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75 साल में पहली बार बिहार में रिकॉर्ड वोटिंग; NDA या महागठबंधन... किसको फायदा?

बिहार में पहले चरण की वोटिंग में लगभग 65 फीसदी वोटिंग हुई है। यह बिहार के इतिहास में हुई सबसे ज्यादा वोटिंग है। बढ़ी हुई वोटिंग से किसे फायदा? समझते हैं।

BIHAR CHUNAV

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

बिहार ने रिकॉर्ड बना दिया है। पहले चरण में रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग हुई है। गुरुवार को 18 जिलों की 121 सीटों पर वोटिंग हुई थी। चुनाव आयोग ने बताया कि पहले चरण में 64.66% वोटिंग हुई है। आजादी के बाद पहली बार बिहार में इतनी वोटिंग हुई है। इससे पहले आखिरी बार 2000 के चुनावों में 62.57% वोट पड़े थे। 


वोटिंग खत्म होने के बाद पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग ने बताया कि विधानसभा चुनाव के पहले चरण में शांतिपूर्ण तरीके से मतदान हुआ, जिसमें बिहार के इतिहास में अब तक की सबसे ज्यादा 64.66% वोटिंग हुई। इससे पहले 2020 के चुनाव में इन्हीं 121 सीटों पर 57.29% वोट पड़े थे। यानी, पिछली बार से लगभग 7 फीसदी वोटिंग ज्यादा हुई है।


बिहार में वोटिंग बढ़ने को हर पार्टी अपनी-अपनी जीत के तौर पर देख रही है। एनडीए का कहना है कि यह दिखाता है कि लोग उत्साहित हैं तो फिर से उनकी सरकार चाहती है। वहीं, महागठबंधन का दावा है कि जनता बदलाव चाहती है, इसलिए बढ़-चढ़कर वोट कर रही है।


बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए इस बार दो चरणों में वोटिंग हो रही है। पहले चरण में 121 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। अब 11 नवंबर को बाकी बची 122 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। चुनावी नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे।

 

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बिहार ने कैसे बना दिया रिकॉर्ड?

चुनाव आयोग के मुताबिक, पहले चरण में कुल 3.75 करोड़ वोटर्स थे। इनमें से लगभग 65 फीसदी ने वोट डाला। चुनाव आयोग का कहना है कि अभी यह आंकड़ा थोड़ा और बढ़ सकता है, क्योंकि शाम 6 बजे वोटिंग खत्म होने के बाद भी कई पोलिंग बूथ पर वोटर्स खड़े थे। चुनाव आयोग ने शाम को वोटिंग का जो डेटा दिया था, वह 45,341 पोलिंग बूथ में से 41,943 बूथ का था।


2020 में कोविड महामारी के साये में वोटिंग हुई थी और तब लगभग 57 फीसदी वोटिंग हुई थी। चुनाव आयोग के मुताबिक, बिहार के इतिहास में अब तक सबसे कम वोटिंग 1951-52 के विधानसभा चुनाव में हुई थी। तब 40.35% वोट पड़े थे।

 


देखा जाए तो बिहार में एक साल में ही वोटिंग प्रतिशत काफी बढ़ गया है। पिछले साल लोकसभा चुनाव में बिहार में 56.28% वोटिंग हुई थी। मगर विधानसभा में इससे लगभग 8 फीसदी ज्यादा वोट पड़े। लोकसभा चुनाव के इतिहास में बिहार में अब तक सबसे ज्यादा वोटिंग 1998 में हुई थी। उस चुनाव में बिहार में कुल 64.6% वोटर्स ने वोट डाला था।


चुनाव आयोग ने बताया कि महिला वोटर्स बड़ी संख्या में वोटिंग करने के लिए निकलीं। महिला वोटर्स में काफी उत्साह देखने को मिला। 


आंकड़ों के मुताबिक, मुजफ्फरपुर में सबसे ज्यादा 70.96% वोटिंग हुई। इसके बाद समस्तीपुर में 70.63% वोटिंग हुई। मधेपुरा में 67.21%, वैशाली में 67.37%, सहरसा में 66.84%, खगड़िया में 66.36%, लखीसराय में 65.05%, मुंगेर में 60.40%, सीवान में 60.31%, नालंदा में 58.91% और पटना में 57.93% वोटिंग हुई।

 

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वोटिंग का ट्रेंड क्या कहता है?

वोटिंग का ट्रेंड जब-जब बढ़ता है तो इसे दो तरह से देखा जाता है। पहला- जनता मौजूदा सरकार के कामकाज से खुश है और दोबारा उसकी वापसी चाहती है। और दूसरा- जनता मौजूदा सरकार से नाखुश है, इसलिए अब बदलाव चाहती है और उसके खिलाफ बढ़-चढ़कर वोट कर रही है।


बिहार का वोटिंग ट्रेंड्स बताता है कि जब-जब 60% से ज्यादा वोटिंग हुई है, तब-तब लालू यादव की सरकार बनी है। वहीं, जब-जब वोटिंग 60% से कम हुई है, तब-तब नीतीश कुमार ने वापसी की है। वोटिंग पैटर्न दिखाता है कि जब से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, तब से बिहार में कभी भी 60% से ज्यादा वोट नहीं पड़े हैं। नीतीश के कार्यकाल में सबसे ज्यादा 57.29% वोटिंग 2020 में ही हुई थी।

 


1990 में जब लालू यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब बिहार में 62.04% वोटिंग हुई थी। यह पहली बार था जब बिहार में 60 फीसदी से ज्यादा वोट पड़े थे। इसके बाद 1995 में लालू यादव ने वापसी की। उस चुनाव में 61.79% वोट पड़े। 2000 के चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला था लेकिन राबड़ी देवी की अगुवाई में आरजेडी की सरकार बन गई थी और तब 62.57% वोटिंग हुई थी।


इसी तरह, फरवरी 2005 के चुनाव में सिर्फ 46.5% वोटिंग में ही सरकार बदल गई थी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए थे। हालांकि, 8 महीने बाद ही अक्टूबर में फिर चुनाव हुए, जिसमें 45.85% वोट पड़े थे। 2010 से 2020 के बीच तीन विधानसभा चुनावों में हर बार वोटिंग प्रतिशत बढ़ा और हर बार नीतीश कुमार ने सरकार बनाई। 2010 में 52.73%, 2015 में 56.91% और 2020 में 57.29% वोटिंग हुई थी।

 

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'सुशासन' बनाम 'जॉब्स फॉर ऑल'

रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग को सब अपनी-अपनी जीत के तौर पर देख रहे हैं। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का कहना है कि बढ़ी हुई वोटिंग 'एंटी-इन्कंबैंसी' नहीं, बल्कि 'प्रो-इन्कंबैंसी' है।


लगभग 20 सालों से सत्ता में बने हुए एनडीए को 'सुशासन' की छवि पर भरोसा है। वहीं, महागठबंधन को सत्ता-विरोधी लहर और अपने सीएम पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव के 'जॉब्स फॉर ऑल' के वादे के दम पर चुनाव जीतने की उम्मीद है।


एनडीए को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 'सुशासन' के रिकॉर्ड, 125 यूनिट फ्री बिजली, 1 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को 10 हजार रुपये के कैश ट्रांसफर और सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी जैसी योजनाओं से सत्ता-विरोधी लहर का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।


वहीं, महागठबंधन ने उम्मीद जताई है कि लोग बदलाव के लिए वोट कर रहे हैं। आरजेडी प्रमुख और पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव ने X पर लिखा, 'तवा से रोटी पलटती रहनी चाहिए, नहीं तो जल जाएगी। 20 साल बहुत हुआ। अब युवा सरकार और नए बिहार के लिए तेजस्वी सरकार बहुत जरूरी है।'

 

 

सिर्फ एनडीए और महागठबंधन ही अपनी-अपनी जीत के दावे नहीं कर रहे हैं, बल्कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को भी बढ़ी हुई वोटिंग में अपनी जीत दिखाई दे रही है। जन सुराज पार्टी का मानना है कि वह इस चुनाव में 'छिपे रुस्तम' के रूप में उभर सकती है। प्रशांत किशोर ने बिहार को देश के सबसे अच्छे राज्यों में से एक बनाने का वादा किया है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी वादा किया है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो शराबबंदी को खत्म कर देंगे। 


खैर, बिहार में अब दूसरे चरण की वोटिंग 11 नवंबर को होनी है। देखना होगा कि 11 नवंबर को कितनी वोटिंग होती है? बढ़ी हुई वोटिंग किसके लिए फायदेमंद साबित होती है? यह जानने के लिए 14 नवंबर तक इंतजार करना होगा।

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