दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत से सत्ता में 27 साल बाद आई है। दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा जीते हुए विधायकों से रविवार शाम मुलाकात करेंगे, बधाई देंगे और आगे की रणनीति पर मंथन करेंगे। गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ही तय करेंगे कि दिल्ली में सीएम का ताज किसे मिलेगा।

ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले 10 दिनों में यह तय हो जाएगा कि दिल्ली बीजेपी की सत्ता किसे मिलेगी। सीएम पद की रेस में कई नाम आगे चल रहे हैं, जिसमें प्रवेश सिंह वर्मा, विजेंद्र गुप्ता, सतीष उपाध्याय, आशीष सूद और जितेंद्र महाजन जैसे नामों की चर्चा है। कुछ लोग मनोज तिवारी के नाम की भी चर्चा कर रहे हैं। 

बीजेपी ने आम आदमी पार्टी (AAP) को तो दिल्ली की सत्ता से उखाड़ फेंका है लेकिन क्या आपको पता है कि दिल्ली में 27 साल पहले कुछ ऐसा हुआ था कि एक ही कार्यकाल में बीजेपी ने 3 मुख्यमंत्री बदल दिए थे। वजह यह थी कि पार्टी आंतरिक कलह से बुरी तरह से जूझ रही थी। प्रवेश सिंह वर्मा के पिता साहिब सिंह वर्मा, मदन लाल खुराना और सुषमा स्वराज महज 5 साल के कार्यकाल में दिल्ली में बीजेपी ने तीन मुख्यमंत्री चुन लिए। साहिब सिंह वर्मा और मदन लाल खुराना के बीच अनबन जग जाहिर थी। दोनों एक-दूसरे से चिढ़ते थे, दोनों की लड़ाई में बाजी सुषमा स्वराज ने मार ली थी।

आइए जानते हैं कि दिल्ली के 3 मुख्यमंत्रियों के बनने का किस्सा क्या है?

मदन लाल खुराना: दशकों के संघर्ष के बाद दिल्ली को अपनी विधानसभा मिली। अलग विधानसभा का आंदोलन छेड़ बैठे बीजेपी नेता मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने। 2 दिसंबर 1993 से लेकर 26 फरवरी 1996 तक वह सीएम रहे। 2 साल 86 दिनों का यह कार्यकाल हंगामे की भेंट चढ़ गया। उनके करीबी साहिब सिंह वर्मा ने उनकी इतनी चुनौतियां बढ़ाई कि इस्तीफा तक देना पड़ा। जैसे आज अरविंद केजरीवाल बात-बात पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर देते हैं, कुछ वैसा ही अंदाज मदन लाल खुराना का था।

बीजेपी के अध्यक्ष सुब्रमण्यण स्वामी ने उन्हीं पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाए कि उनके हवाला कारोबारी सुरेंद्र जैन के साथ संबंध है। इसमें उनका भी नाम आया। एक तरफ ऐसे संगीन आरोप, दूसरी तरफ साहिब सिंह वर्मा पार्टी में उनके खिलाफ फील्डिंग करते रहे। इससे बचने के लिए मजबूरन उन्होंने इस्तीफा दे दिया। 1997 तक वह इस केस केस से तो बरी हो गए लेकिन सत्ता गंवानी पड़ी। 

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साहिब सिंह वर्मा: साहिब सिंह वर्मा को मदन लाल खुराना पसंद नहीं करते थे। वजह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता थी। बीजेपी में ही दो फाड़ हो गया था। तब आज की तरह बीजेपी के पास ऐसा केंद्रीय नेतृत्व नहीं था कि हंगामे चुप्पी में बदल दिए जाएं। साहिब सिंह वर्मा ने पार्टी में दबदबा दिखाया। 26 फरवरी 1996 को ही वह दिल्ली के चौथे मुख्यमंत्री बने। 12 अक्तूबर 1998 तक उनका कार्यकाल चला। उन्हें भी 2 साल 228 दिनों बाद इस्तीफा देना पड़ा।

इस्तीफे की वजह थी कि मदन लाल खुराना उन्हें नापसंद करते थे। दोनों की सियासी लड़ाई इतनी बढ़ गई थी कि उनका पद पर बने रहना बेहद मुश्किल हो गया था। वह खुलकर विरोध करने लगे थे। साहिब सिंह वर्मा जाट चेहरे थे। उन्हें मुख्यमंत्री न बनाने पर मदन लाल खुराना अड़ गए थे। साहिब सिंह वर्मा जिन विधायकों के साथ काम कर रहे थे, वे सभी मदन लाल खुराना कैंप के थे। वह कैबिनेट बैठकों में भी विरोध कर जाते। साहिब सिंह वर्मा को भी लगातार बढ़ती तकरारों की वजह से इस्तीफा देना पड़ा। 

सुषमा स्वराज: सुषमा स्वराज का मुख्यमंत्री बनना भी चौंकाने वाला रहा था। वह हरियाणा की कैबिनेट मंत्री रही थीं, केंद्रीय नेतृत्व में उनका रुझान था। जब मदन लाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा के बीच सियासी अनबन बढ़ी तो सुषमा स्वराज के नाम पर ही दोनों नेताओं में सहमति बनी। 12 अक्तूबर 1998 को उन्होंने शपथ ली। 3 दिसंबर 1998 तक महज 52 दिनों का कार्यकाल रहा। इसके बाद दिल्ली में शीला दीक्षित युग की शुरुआत हुई। सुषमा स्वराज का मुख्यमंत्री बनना तो राजनीतिक दिग्गजों का समझौता ही रहा।

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साहिब सिंह वर्मा ने साफ कह दिया था कि मदन लाल खुराना सीएम नहीं होंगे, ऐसे में सुषमा स्वराज ने ही बाजी जीत ली। बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्रियों के रार ने बीजेपी की ऐसी विदाई की 27 साल जीत के लिए तरस गई। जिस बीजेपी के पास  1993 के चुनावों में 49 सीटें थीं, साल 1998 के विधानसभा चुनाव में महज 15 सीटें रह गईं। बीजेपी सत्ता से दूर हो गई और दिल्ली में शीला दीक्षित के युग की शुरुआत हो गई। 

अब चौथे सीएम से उम्मीद क्या हैं?
दिल्ली को चौथा मुख्यमंत्री मिलने वाला है। नाम कई हैं, सहमति किसी एक पर नहीं है। प्रवेश सिंह वर्मा से लेकर सतीश उपाध्याय तक के नाम की चर्चा है। सीएम रेस में प्रवेश सिंह वर्मा, विजेंद्र गुप्ता, सतीष उपाध्याय, आशीष सूद और जितेंद्र महाजन जैसे नेताओं का नाम शामिल है। वीरेंद्र सचदेवा और मनोज तिवारी जैसे नामों की भी चर्चा है। ये वही नेता हैं जिनकी अनबन कई बार सार्वजनिक मंचों पर दिखी है। ऐसे में अगर किसी एक को भी सीएम पद मिला तो दूसरों की आपत्तियां सामने आ सकती हैं। बीजेपी ने सरकार बना भी ली तो सबसे बड़ी चुनौती ये है कि कैसे आंतरिक कलह को संभाला जाए और 5 साल सत्ता चलाई जाए।