बिहार में पहले चरण के मतदान के लिए सभी दलों के उम्मीदवारों ने नॉमिनेशन कर दिया है। नॉमिनेशन में NDA सबसे आगे रही, जिसकी चर्चा हो रही है। एनडीए में शामिल तीन सबसे बड़ी पार्टियों- बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए, लेकिन जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) द्वारा उतारे गए उम्मीदवारों की खासी चर्चा हो रही है। दरअसल, बीजेपी हमेशा से सवर्ण वोटों के साथ में कुछ ओबीसी वोटरों को अपने पाले में खींचने में कामयाब रहती है। मगर, जेडीयू कुर्मी जाति के साथ में अति पिछड़े वोटरों के साथ में मुस्लिम वर्ग के वोट पाती रही है। यही हाल चिराग पासवान की पार्टी का भी है। उसे दलितों के साथ में मुस्लिमों का वोट आसानी से मिलता रहा है।
2025 का विधानसभा चुनाव जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) के लिए एक परीक्षा यह होगी कि वे मुस्लिम वोटों का कितना हिस्सा हासिल कर पाते हैं। यह बात इसलिए सामने आई है क्योंकि दोनों दलों ने इस चुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय से बहुत कम उम्मीदवार उतारे हैं। बीजेपी की लिस्ट में, 2020 की तरह, एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं हैं। मगर, NDA की दोनों सहयोगियों ने बीजेपी का रास्ता अख्तियार करते हुए कम मुस्लिमों को टिकट दिया है।
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बिहार की कुल आबादी में 17.7 फीसदी मुस्लिम
नीतीश कुमार की जेडीयू का दावा है कि उसे राज्य की 20 फीसदी मुस्लिम आबादी वोट देती है, लेकिन उसने अपनी 101 सीटों में से केवल चार उम्मीदवारों को टिकट दिया है। अररिया और जोकीहाट (अररिया जिला), अमौर (किशनगंज), और चैनपुर (कैमूर)। वहीं, 2020 में, जेडीयू ने 11 मुसलमानों को चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन वे सभी हार गए थे। जेडीयू ने 2015 का चुनाव आरजेडी के साथ गठबंधन में लड़ा था। उस गठबंधन में जेडीयू ने छह मुसलमानों को मैदान में उतारा था, जिनमें से पांच की जीत हुई थी। इससे पहले 2010 में जेडीयू ने 14 मुसलमानों को मैदान में उतारा था, जिनमें से छह जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
लोजपा (रामविलास) का हाल
लोजपा (रामविलास) को इस बार एनडीए में रहते हुए 29 सीटें मिली हैं। चिराग पासवान ने 29 में से केवल एक मुस्लिम को टिकट दिया है। यह उम्मीदवार किशनगंज जिले की बहादुरगंज सीट मोहम्मद मलीमुद्दीन हैं। वहीं, 2020 में अविभाजित लोजपा अकेले चुनाव लड़ी थी। पार्टी ने 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, इसमें पार्टी ने सात मुसलमानों को मैदान में उतारा था। हालांकि, इसमें से लोजपा का कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार जीत नहीं सका था। पार्टी को 2020 के चुनाव में केवल एक सीट पर जीत मिली थी।
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वहीं, 2015 में लोजपा ने 42 उम्मीदवारों को टिकट दिया था। इसमें से तीन मुसलमान मैदान में उतारे थे। इस चुनाव में लोजपा 42 में से केवल 2 सीट ही जीत पाई थी। इसमें एक भी मुस्लिम नहीं जीता था।
एनडीए के अन्य घटक दल
एनडीए के अन्य दो घटक दलों हैं। उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा और जीतम राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) है। इन दोनों ने भी कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। आरएलएम ने 2020 के चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ गठबंधन करके 99 सीटों पर चुनाव लड़ा था और पांच मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, लेकिन जातनराम मांझी ने अब तक अपनी पार्टी द्वारा लड़े गए दो विधानसभा चुनावों में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है।
पिछड़े वर्ग के मुसलमानों का समर्थन होने का दावा करते हुए जेडीयू का मानना है कि मुस्लिम बहुल सीटों पर जेडीयू को मुस्लिम आबादी का कम से कम 20 फीसदी वोट मिलता है।