बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए पहले पहले चरण का नामांकन पूरा हो चुका है। अब उम्मीदवारों के नामांकन की स्क्रूटनी चल रही है। स्क्रूटनी में कई उम्मीदवारों के नामांकन खारिज हो चुके हैं। सबसे बड़ा झटका एनडीए को लगा है। क्योंकि मढ़ौरा सीट से सीमा सिंह का नामांकन खारिज हो गया है। सीमा सिंह ने एलजेपी (रामविलास) पार्टी से मढ़ौरा सीट से नामांकन दाखिल किया था। शनिवार को उनका नामांकन रद्द हो गया।


सीमा सिंह भोजपुरी ऐक्ट्रेस हैं। वह चिराग पासवान की पार्टी से चुनाव लड़ रही थीं। मगर नामांकन रद्द होने के बाद उनका चुनाव लड़ना मुश्किल हो गया है। सीमा सिंह का नामांकन 'तकनीकी खामी' के चलते रद्द कर दिया गया है।


मढ़ौरा सीट से ही निर्दलीय चुनाव लड़ रहे अल्ताफ आलम राजू का नामांकन भी रद्द हो गया है। अल्ताफ आलम पहले जेडीयू में थे लेकिन टिकट न मिलने से उन्होंने निर्दलीय ही नामांकन भर दिया था। अब इस सीट पर मुख्य मुकाबला आरजेडी के जितेंद्र कुमार राय और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के अभय सिंह के बीच होगा।

 

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अब आगे क्या रास्ता है?

सीमा सिंह का नामांकन रद्द होना एनडीए के लिए बड़ा झटका है। क्योंकि यहां अब उसका लड़ना मुश्किल हो जाएगा। इससे आरजेडी उम्मीदवार और मौजूदा विधायक जितेंद्र कुमार राय की जीत आसान हो गई है।


चिराग पासवान ने कहा, 'हमने चुनाव आयोग के सामने एक ज्ञापन सौंपा है। यह स्थिति एक छोटी सी चूक के कारण हुई है। उम्मीद है इसका समाधान हो जाएगा।'

यह नामांकन होता क्या है?

अगर 25 साल से ज्यादा उम्र का कोई व्यक्ति चुनाव लड़ना चाहता है तो उसे नामांकन दाखिल करना होता है। जनप्रतिनिधि कानून के तहत, जिस व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट में है, वह नामांकन भर सकता है।


किसी भी उम्मीदवार को रिटर्निंग ऑफिसर (RO) के सामने नामांकन दाखिल करना होता है। इसके लिए प्रस्तावक की जरूरत होती है। अगर कोई मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी से पर्चा भर रहा है तो उसे एक ही प्रस्ताव की जरूरत होती है। पर कोई व्यक्ति निर्दलीय चुनाव लड़ रहा है तो उसे कम से कम 10 प्रस्ताव की जरूरत पड़ती है। प्रस्ताव के तौर पर उस क्षेत्र के 10 वोटर्स के दस्तखत करवाने होते हैं।


नामांकन के साथ उम्मीदवार को जमानत राशि और हलफनामा भी जमा करना होता है। सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए जमानत राशि 10 हजार रुपये होती है। वहीं, एससी और एसटी उम्मीदवारों को 5 हजार रुपये भरने होते हैं। 


वहीं, हलफनामे में अपनी कमाई और खर्च और संपत्ति का सारा हिसाब-किताब देना होता है। इसमें पति या पत्नी, बच्चों और आश्रितों की भी वित्तीय जानकारी देनी होती है। अगर कोई आपराधिक केस चल रहा है तो उसकी जानकारी भी हलफनामे में देना जरूरी है।

 

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कब खारिज हो जाता है नामांकन?

चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरते समय जो भी जानकारी दी है, वह सब सही होनी चाहिए। अगर जरा सी भी चूक हो तो यह रद्द हो सकता है। 


अगर उम्मीदवार के नामांकन में प्रस्तावक के दस्तखत नहीं है, पूरा पता नहीं है, संपत्ति और आपराधिक मामलों को लेकर हलफनामा नहीं दिया है तो स्क्रूटनी में इसे रद्द कर दिया जाता है। इसके अलावा, अगर तय तारीख तक पर्चा नहीं भरा गया है तो भी इसे रद्द कर दिया जाता है।


अगर कोई उम्मीदवार किसी ऐसी विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहता है, जहां का वह वोटर नहीं है तो इसकी जानकारी भी नामांकन में बतानी पड़ती है। अगर ऐसा नहीं होता है तो नामांकन खारिज हो सकता है।


हालांकि, नामांकन दाखिल करते समय हलफनामे में कोई जानकारी छिपाई गई या गलत दी गई है तो नामांकन रद्द नहीं होता है। अगर RO को लगता है कि हलफनामे में कोई जानकारी छिपाई गई है या गलत है तो वह इसका शिकायत कोर्ट में कर सकता है।


स्क्रूटनी के दौरान किसी उम्मीदवार का नामांकन खारिज करना है या मंजूर करना है, यह पूरी तरह से RO के विवेक पर निर्भर करता है। अगर RO कहीं भी कोई खामी नजर आती है या नामांकन फॉर्म या हलफनामे में कुछ गड़बड़ी लगती है तो नामांकन को रद्द किया जा सकता है।


अगर RO किसी उम्मीदवार का नामांकन रद्द कर देता है तो उसे लिखित में बताना पड़ता है कि किस आधार पर इसे रद्द किया गया है।

 

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नामांकन खारिज तो आगे क्या विकल्प?

स्क्रूटनी के बाद नामांकन रद्द करना या उसे मंजूर करना RO की जिम्मेदारी है। RO का फैसला अंतिम माना जाता है।


चुनाव के बाद ही फिर इस फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। अगर उम्मीदवार को लगता है कि उसका नामांकन रद्द करने का फैसला सही नहीं था तो वह इसे कोर्ट में चुनौती दे सकता है। अगर कोर्ट फैसला देती है कि नामांकन खारिज करना का फैसला सही नहीं था तो उस सीट से जीते उम्मीदवार का चुनाव रद्द हो जाता है और नए सिरे से चुनाव होते हैं।