गया बिहार का पौराणिक शहर है। यह विधानसभा, गया जिले का मुख्यालय भी है। गया में कुल 10 विधानसभाएं आती हैं, जिनमें सबसे विकसित विधानसभाओं में इसका नाम शुमार है। बिहार का यह शहर अपने अतीत के लिए देशभर में मशहूर है। हिंदू हों, जैन हों, बौद्ध या सिख हों, हर धर्म के लोग यहां आते हैं। यहां के विष्णुपाद मंदिर की ख्याति पूरे देशभर में है। यहां लाखों की संख्या में हर साल विदेशी पर्यटक आते हैं। गया का जिक्र रामायण से लेकर महाभारत और बाद के पुराणों में भी मिलता है।
गया के तीनों तरफ पहाड़ जिन्हें रामशिला, प्रेत शिला और ब्रह्मयोनि के नाम से लोग जानते हैं। गया के पूरब में फल्गू नदी बहती है। गया 4,976 वर्ग किलोमीटर में फैला है, यहां की साक्षरता दर 52 फीसदी है। यहां 2 नगर निगम, 24 ब्लॉक और 2886 गांव हैं। गया टाउन, इसी जिले की मुख्य विधानसभा है, जहां दशकों से भारतीय जनता पार्टी के विधायक प्रेम कुमार चुने जा रहे हैं। यह शहर बिहार की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है। यहां विदेशी पर्यटक लाखों की संख्या में आते हैं। यहां इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी है। रेल और सड़क कनेक्टिविटी भी बेहतर है।
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विधानसभा का परिचय
गया में कुल वोटरों की संख्या 275184 है। पुरुष मतदाताओं की संख्या 143364 है, वहीं 131816 महिला मतदाता हैं। 4 ट्रांसजेंडर मतदाता भी हैं। गया टाउन में कम वोटिंग हमेशा से एक चुनौती रही है। 2020 के चुनाव में भी यहां सिर्फ 52 फीसदी वोटिंग हुई थी। यहां करीब 9.38 फीसदी मतदाता अनुसूचित जाति से हैं। 20 फीसदी आबादी अल्पसंख्यक है। यहां दशकों से बीजेपी कायम है। कांग्रेस का भी दबदबा रहा है। जनसंघ और जनता पार्टी के भी प्रत्याशी यहां से चुने गए हैं।
यहां एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। कुछ छोटे उद्योग भी हैं, जिसकी वजह से लोगों को रोजगार मिलता है। पर्यटन शहर होने की वजह से सर्विस सेक्टर में भी यहां लोगों को रोजगार मिला है। यह शहर अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए मशहूर है। यहां छोटे-छोटे उद्योग भी खूब फल-फूल रहे हैं। स्थानीय स्तर पर अगरबत्ती, पारंपरिक मिठाइयां, पत्थर की नक्काशी, हथकरघा और पावरलूम कपड़े, गारमेंट्स और प्लास्टिक के सामान जैसे उत्पाद खूब बिकते हैं।
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मुद्दे क्या हैं?
गया टाउन में जाम एक बड़ी समस्या है। हर दिन हजारों की संख्या में लोग यहां आते हैं। सड़क पर अतिक्रमण की समस्या आम है। यहां प्रदूषण भी बड़ा मुद्दा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में पर्याप्त न अवसर होने की वजह से यां से लोग पलायन भी करते हैं। स्मार्ट सिटी परियोजना की प्रगति बेहद धीमी है।
विधायक का परिचय
गया टाउन से बीते 30 साल के एक ही विधायक हैं। उनका नाम प्रेम कुमार है। किसी भी पार्टी की लहर हो, कोई भी मुख्यमंत्री रहा हो, केंद्र में किसी की भी सरकार रही हो, प्रेम कुमार की सत्ता हिली ही नहीं। वह साल 1990 से ही यहां के विधायक हैं, राज्य सरकार में कई अहम पद उनके पास रह चुके हैं। नीतीश कुमार सरकार में भी वह मंत्री हैं और भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं में उनका नाम शुमार है।
प्रेम कुमार, बिहार बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार हैं। वह बिहार विधानसभा में 8 चुनाव जीतकर पहुंच चुके हैं। गया टाउन उनकी कर्मभूमी है। उन्होंने मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी की है। साल 2015 में हुए चुनावों के बाद वह बिहार विधानसभा में नेता विपक्ष चुने गए थे। वह अति पिछड़े वर्ग से आते हैं। वह कहार समुदाय से आते हैं। बिहार में इस समुदाय को 'चंद्रवंशी' भी कहा जाता है। उन्होंने अपनी कुल संपत्ति 1 करोड़ से ज्यादा घोषित की है। 9 लाख रुपये का कर्ज भी है।
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2025 में क्या समीकरण बन रहे हैं?
गया टाउन विधानसभा बीजेपी का गढ़ है। प्रेम कुमार बड़े अंतर से चुनाव में जीत दर्ज करते रहे हैं। एक बार फिर यह सीट एनडीए के सीट बंटवारे में बीजेपी के खाते नजर आ रही है। कांग्रेस हो या आरजेडी यहां इंडिया गठबंधन की पार्टियां कमजोर ही साबित हुईं हैं।
2020 का चुनाव
प्रेम कुमार हमेशा इकतरफा जीतते हैं। साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें कुल 66932 वोट पड़े थे। उन्होंने कांग्रेस के अखौरी ओंकार नाथ को हराया था। उन्हें कुल 55034 वोट पड़े थे। नोटा भी इस सीट से 1476 वोट पड़े थे। जीत-हार का अंतर 11898 था। साल 2020 में इस विधानसभा सीट पर कुल 49.73 फीसीद वोटिंग हुई थी। 2015 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की प्रिया रंजन को हराया था।
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विधानसभा सीट का इतिहास
यह विधानसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी। केशव प्रसाद पहली बार यहां से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे। 1957 में यहां से लतीफुर रहमान विधायक चुने गए। 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी श्याम बरथवार चुने गए। जनसंघ को पहली बार 1967 में जीत मिली। 1969 में भी यह सीट जनसंघ के खाते में गई। दोनों बार गोपाल मिश्रा यहां से चुने गए। देखिए, इस सीट से अब तक कौन-कौन विधायक चुने जा चुके हैं-
- 1952 विधानसभा चुनाव, केशव प्रसाद, कांग्रेस
- 1957 विधानसभा चुनाव, लतीफुर रहमान, कांग्रेस
- 1962 विधानसभा चुनाव, श्याम बर्थवार, निर्दलीय
- 1967 विधानसभा चुनाव, गोपाल मिश्रा, जनसंघ
- 1969 विधानसभा चुनाव, गोपाल मिश्रा, जनसंघ
- 1972 विधानसभा चुनाव, युगल किशोर प्रसाद, कांग्रेस
- 1977 विधानसभा चुनाव, सुषिला सहाय, जनता पार्टी
- 1980 विधानसभा चुनाव, जय कुमार पलित, कांग्रेस
- 1985 विधानसभा चुनाव, जय कुमार पलित, कांग्रेस
- 1990 विधानसभा चुनाव, प्रेम कुमार, बीजेपी
- 1995 विधानसभा चुनाव, प्रेम कुमार, बीजेपी
- 2000 विधानसभा चुनाव, प्रेम कुमार, बीजेपी
- 2005 (फरवरी) विधानसभा चुनाव, प्रेम कुमार, बीजेपी
- 2005 (अक्टूबर) विधानसभा चुनाव, प्रेम कुमार, बीजेपी
- 2010 विधानसभा चुनाव, प्रेम कुमार, बीजेपी
- 2015 विधानसभा चुनाव, प्रेम कुमार, बीजेपी
- 2020 विधानसभा चुनाव, प्रेम कुमार, बीजेपी
