके अलावा, अगर कोई भी उम्मीदवार या पार्टी की तरफ से कोई ऐसा बयान या टिप्पणी की जाती है या फिर किसी भी तरह से कुछ ऐसा काम किया जाता है जिस कारण दो समुदायों के बीच तनाव पैदा हो सकता है तो दोषी पाए जाने पर धारा 196 के तहत 5 साल की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है।