बिहार में पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन वापस लेने की तारीख खत्म हो चुकी है। कुल 121 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम तय हो चुके हैं। इस तारीख ने यह भी तय कर दिया है कि महागठबंधन के उम्मीदवार 5 विधानसभा सीटों पर आमने सामने होंगे। रोचक बात है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में इन पांच में 4 सीटों पर नेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (NDA) को जीत मिली थी। जिन पांच सीटों पर इस तरह का टकराव होने जा रहा है, उसमें से एक सीट मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी की है। इसी के बारे में मुकेश सहनी ने एक ट्वीट किया था कि लालू प्रसाद यादव ने पत्र जारी करके संतोष सहनी को महागठबंधन का आधिकारिक उम्मीदवार बनाया है।

 

जिन पांच सीटों पर महागठबंधन के साथी आमने-सामने हैं, उनमें तीन पर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया और कांग्रेस तीन सीटों पर आमने-सामने हैं। एक सीट पर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) आमने-सामने हैं। इसी तरह गौरा बौराम विधानसभा सीट पर विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के संतोष सहनी के सामने RJD के अफजल अली चुनाव लड़ रहे हैं। पहले चरण की लालगंज विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस और RJD आमने-सामने हो रहे थे लेकिन कांग्रेस के आदित्य कुमार ने आखिरी वक्त में अपना नामांकन वापस ले लिया। अब इस सीट पर आरजेडी की शिवानी शुक्ला ही महागठबंधन की उम्मीदवार हैं।

 

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फंसेगी प्रतिमा दास की सीट?

 

रोचक बात है कि इसमें एक सीट राजापाकड़ की है। इस सीट पर 2020 में कांग्रेस की प्रतिमा दास जीती थीं। कांग्रेस ने यहां से उन्हें ही फिर से उम्मीदवार बनाया लेकिन सीपीआई ने भी इसी सीट पर दावा ठोक दिया। सीपीआई ने यहां से मोहित पासवान को उतारा है। वहीं, पिछली बार दूसरे नंबर पर रहे महेंद्र राम को जेडीयू ने एक बार फिर से मौका दिया है। प्रतिमा दास 2020 में बहुत कम अंतर से चुनाव जीती थीं, ऐसे में अगर यहां मामला त्रिकोणीय बनता है तो वह मुश्किल में फंस सकती हैं।

गौरा बौराम सीट पर क्या हुआ?

 

VIP के मुखिया मुकेश सहनी ने गौरा बौराम की सीट से अपने भाई संतोष सहनी को टिकट दिया है। पहले कहा गया कि इस सीट पर आरजेडी नहीं लड़ेगी। मुकेश सहनी ने एक न्यूज चैनल की खबर ट्वीट की जिसमें यह कहा गया कि लालू यादव ने भी इसकी मंजूरी दे दी है। आरजेडी के 143 उम्मीदवारों की लिस्ट में भी इस सीट के उम्मीदवार का नाम नहीं था। हालांकि, आखिर में आरजेडी के अफजल अली ने इस सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है और उनका नामांकन स्वीकार भी हो गया है।

 

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2020 में इस सीट पर VIP के टिकट पर स्वर्णा सिंह को जीत मिली थी। हालांकि, बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गईं। पिछली बार आरजेडी के अफजल अली ही नंबर 2 पर रहे थे। इस बार बीजेपी ने सुजीत कुमार सिंह को यहां से टिकट दिया है।

 

बिहार शरीफ, बछवाड़ा और वैशाली में भी टकराव

 

बिहार शरीफ विधानसभा सीट से सुनील कुमार लगातार पांच बार से जीतते आ रहे हैं। बीजेपी ने फिर उन्हीं पर दांव लगाया है। वहीं, संयुक्त रूप से चुनौती देने के बजाय कांग्रेस और सीपीआई आपस में ही टकरा गए हैं। कांग्रेस ने यहां से ओमैर खान को टिकट दिया है तो सीपीआई ने शिव कुमार यादव को उतार दिया है।

 

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बछवाड़ा में बीजेपी ने एक बार फिर से मौजूदा विधायक सुरेंद्र मेहता पर भरोसा जताया है। वहीं, सीपीआई ने इसी सीट से अपने पूर्व विधायक अवधेश राय को फिर से उतारा है। पिछली बार वह मामूली अंतर से चुनाव हारे थे। वहीं, पिछली बार निर्दलीय चुनाव लड़कर लगभग 40 हजार वोट पाने और तीसरे नंबर पर रहे शिव प्रकाश गरीब दास को कांग्रेस ने टिकट दे दिया है।

 

त्रिकोणीय लड़ाई में NDA का फायदा?

 

वैशाली विधानसभा सीट पर जेडीयू लगातार पांच चुनाव जीती है। हालांकि, ऐसा करने के लिए उसने तीन बार उम्मीदवार बदले हैं। जेडीयू ने इस बार अपने मौजूदा विधायक सिद्धार्थ पटेल पर ही भरोसा जताया है। पिछली बार संजीव सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार थे और लगभग 7 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हारे थे। कांग्रेस ने फिर से उन्हें टिकट दे दिया है। वहीं, पिछली बार लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर तीसरे नंबर पर रहे अजय सिंह कुशवाहा को आरजेडी ने मैदान में उतार दिया है।

 

अब इन सीटों पर समझौते की गुंजाइश नहीं बची है क्योंकि नामांकन वापस लेने का समय नहीं बचा है। इन सीटों पर उतरे उम्मीदवारों पर नजर डालें तो यह भी स्पष्ट है कि वे मजबूती से चुनाव भी लड़ेंगी। पिछले चुनाव में भी देखा गया था कि त्रिकोणीय चुनाव होने के चलते एनडीए को फायदा हुआ था। अगर इस बार भी ऐसा ही होता है तो एक बार फिर महागठबंधन हाथ मलता रह जाएगा। आपको बता दें कि पहले चरण की 5 सीटों के अलावा दूसरे चरण की 7 सीटों पर भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। हालांकि, उन सीटों पर अभी भी नामांकन वापस लिए जा सकते हैं।