राष्ट्रपति बनने से पहले डोनाल्ड ट्रंप बार-बार कहते थे कि अगर वे अमेरिका के राष्ट्रपति होते तो रूस और यूक्रेन में जंग कभी नहीं होती। हालांकि, उनके राष्ट्रपति बनने के लगभग 7 महीने बीत जाने के बाद भी जब रूस और यूक्रेन में जंग नहीं थमी तो ट्रंप इससे झल्ला गए हैं। इस झल्लाहट में ट्रंप अब उन देशों पर टैरिफ 'थोप' रहे हैं, जो रूस के साथ कारोबार कर रहे हैं। इन देशों में भारत भी शामिल है। ट्रंप ने पहले भारत पर 25% टैरिफ लगाया था। अब उन्होंने और ज्यादा टैरिफ लगाने की धमकी भी दी है।

 

सोमवार रात को ट्रंप ने कहा कि भारत, रूस से तेल खरीदकर बेच रहा है और भारी मुनाफा कमा रहा है। उन्होंने भारत पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है।

 

अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर ट्रंप ने लिखा, 'भारत न सिर्फ रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है, बल्कि उसका एक हिस्सा ओपन मार्केट में बेचकर भारी मुनाफा भी कमा रहा है। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि यूक्रेन में रूस की वजह से कितने लोग मारे जा रहे हैं। इसी वजह से मैं भारत पर टैरिफ को काफी हद तक बढ़ाने जा रहा हूं'

 

ट्रंप रूस से तेल खरीदने का हवाला देकर भारत पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे रहे हैं। 25% टैरिफ तो बढ़ा भी चुके हैं। हालांकि, भारत साफ कर चुका है कि वह अपने राष्ट्रीय हित और आर्थिक सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगा।

 

अब ट्रंप टैरिफ की आड़ में मनमानी कर रहे हैं लेकिन वह इसलिए भी झल्लाए हैं, क्योंकि वह खुद को 'शांतिदूत' मानते हैं। इसलिए ट्रंप खुद के लिए ही नोबेल पुरस्कार भी मांग लेते हैं। ट्रंप और उनकी सरकार में शामिल नेता दावा करते हैं कि भारत जैसे देश रूस के साथ कारोबार कर रहे हैं, जिससे उसे पैसा मिल रहा है और वह इसका इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ जंग में कर रहा है। ऐसा कहकर ट्रंप एक तरह से यूक्रेन जंग के लिए भारत और रूस के साथ कारोबार करने वालों को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। ट्रंप और उनके नेता जंग में मारे जाने वालों की दुहाई देते हैं लेकिन खुद अमेरिका का इतिहास बताता है कि वह 'जंग का बहुत बड़ा खिलाड़ी' रहा है।

 

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खून से भरा रहा है अमेरिका का इतिहास!

अमेरिका खुद को 'लोकतंत्र का रक्षक', 'शांतिदूत' और 'जिम्मेदार मुल्क' बताता है। ट्रंप के बेटे डोनाल्ड ट्रंप जूनियर कई बार दावा कर चुके हैं कि 'ट्रंप आधुनिक इतिहास के पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने कोई नई जंग शुरू नहीं की'

 

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि 1945 से 2020 तक अमेरिका में 13 राष्ट्रपति हुए हैं, जिनमें से 4 राष्ट्रपति ऐसे रहे हैं, जिन्होंने अमेरिका को नई जंग में धकेला। 1945 से 2020 तक हैरी एस. ट्रूमैन, लिंडन जॉन्सन, जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश और जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने नई जंग शुरू की है। ड्वाइट आइजनहॉवर, जॉन एफ कैनेडी, रिचर्ड निक्सन, गेराल्ड फोर्ड, जिमी कार्टर, रोनाल्ड रीगन, बिल क्लिंटन, बराक ओबामा और ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका ने नई जंग नहीं शुरू की। जो बाइडेन के कार्यकाल में भी अमेरिका ने किसी देश पर हमला नहीं किया। हालांकि, इसके बावजूद इन राष्ट्रपतियों ने कई देशों के खिलाफ ऐसी कार्रवाइयां कीं, जिन्हें एकतरफा माना गया।

 

हालांकि, अप्रैल 2021 में चीन की चाइना सोसायटी फॉर ह्यूमन राइट्स स्टडीज (CSHRS) ने एक रिपोर्ट जारी की थ। इस रिपोर्ट में बताया था कि 1945 में दूसरा विश्व युद्ध होने के बाद से 2001 तक दुनियाभर में 153 इलाकों में 248 जंग हुई हैं और इनमें से 201 की शुरुआत अमेरिका ने की थी। इसका मतलब हुआ कि 1945 से 2001 के बीच दुनियाभर में जितनी भी जंग हुई, उनमें से 81% अमेरिका ने शुरू की थी।

 

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिका ने ज्यादातर युद्ध एकतरफा शुरू किए और इनमें से कई ऐसे थे, जिनका उसके सहयोगियों ने भी विरोध किया था। इन जंगों में न सिर्फ बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए, बल्कि आम लोगों की भी जान गई और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा। इससे भयावह मानवीय आपदाएं खड़ी हुईं।

 

अमेरिका पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि वह 'लोकतंत्र' और 'मानवाधिकारों' की 'रक्षा' करने के मकसद से युद्ध शुरू कर रहा है। हालांकि, इसके पीछे उसका अपना एजेंडा होता था। यही कारण है कि इसी साल फरवरी में एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कहा था कि 'अमेरिका और पश्चिमी देश जब किसी देश में हस्तक्षेप करते हैं तो उसे लोकतांत्रिक स्वतंत्रता से जोड़ दिया जाता है'

 

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बड़ी जंग, जिन्हें अमेरिका ने शुरू किया

  • कोरियन वॉर: 1950 के दशक में नॉर्थ और साउथ कोरिया के बीच युद्ध शुरू हो गया था। हालांकि, इससे पहले 12 मार्च 1947 को अमेरिकी संसद में हैरी ट्रूमैन ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें कहा गया था कि अमेरिका उन देशों को सैन्य और आर्थिक मदद देगा, जिनपर बाहरी या आंतरिक खतरा है। इसे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कोल्ड वॉर की आधिकारिक शुरुआत माना गया था। 27 जून 1950 को ट्रूमैन ने अपनी सेना कोरिया में उतार दी। इस जंग में करीब 30 लाख लोग मारे गए थे। इस जंग से ही नॉर्थ और साउथ कोरिया बना। इस जंग के कारण करीब 30 लाख लोग शरणार्थी बन गए थे।
  • वियतनाम वॉरः 1954 में जब वियतनाम नॉर्थ और वेस्ट में बंट गया तो कुछ महीनों बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहॉवर ने दक्षिणी वियतनाम के राष्ट्रपति न्गो दीन्ह दीम को अपना समर्थन देने का वादा किया। 1955 और 1960 के बीच दक्षिणी वियतनाम में अमेरिकी सेना की तैनाती बढ़ गई। उनके बाद जब कैनेडी आए तो उन्होंने भी यहां सैनिक बढ़ा दिए। वियतनाम में अमेरिकी युद्ध की आधिकारिक शुरुआत 1964 में तब हुई जब लिंडन जॉन्सन राष्ट्रपति थे। उनके बाद जब रिचर्ड निक्सन बने तो उन्होंने संघर्ष को और तेज कर दिया और कंबोडिया और लाओस तक में बमबारी की। 1972 के आखिरी में अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम पर 36 हजार टन बम बरसाए थे। 1973 में अमेरिका इस जंग से बाहर आ गया। इस जंग में 42 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। अमेरिका की बमबारी में 4 लाख लोगों के मारे जाने का दावा किया जाता है।
  • खाड़ी युद्ध: लिंडसे जॉनससन के बाद जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने अमेरिका को एक नए युद्ध में उतारा था। इस बार अमेरिका ने फारस की खाड़ी में युद्ध लड़ा। इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने 1991 में जब कुवैत पर हमला किया तो इसके जवाब में एक नई जंग शुरू हुई। संयुक्त राष्ट्र ने हस्तक्षेप किया और फिर अमेरिका ने 'ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म' शुरू किया और अपनी सेना उतार दी। इस युद्ध में लगभग 3,500 मौतें हुई थीं। खिरकार इराकी सेना हार गई और कुवैत को छुड़ा लिया गया।
  • अफगानिस्तान में जंगः न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9 सितंबर 2001 को आतंकी हमला हुआ था। यह हमला अल-कायदा ने किया था। इसके एक महीने बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ने जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अफगानिस्तान में सेना उतार दी। इसका मकसद अल-कायदा को खत्म करना था और तालिबान को सत्ता से हटाना था। अमेरिकी सेना ने तालिबान को सत्ता से हटा दिया। अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ जंग में करीब 30 हजार आम लोग मारे गए थे। इस जंग की वजह अमेरिका को भी बहुत नुकसान झेलना पड़ा। अफगानिस्तान में सैनिकों की तैनाती के कारण अमेरिका को हर दिन 6 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ था। अगस्त 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हुई।
  • इराक युद्धः 19 मार्च 2003 को अमेरिका ने इराक को खतरा बताते हुए हमला कर दिया। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश थे और उनका मानना था कि सद्दाम हुसैन के पास मास डिस्ट्रक्शन वाले हथियार हैं। अप्रैल 2003 में सद्दाम हुसैन का तख्तापलट कर दिया गया। 13 दिसंबर 2003 को सद्दाम हुसैन को अमेरिकी सैनिकों ने पकड़ लिया। अमेरिका ले जाकर सद्दाम हुसैन पर मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। 30 दिसंबर 2006 को सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी। आखिरकार 15 दिसंबर 2011 को अमेरिका ने इराक में जंग खत्म करने का ऐलान किया। इस जंग में 4,500 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे। अनुमान है कि इस युद्ध में 2 से 2.5 लाख लोग मारे गए थे।

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ओबामा-ट्रंप भी कम नहीं हैं?

1945 के बाद से 'युद्ध' अमेरिका की विदेश नीति का हिस्सा रहा है, जिसमें उसकी सेना अक्सर विदेशों में शामिल रही है। हालांकि, बहुत सारी सैन्य कार्रवाई को 'नई जंग' नहीं माना जाता। अमेरिकी कांग्रेस ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें 1798 से लेकर अप्रैल 2023 तक अमेरिका की सैन्य कार्रवाइयों की जानकारी थी।

 

उदाहरण के तौर पर, 1961 में जॉन एफ कैनेडी की सरकार में क्यूबा से फिदेल कास्त्रो की सरकार को उखाड़ फेंकने के मकसद से अमेरिकी एजेंसी CIA ने क्यूबा से निर्वासित लोगों को ट्रेनिंग और हथियार दिए, ताकि वे क्यूबा में घुसकर तख्तापलट कर सकें। हालांकि, यह ऑपरेशन पूरी तरह से फेल रहा।

 

इसके बाद रोनाल्ड रीगन की सरकार में लेबनान की राजधानी में अमेरिका ने मरीन कमांडो को तैनात किया। रीगन की सरकार में ही लीबिया के त्रिपोली में बमबारी की गई थी।

 

जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश की सरकार में पनामा से तनाशाह मैनुअल नोरिएगा को बेदखल करने के लिए हजारों अमेरिकी सैनिकों को भेजा गया। इसी सरकार में सोमालिया में भी पीसकीपिंग मिशन के तहत हजारों सैनिक तैनात किए गए।

 

बिल क्लिंटन की सरकार में अमेरिकी सैनिकों को हैती और बाल्कन में भेजा गया। ओबामा सरकार में अमेरिका ने कई महीनों तक लीबिया पर बमबारी की थी। इराक और सीरिया में ISIS के खात्मे के मकसद से अमेरिकी सैनिकों को भेजा गया था।

 

इतना ही नहीं, ट्रंप की सरकार में सीरिया से बशर अल-असद का तख्तापलट करने के मकसद से कई बार बमबारी की गई थी। बाइडेन की सरकार में ईरान पर बमबारी हुई और ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का इल्जाम भी लगा। जनवरी 2025 में दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद जून में अमेरिकी सेना ने ईरान पर बमबारी की। ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने यह बमबारी इसलिए की, क्योंकि ईरान परमाणु हथियार बनाने के करीब पहुंच गया था। उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी सेना ने ईरान की तीन न्यूक्लियर साइट- नतांज, फोरदो और इस्फहान को तबाह कर दिया है।

 

और तो और, दुनिया में अब तक सिर्फ एक बार ही परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ है और वह अमेरिका ने किया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 6 और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला किया था, जिसमें कुछ ही घंटों में 2 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे।