बांग्लादेश में इन दिनों हिंसा चरम पर है। कट्टरपंथी ताकतें बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही हैं। 18 दिसंबर को मयमन शहर में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद भारत में भी बांग्लादेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने लगे। दीपू की हत्या के बाद से अल्पसंख्यक समुदाय सहमा हुआ है। अब दीपू दास के साथ काम करने वाले एक चश्मदीद ने बताया कि किस तरह बेरहमी से भीड़ ने दीपू की हत्या कर दी थी। उन्होंने बताया कि भीड़ दीपू पर राक्षसों की तरह हमला कर रही थी।
मुस्लिम भीड़ की ओर से हिंदू अल्पसंख्यकों पर किए जा रहे हमलों के बारे में वैसे तो बांग्लादेश में कोई बात करने के लिए तैयार नहीं है लेकिन पहचान छिपाए जाने की शर्त पर दीपू के एक दोस्त ने एनडीटीवी से बातचीत की। दीपू दास के साथ काम करने वाले चश्मदीद ने बताया कि दीपू हिंदू था और उसकी एक छोटी बच्ची भी थी। उसकी हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि वह हिंदू था और यहां लोग उसकी मेहनत से ईर्ष्या करते थे। उन्होंने बताया कि कुछ लोग जिन्हें नौकरी नहीं मिली उन्होंने दीपू के खिलाफ अफवाहें फैलाई।
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चश्मदीद ने बताई सच्चाई
दीपू के साथ काम करने वाले अज्ञात युवक ने बताया, 'पहले दीपू दा को एचआर ऑफिस बुलाया गया। उन्होंने उन पर इस्तीफा देने का दबाव डाला। फैक्ट्री के कर्मचारियों के साथ-साथ कुछ बाहरी लोग भी मौजूद थे। जब दीपू ने इस्तीफा नहीं दिया तो फैक्ट्री के कर्मचारियों ने उन्हें बाहरी लोगों के हवाले कर दिया। उसके बाद वह लोग उन्हें फैक्ट्री के गेट तक ले गए और जनता के हवाले कर दिया।'
उन्होंने दीपू की हत्या और पिटाई के बारे में बात करते हुए कहा, 'गेट के बाहर भीड़ पहले से पागल थी। जैसे ही दीपू दा को उनके हवाले किया गया उन्होंने उन्हें बेरहमी से पीटा। दीपू दा के चेहरे और सीने पर कई हमले किए गए। बेरहमी से पीटने के लिए कई लोगों ने तो लाठियों का भी इस्तेमाल किया। इस दौरान दीपू दा का काफी ज्यादा खून बह गया था। यह सब फैक्ट्री गेट के बाहर ही हो रहा था।'
लाश को घसीटकर ले गई भीड़
एनडीटीवी की रिपोर्ट में बताया गया है कि चश्मदीद ने दीपू की मौत के बाद उसके शव के साथ दुर्व्यवहार के भी आरोप लगाए। चश्मदीद ने कहा, 'दीपू की हत्या के बाद भीड़ शांत नहीं हुई। कुछ देर बाद वे उनके शव को कम से कम एक किलोमीटर तक घसीटकर ले गए और उसे एक पेड़ पर लटका दिया। पेड़ पर ही उन्होंने उनके शव को आग भी लगा दी लेकिन शव जमीन पर गिर गया। भीड़ में ज्यादातर मुस्लमान ही थी। हम वहां मौजूद थे लेकिन हम एक शब्द भी नहीं बोल सकते थे।' दीपू के गांव वालों ने दावा किया कि हमले के दौरान पुलिस भी वहां मौजूद थी लेकिन भीड़ की दहशत इतनी थी कि पुलिसवाले भी भाग गए। उन्होंने भी दीपू को बचाने की कोशिश नहीं की।
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लोगों ने दीपू को बचाया क्यों नहीं?
इस घटना के दौरान भीड़ से इतर कुछ अन्य लोग भी थे, जो फैक्ट्री में ही काम करते थे लेकिन कोई भी दीपू को बचाने के लिए आगे नहीं आया। इस बारे में बाद करते हुए चश्मदीद ने बताया कि कुछ लोगों ने दीपू को बचाने की कोशिश की थी लेकिन उन पर हमले के डर से वे पीछे हट गए। उन्होंने आगे कहा, 'वे राक्षसों की तरह व्यवहार कर रहे थे।' भीड़ ने दीपू पर ईशनिंदा का आरोप लगाया था लेकिन बाद में अधिकारियों ने कहा था कि ईशनिंदा का कोई सबूत नहीं है। हिंदू समुदाय में दीपू की हत्या के बाद से डर का माहौल बना हुआ है। बांग्लादेशी हिंदूओं का कहना है कि इस्लामवादी बाहरी दुनिया से झूठ बोल रहे हैं कि वे आवामी लीग के समर्थकों को निशाना बना रहे हैं लेकिन यह इस देश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का बहाना है।
