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अपनी ही पुरानी पार्टी के खिलाफ खड़े हैं कितने ही उम्मीदवार?

बिहार में न जाने कितने ही उम्मीदवार ऐसे हैं जो कि अपनी पिछली पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं।

tejashwi and nitish

तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार

संजय सिंह, पटनाः राजनीति में सिद्धांत और विचारधारा का अब कोई खास मतलब नहीं रह गया है। जातीय समीकरण, धनबल और बाहुबल का प्रभाव हर पार्टी में देखा जा सकता है। हर चुनाव की तरह इस बार के चुनाव में भी 'पाला बदल' का खेल खूब हुआ है। ऐसे कई प्रत्याशी हैं जो बीते दिनों किसी और दल में थे, लेकिन आज दूसरे दल से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। उनका मुकाबला अपने ही पुराने दल के उम्मीदवारों से है। उनके इस रूप को देखकर क्षेत्र के मतदाता हैरान-परेशान हैं। पाला बदल का यह खेल दोनों गठबंधनों में समान रूप से देखने को मिला है।

 

मोहनिया विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी ने संगीता कुमारी को अपना उम्मीदवार बनाया है। वे 2020 के चुनाव में आरजेडी की टिकट पर विधायक बनी थीं। इस बार आरजेडी ने वहां से श्वेता सुमन को टिकट दिया था, लेकिन तकनीकी कारणों से उनका नामांकन रद्द हो गया। आरजेडी नेताओं को मजबूरी में निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन देना पड़ा। अब यहां का मुकाबला दिलचस्प होने वाला है।

 

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केदार सिंह ने बदला पाला

इसी तरह बनियापुर विधानसभा क्षेत्र से पिछली बार केदार सिंह आरजेडी की टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस बार उन्होंने सामाजिक समीकरण को देखते हुए पाला बदलकर बीजेपी का दामन थाम लिया। अब उनका मुकाबला आरजेडी प्रत्याशी से ही होना है।

 

भगुआ के आरजेडी विधायक भरत बिंद का भी यही हाल है। भरत बिंद लगातार आरजेडी के साथ थे, लेकिन चुनाव से पहले उन्होंने पाला बदलकर बीजेपी का साथ पकड़ लिया। इस बार उनका मुकाबला अपने पुराने दल आरजेडी के प्रत्याशी से होना तय माना जा रहा है।

 

2020 के चुनाव में विक्रम विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने सिद्धार्थ सौरभ को अपना उम्मीदवार बनाया था। वे चुनाव जीतने में सफल भी रहे, लेकिन अब सिद्धार्थ सौरभ बीजेपी के साथ हैं। अब उनकी लड़ाई महागठबंधन के प्रत्याशी से होने जा रही है।

परवत्ता की भी यही स्थिति

अररिया के परवत्ता विधानसभा क्षेत्र से पिछली बार जेडीयू के टिकट पर डॉ. संजीव कुमार चुनाव जीते थे। इनके पिता आर. एन. सिंह नीतीश मंत्रिमंडल के सदस्य भी रह चुके हैं। पिछले चुनाव में इनकी जीत बहुत कम वोटों से हुई थी। इन्होंने तब आरजेडी प्रत्याशी को पराजित किया था। अब उन्होंने पाला बदलकर आरजेडी का साथ ले लिया है। अब उनका मुकाबला एलजेपी (आर) के प्रत्याशी से होना है। बताया जाता है कि डॉ. संजीव का संबंध एलजेपी (आर) के सांसद राजेश वर्मा से ठीक नहीं है। लोकसभा चुनाव के दौरान ही दोनों के बीच दूरी बढ़ गई थी। अंततः डॉ. संजीव को जेडीयू छोड़नी पड़ी। नीतीश कुमार के सत्ता परीक्षण के दौरान उन पर आरजेडी को समर्थन देने का भी आरोप लगा था।

 

परसा के आरजेडी विधायक छोटेलाल राय भी अब जेडीयू में शामिल हो गए हैं। उन्होंने इससे पहले आरजेडी की टिकट पर चुनाव जीता था। नवादा की आरजेडी विधायक विभा देवी भी अब जेडीयू के साथ हैं। उनके पति राजबल्लभ यादव की अपने जाति के वोटरों पर मजबूत पकड़ है। इसी उम्मीद पर जेडीयू ने उन्हें टिकट दिया है। वैसे विभा देवी का टिकट कटना तय माना जा रहा था, इसलिए टिकट कटने से पहले ही उन्होंने आरजेडी को अलविदा कह दिया।

 

 

चेनारी विधानसभा क्षेत्र से पिछली बार के चुनाव में मुरारी गौतम कांग्रेस से चुनाव जीते थे। अब वे एलजेपी (आर) के साथ हैं। इस बार उनका मुकाबला अपने पुराने दल कांग्रेस के प्रत्याशी से है।

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