संजय सिंह: बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी ने एक नया इतिहास रचा है। इस बार महिलाओं ने न केवल घर की जिम्मेदारी निभाई बल्कि लोकतंत्र के इस पर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर मतदान केंद्रों को जीवंत बना दिया। राज्य के सभी जिलों में मतदान के दौरान महिलाओं की लंबी कतारें दिखीं। यह दृश्य इस बात का प्रतीक था कि अब बिहार की महिलाएं राजनीतिक रूप से पहले से कहीं अधिक सजग और सशक्त हो चुकी हैं। 


चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस बार बिहार में कुल औसत मतदान प्रतिशत करीब 61.5 प्रतिशत रहा, जिसमें महिलाओं की भागीदारी लगभग 63.2 प्रतिशत दर्ज की गई। यानी पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने अधिक संख्या में मतदान किया। कई जिलों जैसे गया, मुंगेर, बक्सर, सीवान, पूर्णिया और दरभंगा में महिला मतदान प्रतिशत ने सभी पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए। 


ग्रामीण क्षेत्रों में यह उत्साह और भी अधिक देखने को मिला। नक्सल प्रभावित इलाकों, सीमावर्ती गांवों और पिछड़े क्षेत्रों में भी महिलाएं निर्भीक होकर मतदान केंद्रों तक पहुंचीं। कई जगहों पर बुजुर्ग महिलाओं ने भी मतदान किया, जिससे युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिली। वहीं पहली बार वोट डालने वाली युवतियों में जोश और गर्व का माहौल था। 

 

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क्यों बढ़ी महिलाओं की वोटिंग?

महिलाओं के इस उत्साह के पीछे कई कारण माने जा रहे हैं। पहला, सरकार और प्रशासन द्वारा महिला सुरक्षा एवं सुविधा को लेकर किए गए विशेष इंतजाम। इस बार राज्य में हजारों ‘सखी बूथों’ की स्थापना की गई, जिन्हें पूरी तरह महिला कर्मियों द्वारा संचालित किया गया। इन बूथों पर गुलाबी सजावट, महिला सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी और साफ-सुथरा माहौल महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला साबित हुआ। 


दूसरा, विभिन्न योजनाओं जैसे मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना, जीविका समूहों और स्वयं सहायता समूहों की भूमिका भी अहम रही। इन योजनाओं ने ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है और उन्हें समाज में अपनी बात रखने का साहस दिया है। यही कारण है कि महिलाएं अब अपने क्षेत्र के विकास और निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी को आवश्यक समझने लगी हैं। 

 

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इससे फायदा किसे होगा?

राजनीतिक रूप से भी अब महिलाएं निर्णायक वोटर बन चुकी हैं। विश्लेषकों का कहना है कि महिलाओं का झुकाव किसी एक पार्टी या गठबंधन के प्रति नहीं बल्कि विकास और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर आधारित है। उनकी प्राथमिकता सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, गैस, बिजली और परिवार की सुरक्षा से जुड़ी नीतियां हैं। इस बार के चुनाव परिणामों पर महिलाओं की भूमिका निर्णायक मानी जा रही है। 


पटना की कॉलेज छात्रा प्रियंका कुमारी ने कहा, पहले राजनीति सिर्फ पुरुषों का विषय माना जाता था, लेकिन अब हम भी यह तय करते हैं कि कौन हमारे भविष्य को बेहतर बना सकता है। वहीं, गया की वृद्ध मतदाता सीता देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, हमने अपने बच्चों को कहा कि पहले वोट, फिर बाकी काम। 


कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 यह साबित करता है कि राज्य की महिलाएं अब लोकतंत्र की सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि उसकी सच्ची सहभागी बन चुकी हैं। उनकी यह बढ़ती राजनीतिक जागरूकता आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति और समाज दोनों को नई दिशा देगी।