तारीख-14 जून, साल 1998 शाम के वक्त पूर्णिया शहर में अचानक अपराधी एक शख्स पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाते हैं। वह शख्स जमीन पर गिरता और मौके पर ही उसकी मौत हो जाती है। 90 के दशक में बिहार के गुंडाराज में जान गंवाने वाला यह शख्स कोई और नहीं बल्कि पूर्णिया के विधायक अजीत सरकार थे। बिहार के पूर्णिया सीट की कहानी अजीत सरकार की कहानी के बिना अधूरी है।

 

अजीत सरकार साफ छवि वाले बिहार के बड़े वामपंथी नेता थे। वह किसानों और मजदूरों के मुद्दों को उठाने वाले नेताओं में शामिल थे। लोग उन्हें इस कदर पसंद किया करते थे कि वह लगातार 4 बार पूर्णिया सीट से चुनाव जीते थे। 1998 में जब उन्हें गोली मारी गई तो खुद लालू यादव को हेलिकॉप्टर से लोगों को शांत कराने आना पड़ा था।

 

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अजीत सरकार को मारने का आरोप लालू की पार्टी RJD से जुड़े बाहुबली पप्पू यादव पर लगा था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला था कि अजीत को 107 गोलियां मारी गई थीं। पूर्णिया तब से बिहार की राजनीति के लिहाज से सबसे अहम सीट है।

 

पूर्णिया की सीट पर वामपंथियों से लेकर बीजेपी तक का दबदबा रहा है। आबादी की बात की जाए तो पूर्णिया हिंदू बहुल है। यह बिहार का चौथा बड़ा शहर है। इसके इतिहास की बात की जाए तो इसका नाम संस्कृत के पूर्ण अरण्य शब्द पर पड़ा है। इसका मतलब होता है- पूरा घना जंगल। अंग्रेजों के आने से पहले पुर्णिया जंगल था, यहां कुछ ही लोग रहा करते थे। अपनी उपजाऊ जमीन और प्राकृतिक संसाधनों से लैस होने के चलते यहां लोग बसे और इसे मिनी दार्जलिंग भी कहा जाने लगा। अंग्रेजों ने जमकर यहां नील की खेती की।

 

मौजूदा समीकरण

यह विधानसभा सीट उसी पूर्णिया लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है, जहां से साल 2024 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पप्पू यादव ने जीत हासिल कर ली थी। बीजेपी और एनडीए गठबंधन के लिए राहत की बात यह है कि पप्पू यादव के दबदबे के बावजूद इस सीट पर पिछले सातों चुनाव में बीजेपी जीती है। जेडीयू और बीजेपी गठबंधन में सीटों के बंटवारे में यह सीट एक बार फिर से बीजेपी के ही खाते में आने की पूरी उम्मीद है। अगर पप्पू यादव यहां से महागठबंधन उम्मीदवार का विरोध नहीं करते हैं, तब बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल सकती है।

 

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2020 में क्या हुआ था?

2020 के चुनाव में महागठबंधन की तरफ से यह सीट कांग्रेस उम्मीदवार इंदु सिन्हा को मिली थी जबकि बीजेपी ने विजय कुमार खेमका को उम्मीदवार बनाया था। जीत विजय कुमार खेमका की हुई थी। वह 30 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे। इस सीट को 2015 में भी विजय कुमार खेमका ने ही जीता था। 2020 के चुनाव में कई निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में थे लेकिन किसी को इतने वोट नहीं मिले कि उससे नतीजों पर कोई फर्क पड़ता। 2020 के चुनाव में RLSP और एनसीपी जैसी पार्टियों ने भी इस सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे।

 

विधायक का परिचय

12वीं तक पढ़े विजय कुमार खेमका पिछले 10 साल से पूर्णिया के विधायक हैं। 2020 में दिए गए हलफनामे के मुताबिक उनके पास 2 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है। उनकी कमाई का साधन व्यवसाय और विधानसभा से मिलने वाला वेतन है। खेमका खुद के समाजसेवी होने का भी दावा करते हैं। पिछले चुनावी हलफनामे के मुताबिक, उनके खिलाफ एक आपराधिक मुकदमा चल रहा था।

 

वह साल 2021 में तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश करके मांग कर डाली थी कि दो बच्चों वाली नीति सभी जाति और समुदाय पर समान रूप से लागू की जानी चाहिए।

 

विधानसभा सीट का इतिहास 

पूर्णिया विधानसभा बिहार की सबसे पुरानी विधानसभा सीटों में है। 1952 से 1972 तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा। जिसे इमरजेंसी विरोधी लहर के दौरान जनता पार्टी के देव नाथ राय ने तोड़ा।

 

जनता पार्टी के बाद यह सीट 20 साल तक वामपंथियों का गढ़ बनी रही। अजीत सरकार की हत्या के बाद उनका परिवार ने सीट जीतने की खूब कोशिश की पर वे उसे फिर कभी अपने पाले में नहीं ला सके। पिछले 25 साल से इस सीट पर BJP का दबदबा है।

 

  • 1952- कमलदेव नारायण सिन्हा (कांग्रेस) 
  • 1957- कमलदेव नारायण सिन्हा (कांग्रेस)
  • 1962- कमलदेव नारायण सिन्हा (कांग्रेस)
  • 1967- कमलदेव नारायण सिन्हा (कांग्रेस)
  • 1969- कमलदेव नारायण सिन्हा (कांग्रेस)
  • 1972 - कमलदेव नारायण सिन्हा (कांग्रेस)
  • 1977- देवनाथ राय (जनता पार्टी)
  • 1980- अजीत सरकार ( CPI-M)
  • 1985- अजीत सरकार ( CPI-M)
  • 1990-  अजीत सरकार ( CPI-M)
  • 1995- अजीत सरकार ( CPI-M)
  • 1998- माधवी सरकार (CPI -M)
  • 2000- राज किशोर केसरी (BJP)
  • 2005- राज किशोर केसरी (BJP)
  • 2010- राज किशोर केसरी (BJP)
  • 2011- किरण देवी (BJP)
  • 2015- विजय कुमार खेमका (BJP)
  • 2020- विजय कुमार खेमका (BJP)