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132 दागी, 5 अरबपति, किसका पलड़ा भारी, दिल्ली चुनाव की ABCD

दिल्ली में 70 सीटों के लिए होने वाले विधानसभा में आदि से अंत तक सबकुछ जानने के लिए पढ़ें यह लेख।

Arvind Kejriwal and PM Modi । Photo Credit: PTI (Edited by Khabargaon)

अरविंद केजरीवाल और पीएम मोदी । Photo Credit: PTI (Edited by Khabargaon)

दिल्ली में 70 सीटों के लिए 5 फरवरी को विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने आचार संहिता लागू होने तक खूब जम के चुनाव प्रचार किया। 3 फरवरी को चुनाव प्रचार खत्म हो गया और साइलेंट पीरियड लागू हो गया।

 

कायदे से तो 4 फरवरी का दिन काफी शांत होना चाहिए था लेकिन ऐसा रहा नहीं। मंगलवार का दिन भी राजनीतिक रूप से काफी हलचल भरा रहा। जहां केजरीवाल एक तरफ मंदिर में दर्शन करते हुए और चुनाव आयोग के चक्कर काटते हुए नजर आए वहीं पीएम मोदी ने सदन में केजरीवाल को घेरने की कोशिश की।

 

ऐसे में खबरगांव को आपको दिल्ली चुनाव के बारे में विस्तार से बता रहा है कि आखिरकार क्या स्थितियां हैं?

इंडिया ब्लॉक आमने-सामने

दिल्ली चुनाव में इंडिया ब्लॉक आमने-सामने है। जहां पर लोकसभा चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था वहीं विधानसभा चुनाव में दोनों अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं और न सिर्फ अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं बल्कि दोनों एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी भी कर रहे हैं।

 

लेकिन दिल्ली के चुनाव में इंडिया ब्लॉक से सिर्फ आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ही नहीं लड़ रहे हैं बल्कि तीन और पार्टियां भी मैदान में हैं। ये पार्टियां हैं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- मार्कसिस्ट (CPM) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- मार्कसिस्ट लेनेनिस्ट (CPI-ML)।

 

CPI 6 सीटों पर CPM और CPI-ML 2-2 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 

 

इसी तरह से एनडीए गठबंधन की भी कई पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। एनडीए में एलजेपी और जेडीयू एक साथ चुनाव लड़ रही हैं जबकि महाराष्ट्र की अजित पवार की एनसीपी अलग चुनाव लड़ रही है।

 

बीजेपी ने एलजेपी को देवली तो जेडीयू को बुराड़ी सीट दी है जबकि एनसीपी अकेले 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं महाराष्ट्र के ही एकनाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना ने बीजेपी को समर्थन दिया है।

 

इसके अलावा बसपा कुल 70 सीटों पर तो एआईएमआईएम कुल 12 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

 

यह भी पढ़ेंः चुनाव के साइलेंट पीरियड में क्या एक्शन ले सकता है प्रशासन?

कितने अरबपति कैंडीडेट

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली चुनाव में 5 कैंडीडेट ऐसे भी हैं जिनके पास अरबों की संपत्ति यानी कि 100 करोड़ या उससे ज्यादा की संपत्ति है। इन कैंडीडेट्स में 3 बीजेपी के जबकि एक-एक कैंडीडेट आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के हैं।

 

इसके अलावा तीन उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य बताई है जबकि बीजेपी के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 22.90 करोड़ रुपये है।

कितनी महिला उम्मीदावार

कुल कैंडीडेट्स की संख्या 699 है जिसमें से 96 महिलाएं हैं जो कि कुल कैंडीडेट्स का 14 फीसदी है।  इसके अलावा करीब 28 प्रतिशत यानी कि 196 कैंडीडेट्स की उम्र 25 से 40 साल, 15 प्रतिशत यानी कि 106 कैंडीडेट्स की उम्र 61 से 80 साल और तीन उम्मीदवारों की उम्र 80 साल से ज्यादा है। यानी कि दिल्ली विधानसभा में ज्यादातर वोटर्स युवा हैं।

 

उम्मीदवारों के एजुकेशन की बात करें तो 46 प्रतिशत ने अपनी एजुकेशन 5वीं से 12वीं के बीच घोषित की है, 18 उम्मीदवारों ने खुद को डिप्लोमाधारक बताया है, 6 ने साक्षर तो 29 ने असाक्षर घोषित किया है।

कितनों पर आपराधिक आरोप

दिल्ली विधानसभा चुनाव में सभी उम्मीदवारों के हलफनामे की जांच करके बनाई गई रिपोर्ट के मुताबिक कुल 699 कैंडीडेट्स में से 19 फीसदी यानी कि 132 कैंडीडेट आपराधिक छवि के हैं। इनमें से 81 पर तो हत्या, किडनैपिंग, बलात्कार जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं।

 

वहीं 13 महिला उम्मीदवार भी अपराधों की आरोपी हैं।

 

यह भी पढे़ंः हाथ की सफाई, बुखार और शीशमहल.., संसद में क्या-क्या बोले PM मोदी?

18 प्रतिशत स्विंग वोटर्स कर सकते हैं खेल

स्विंग वोटर्स वे वोटर्स होते हैं जो किसी भी पार्टी से जुड़े हुए नहीं होते हैं बल्कि अपने फायदे-नुकसान के हिसाब से पार्टी बदलते रहते हैं। माना जाता है कि दिल्ली में ऐसे वोटर्स की संख्या 18 प्रतिशत है। ये वोटर्स चुनाव जीतने में काफी बड़ी भूमिका निभाते हैं। सारी ही पार्टियां इन्हीं वोटर्स को अपनी तरफ खींचने में लगी हुई हैं।

 

पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों को देखें तो स्थिति कुछ ऐसी रही है कि लोकसभा में बीजेपी को तो विधानसभा में आम आदमी पार्टी को जीत मिलती रही है।

AAP के आने से बदली दिल्ली की राजनीति

साल 2013 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी के आने के बाद से ही दिल्ली की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिला। 2013 में आम आदमी पार्टी को 29 प्रतिशत वोट मिले और 28 सीटों पर जीत मिली।

 

खास बात यह थी कि 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से करीब 26 हजार वोटों से हरा दिया। केजरीवाल को 53.8% वोट मिले, जबकि तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सिर्फ 22.4% वोट मिले।

घटती गई कांग्रेस

आम आदमी पार्टी के आने के बाद सबसे ज्यादा कांग्रेस पार्टी का नुकसान हुआ। 1998 से 2013 तक 15 सालों तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस साल 2015 में अपना खाता तक नहीं खोल पाई। यही नहीं उसका वोट प्रतिशत घटकर 9.65 प्रतिशत रह गया। जबकि 2013 में सिर्फ दो साल पहले हुए चुनाव में कांग्रेस को 24 प्रतिशत वोट मिले थे. इसके बाद 2020 में उसकी स्थिति और ज्यादा खराब हो गई जब उसका वोट प्रतिशत घटकर सिर्फ 4.26 प्रतिशत ही रह गया और पार्टी फिर से अपना खाता नहीं खोल पाई।

12 रिजर्व सीटें खास

इस चुनाव में 12 रिजर्व सीटें रिजर्व हैं। इन सीटों पर इस बार जीत दर्ज करने के लिए बीजेपी काफी कोशिश कर रही है। हालांकि, इन सीटों पर उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। 

 

बीजेपी दलित समुदाय के लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए अपनी पार्टी के बड़े नेताओं को भेजा साथ ही स्थानीय नेताओं के जरिए भी उन्हें अपनी तरफ खींचने की कोशिश की।

मुस्लिम बाहुल्य सीटें

ऐसे ही दिल्ली में चांदनी चौक, सीलमपुर, बल्लीमारान, बाबरपुर इत्यादि ऐसी 12 सीटें हैं जिनके बारे में माना जाता है कि वे मुस्लिम बाहुल्य सीटें हैं। कांग्रेस ने इन सीटों पर जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया है। इसी वजह से राहुल गांधी ने अपनी चुनावी रैली की शुरुआत सीलमपुर से की थी।

 

अब इन सीटों पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है जिसे कांग्रेस फिर से उससे छीनना चाहती है।


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