अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 'रेसिप्रोकल टैरिफ' पर एक दिन बाद ही कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। एक फेडरल अपील कोर्ट ने ट्रंप को इमरजेंसी पावर के तहत टैरिफ लगाना जारी रखने की इजाजत दे दी। इससे एक दिन पहले मैनहट्टन की एक ट्रेड कोर्ट ने ट्रंप के 2 अप्रैल को ऐलान किए गए 'रेसिप्रोकल टैरिफ' को लागू करने पर रोक लगा दी थी। ट्रंप सरकार ने इसके खिलाफ अपील की थी।


हालांकि, फेडरल अपील कोर्ट ने अभी इस पर अस्थायी फैसला दिया है। कोर्ट का कहना है कि जब तक अपील पर आखिरी फैसला नहीं आ जाता, तब तक टैरिफ लागू रह सकते हैं।


डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को दुनियाभर के देशों पर 'रेसिप्रोकल टैरिफ' लगाने का ऐलान किया था। ट्रंप ने इसे 'लिबरेशन डे' बताया था। टैरिफ की इन बढ़ी हुई दरों को 9 अप्रैल से लागू किया जाना था, जिसे बाद में ट्रंप ने 9 जुलाई तक टाल दिया था। 

 

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ट्रंप के एडवाइजर बोले- हैरानी वाली बात नहीं है

ट्रंप के ट्रेड एडवाइजर पीटर नैवारो ने कोर्ट के आदेश के बाद कहा, 'इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है। हालांकि हम सभी विकल्पों पर काम कर रहे हैं।'


नैवारो ने कहा, 'हम एक या दो दिन में कारोबारी प्रतिनिधियों से बात करेंगे और जानेंगे कि इस पर कैसे प्रतिक्रिया दी जाए। हम जोरदार तरीके से जवाब देंगे। हमें लगता है कि इस संबंध में हमारे पास सबसे अच्छा मामला है।'


उन्होंने इस बात का इशारा किया कि ट्रंप सरकार अदालतों के जरिए अपील करने के अलावा टैरिफ लगाने के अपने बाकी विकल्पों पर भी सोच-विचार कर रही है।


उन्होंने कहा, 'मैं अमेरिकियों को भरोसा दिलाना चाहता हूं कि ट्रंप का टैरिफ एजेंडा आपकी सुरक्षा के लिए, आपकी नौकरियों, कारखानों को बचाने के लिए और हमारे पैसे को विदेशी हाथों में जाने से रोकने के लिए लागू किया जाएगा।'

 

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क्या था पूरा मामला?

ट्रंप ने दुनियाभर के देशों पर टैरिफ की दरें बढ़ा दी थीं। इसके खिलाफ लिबर्टी जस्टिस सेंटर नाम की संस्था ने केस दायर किया था। सेंटर ने 5 छोटे अमेरिकी कारोबारियों की तरफ से मुकदमा दायर किया था, जो विदेशों से सामान आयात करते हैं। उनका कहना था कि टैरिफ से उनकी लागत बढ़ रही है और उनके व्यवसाय को नुकसान हो रहा है। 


इनके अलावा, 13 अमेरिकी राज्यों ने भी इसे चुनौती दी थी। उनका कहना था कि इससे उनके कारोबार करने की क्षमता को नुकसान पहुंचेगा। इसके अलावा, टैरिफ के खिलाफ कम से कम 5 केस और दाखिल हैं।


फेडरली अपील कोर्ट के आदेश के बाद जस्टिस सेंटर ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि कोर्ट जल्द ही सरकार के प्रस्ताव को यह मानते हुए खारिज कर देगी कि इससे हमारे लोगों को अपूरणीय क्षति पहुंच रही है।'

 

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कोर्ट ने क्यों लगा दी थी रोक

मैनहट्टन की ट्रेड कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सारी दलीलों को खारिज करते हुए कहा, 'इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (IEEPA) के तहत राष्ट्रपति को 'असीमित' शक्तियां नहीं मिली हैं। यह राष्ट्रपति को सिर्फ आपातकाल के दौरान और असामान्य और असाधारण खतरे से निपटने के जरूरी आर्थिक प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता है।'


मैनहट्टन कोर्ट ने यह भी कहा कि IEEPA की कोई भी व्याख्या, जो 'असीमित टैरिफ' का प्रावधान करती है, वह 'असंवैधानिक' है।


इस पर व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने दावा किया कि ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवाने के लिए टैरिफ पावर का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अदालत में कहा कि टैरिफ को लेकर कई देशों के साथ ट्रेड टॉक चल रही है और यह मुद्दा 'नाजुक स्थिति' में है, क्योंकि इन ट्रेड डील को फाइनल करने की आखिरी तारीख 7 जुलाई है। 


ट्रंप सरकार ने दावा किया था कि यह IEEPA ने उन्हें किसी भी देश पर, किसी भी समय, कितना भी टैरिफ लगाने की अनुमति देता है।