बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद भी महागठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे पर कई दिनों तक माथापच्ची चली। इसके बाद विपक्षी दल सामने आए और अपने सीएम का ऐलान किया। सीएम के नाम के ऐलान पर ज्यादा हैरानी नहीं हुई क्योंकि यह लगभग तय ही था कि महागठबंधन की ओर से सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादव ही होंगे। डिप्टी सीएम के नाम के ऐलान के बाद हैरानी हुई क्योंकि 15 सीटों वाली विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के संस्थापक मुकेश सहनी का नाम घोषित किया गया। अशोक गहलोत ने महागठबंधन की तरफ से दोनों नामों का ऐलान किया था। यह समझने की जरूरत है कि मुकेश सहनी को इतनी तवज्जो क्यों मिल रही है?
मुकेश सहनी ने डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित होने के बाद कहा, 'हम तीन साल से इस वक्त का इंतजार कर रहे थे। बीजेपी ने हमारी पार्टी को तोड़ा और हमारे विधायक खरीद लिए। अब हम BJP को जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं।' उन्होंने आगे कहा, 'हमने हाथ में गंगाजल लेकर प्रतिज्ञा ली थी। अब समय आ गया है कि हम महागठबंधन के साथ मजबूती से खड़े होकर बिहार में अपनी सरकार बनाए और बीजेपी को राज्य से बाहर कर दें।'
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मुकेश सहनी कौन है?
दरभंगा के मछुआरे परिवार में जन्मे मुकेश सहनी खुद को 'सन ऑफ मल्लाह' कहते हैं। लोकसभा चुनाव 2014 में वह बीजेपी के स्टार कैंपेनर बने। अमित शाह ने करीब 40 सभाओं में मुकेश को अपने साथ रखा था। इसके बाद उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया था।
2015 में निषाद विकास संघ की स्थापना की और बाद में 2018 में VIP का गठन किया। 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार का समर्थन किया था। 2020 में फिर वह एनडीए में शामिल हो गए। 2020 के बिहार चुनाव में भाजपा ने अपने कोटे से इनकी पार्टी को 11 सीटें दी थीं। इनकी पार्टी ने चुनाव में 4 सीटें जीती थी। 2020 में मुकेश सहनी हार गए थे लेकिन इसके बावजूद उनको सरकार में कैबिनेट मंत्री (पशुपालन विभाग) दिया गया।
एक साल के बाद उनके एक विधायक की मौत हो जाने के बाद 2022 में उनके बाकी तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गए। इससे वह बीजेपी से काफी नाराज हो गए और दोनों के बीच दरार पड़नी शुरू हो गई। इसके बाद मुकेश ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी से गठबंधन किए बिना 53 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए जिससे एनडीए में उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ गई और मुकेश को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद मुकेश एनडीए से बाहर हो गए और 2024 में महागठबंधन में वापस शामिल हो गए।
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मुकेश सहनी की इतनी अहमियत क्यों?
मल्लाह जाति की आबादी गंगा किनारे कई जिलों में फैली हुई है। राज्य में EBC में शामिल मल्लाह जाति के वोटरों की कई सीटों पर मौजूदगी है। उन्हें आगे लाकर महागठबंधन ने हाशिए की जातियों के वोटरों के बीच अपील मजबूत करने की कोशिश की है। एनडीए की ओर से बीजेपी के लगभग 49 उम्मीदवार ऐसे हैं जो सवर्ण जाति से आते हैं। ऐसे में पिछड़ा वर्ग एनडीए के बजाय महागठबंधन को तरजीह दे सकता है।
निषाद/मल्लाह समुदाय का वोट बैंक
मुकेश सहनी की राजनीतिक ताकत का सबसे बड़ा आधार मल्लाह समुदाय है। निषाद समुदाय बिहार में एक बड़ा और प्रभावशाली EBC समूह है, जिसकी आबादी राज्य के कई क्षेत्रों, खासकर कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल में काफी है। मुकेश खुद को इस समुदाय के नेता के रूप में मजबूती से कायम कर चुके हैं। उनकी पार्टी को दिया गया टिकट इस समुदाय के वोटों को महागठबंधन की ओर ट्रांसफर करने की ताकत रखता है। बिहार में EBCs वोटों का एक बड़ा हिस्सा हैं और जिस गठबंधन को इनका समर्थन मिलता है, उसके जीतने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। मुकेश इस वोट बैंक को एकजुट करने की कुंजी हैं।
करीबी और कांटे की टक्कर वाली सीटों पर असर
बिहार में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां हार-जीत का अंतर बहुत कम होता है। इन सीटों पर, 3% से 5% निषाद वोटों का झुकाव भी चुनावी नतीजे को पूरी तरह से बदल सकता है। VIP उन कांटे की टक्कर वाली सीटों पर गठबंधन की जीत की गारंटी हो सकती है जहां मुख्य पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला होता है।
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बार्गेनिंग पावर
मुकेश सहनी ने पहले NDA के साथ और फिर महागठबंधन के साथ काम किया है। इस अनुभव ने उन्हें बिहार की गठबंधन की राजनीति को समझने का एक ऐज देती है। उनकी पार्टी चाहे कम सीटों पर लड़े, लेकिन उनकी मोल-भाव की शक्ति अधिक होती है क्योंकि दोनों प्रमुख गठबंधन उनके वोट बैंक को अपने पाले में लाना चाहते हैं। यह उन्हें गठबंधन के भीतर एक 'किंगमेकर' की तरह पेश करता है।
भाजपा के EBC वोट बैंक को चुनौती
बिहार में EBC वोट बैंक पारंपरिक रूप से NDA का समर्थक रहा है। महागठबंधन का इरादा है कि वह EBC और OBC वोटों में सेंध लगाए। मुकेश इस स्ट्रेटजी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो निषाद समुदाय को NDA से दूर करके महागठबंधन की तरफ ला सकते हैं, जिससे भाजपा-JDU गठबंधन को सीधे तौर पर नुकसान होगा।
