चुनाव में सभी पार्टियां अपनी ओर से लोगों को लुभाने के लिए कई वादे करती हैं। इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हाल है। महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री के दावेदार तेजस्वी यादव ने भी जब अपने चुनावी वादों का पिटारा खोला तो उसमें से सरकारी नौकरी मिलने का वादा निकला। तेजस्वी यादव ने इस बार घोषणा की है कि वह हर घर से किसी एक को सरकारी नौकरी देंगे। इसकी चर्चा भी बहुत हो रही है क्योंकि राज्य में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा रहा है। इन वादों के बीच यह समझने की जरूरत है कि क्या यह मुमकिन है कि हर घर से एक को सरकारी नौकरी मिल जाए? आइए समझते हैं-
तेजस्वी का दावा है कि इस लक्ष्य को पहले साल में ही पूरा कर लिया जाएगा। सरकारी आंकड़ों के आधार पर यह वादा बहुत चुनौतीपूर्ण और लगभग नामुमकिन माना जा रहा है। केंद्र सरकार में कर्मचारियों की संख्या लगभग 48 लाख 67 हजार है। यह आंकड़ा 1 जुलाई 2023 तक 56 मंत्रालयों और विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कर्मचारियों की संख्या 8.33 लाख से 8.46 लाख के बीच है। महाराष्ट्र में राज्य सरकार के कर्मचारियों की संख्या काफी अधिक है, जो लगभग 13.45 लाख से 16 लाख के बीच बताई गई है।
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बिहार की क्या स्थिति है?
बिहार जातिगत सर्वे 2023 के अनुसार, राज्य सरकार में परिवारों की कुल संख्या लगभग 2.76 करोड़ है। सर्वे के अनुसार राज्य में केवल लगभग 1.57% आबादी सरकारी नौकरी करती है। बिहार इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, 2024-25 में कुल कर्ज लगभग 3.18 लाख करोड़ रुपये जो कि GSDP का 34.7% रहने का अनुमान है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अनुसार, मार्च 2024 में बिहार पर कुल कर्ज लगभग 3.19 लाख करोड़ रुपये था। सरकार ने 3 मार्च 2025 को विधानसभा में 3.17 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया था।
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सरकारी नौकरियों की स्थिति
राज्य में सरकारी कर्मचारियों की संख्या 20 लाख से 48 लाख के बीच अनुमानित है। इसके हिसाब से 2.6 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत होगी। वर्तमान में मौजूद कुल सरकारी नौकरियों की संख्या से कई गुना अधिक। अभी सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर राज्य सरकार सालाना हजारों करोड़ रुपये खर्च करती है। फिलहाल सरकार सालाना 71,000 करोड़ रुपये खर्च करती है। अगर 2.6 करोड़ लोगों को सरकारी नौकरी दी जाती है, तो उनके वेतन, पेंशन और अन्य भत्तों का खर्च राज्य के कुल बजट से भी कई गुना अधिक हो जाएगा। इस तरह के भारी भरकम खर्च का बोझ उठाने की इजाजत राज्य को नहीं देता है।
वेतन पर सरकार 81,473.45 करोड़ रुपये खर्च करती है। इसमें नियमित सरकारी सेवक का वेतन 51,690.34 करोड़ रुपये है। सैलरी में ग्रांट पर 21,790.22 करोड़ रुपये खर्च करती है। कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारियों पर लगभग 4,985.99 करोड़ रुपये का खर्च होता है।
बिहार में परिवारों की संख्या लगभग 2.76 करोड़ को देखते हुए, इतने बड़े पैमाने पर नई सरकारी नौकरियों को पैदा करने के लिए हजारों-करोड़ों रुपये की जरूरत होगी। कर्मचारियों के वेतन, भत्ते (DA/HRA), पेंशन और अन्य लाभों पर होने वाला यह खर्च राज्य के सालाना बजट पर अत्यधिक दबाव डालेगा। यदि सरकार वेतन और पेंशन पर ज्यादा खर्च करती है, तो पढ़ाई, हेल्थ, सड़कें, बिजली और कैपिटल एक्सपेंडिचर जैसे विकास के कामों के रुपयों की कमी हो सकती है। अब देखना होगा कि इसके लिए तेजस्वी के पास क्या रोड-मैप है?