21वीं सदी के वैश्विक व्यापारिक नक्शे पर दो महाशक्तियां – अमेरिका और चीन – लगातार टकराव की स्थिति में हैं। इनकी आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा ने अब एक बार फिर नया मोड़ ले लिया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में 'लिबरेशन डे' की घोषणा करते हुए लगभग सभी देशों के लिए टैरिफ को कम करके 10% तक कर दिया, लेकिन चीन को इस छूट से बाहर रखा। यह कदम सीधे तौर पर चीन की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था पर वार है। नतीजतन, चीन को न केवल आर्थिक झटका लगा, बल्कि उसकी वैश्विक स्थिति पर भी सवाल उठने लगे हैं।
ऐसे समय में चीन अब एक नई रणनीति पर काम कर रहा है। वह अपने पड़ोसी और एशियाई मित्र देशों के साथ रिश्ते और गहरे करने की कोशिश कर रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग हाल ही में कंबोडिया, वियतनाम और मलेशिया की यात्रा पर गए, जहां उन्होंने सहयोग, विकास और स्थिरता की बातें कीं। इसके साथ ही, चीन ने जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भी उच्च-स्तरीय बैठक की, और 8–9 अप्रैल को एक 'पड़ोसी देशों पर केंद्रीय सम्मेलन' आयोजित किया।
यह भी पढ़ेंः टैरिफ की मार पर 'यिवू' का वार, चीन के थोक बाजार में ट्रंप का बना मजाक
बड़े आर्थिक खेल की तैयारी
चीन की यह कूटनीतिक सक्रियता सिर्फ सामान्य मित्रता भर नहीं है, बल्कि एक बड़े आर्थिक खेल की तैयारी है। वह जानता है कि अमेरिका के टैरिफ का मुकाबला अकेले नहीं किया जा सकता, इसलिए वह क्षेत्रीय सहयोग से एक आर्थिक सुरक्षा जाल बुनना चाहता है।
18 अप्रैल को कंबोडिया की राजधानी नॉम पेन्ह में दिए गए अपने बयान में शी जिनपिंग ने कहा कि चीन और कंबोडिया ‘शांति और विकास को बढ़ावा देंगे, विकास को बढ़ावा देंगे और इस अशांत दुनिया में स्थिरता और भरोसे का माहौल बनाएंगे।”
हालांकि उन्होंने अमेरिका का नाम नहीं लिया, लेकिन एक्स्पर्ट्स का मानना है कि यह बयान ट्रंप की टैरिफ नीति के खिलाफ एक कूटनीतिक प्रतिक्रिया थी। इसी कड़ी में कुछ दिन पहले चीन ने जापान और दक्षिण कोरिया के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक भी की, जिससे साफ है कि चीन अपने आसपास के देशों को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है।
क्यों दक्षिण एशियाई देशों को साथ ले रहा चीन
दक्षिण एशिया के इन देशों के चीन के साथ भी करीबी रिश्ते हैं और अमेरिका से भी मजबूत व्यापारिक संबंध हैं। इस क्षेत्र में चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत भारी निवेश किया गया है, लेकिन इस क्षेत्र के देश भी अमेरिका के बाजार पर निर्भर हैं, इसलिए वे दोनों देशों के साथ संतुलन बनाकर चलने की कोशिश कर रहे हैं और चीन भी अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए इनकी तरफ हाथ बढ़ा रहा है।
वियतनाम: बड़ा आयातक
वियतनाम और चीन दोनों ही कम्युनिस्ट देश हैं। हालांकि, दक्षिण चीन सागर में समुद्री सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद है, लेकिन वियतनाम के दोनों देशों के साथ व्यापारिक संबंध हैं।
व्यापारिक आंकड़ों की बात करें तो 2024 में वियतनाम ने चीन से 144 अरब डॉलर का आयात किया, जबकि अमेरिका को 136 अरब डॉलर का निर्यात किया। यानी वियतनाम चीन से कच्चा माल मंगवाता है और उसे प्रोसेस करके अमेरिका में बेचता है।
2025 की पहली तिमाही में वियतनाम ने चीन से 30 अरब डॉलर का माल मंगवाया और अमेरिका को 31.4 अरब डॉलर का निर्यात किया।
ऐसे में चीन वियतनाम की मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को देखते हुए उसे अपना सहयोगी बनाना चाहता है। 2018 के अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध में वियतनाम को भारी मुनाफा हुआ था, क्योंकि कई कंपनियां चीन छोड़कर वियतनाम चली गई थीं।
मलेशिया: चिप्स और टेक्नॉलजी का व्यापार
मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम चीन के समर्थक माने जाते हैं। हालांकि समुद्री मुद्दों पर कुछ विवाद हैं, लेकिन आर्थिक संबंध काफी मजबूत हैं। 2024 में चीन ने मलेशिया को 101.46 अरब डॉलर का माल बेचा, जबकि अमेरिका को सिर्फ 27.7 अरब डॉलर का। वहीं, मलेशिया ने अमेरिका को 52.5 अरब डॉलर और चीन को 110.57 अरब डॉलर का निर्यात किया।
टेक्नोलॉजी की बात करें तो इसकी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। मलेशिया से चीन ने $18 अरब के सेमीकंडक्टर्स (चिप्स) खरीदे, जो मोबाइल, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल होते हैं। अमेरिका को भी मलेशिया ने $16.2 अरब के सेमीकंडक्टर्स भेजे, जो अमेरिका के कुल चिप आयात का 20% है। इस वजह से चीन मलेशिया को अपना एक प्रमुख तकनीकी सहयोगी मानता है।
कंबोडिया: चीन का करीबी
कंबोडिया के वर्तमान नेता चीन के बेहद करीबी माने जाते हैं। चीन ने कंबोडिया में भारी निवेश किया है। जैसे कि $1.7 अरब की ‘फुनान टेक्चो नहर’ में निवेश, जो राजधानी को समुद्र से जोड़ती है।
2024 में चीन और कंबोडिया के बीच $17.83 अरब का व्यापार हुआ, जिसमें ज़्यादातर सामान चीन से आया। वहीं अमेरिका और कंबोडिया के बीच $13 अरब का व्यापार हुआ, जिसमें अमेरिका ने कंबोडिया से $12.7 अरब का माल खरीदा।
कंबोडिया के टेक्सटाइल सेक्टर पर अमेरिका ने 49% तक का टैरिफ लगाया था। यह इसलिए क्योंकि अमेरिका को लग रहा था कि कंबोडिया से ज्यादा सामान आ रहा है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह टैरिफ सही आकलन पर आधारित नहीं है।
यह भी पढ़ें: भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाना आसान नहीं, कही खुद को बीमार न कर ले USA?
जापान साउथ कोरिया के साथ हुई थी बैठक
अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापारिक तनाव के बीच चीन ने कुछ दिन पहले जापान और दक्षिण कोरिया के साथ बैठक की थी। ये दोनों देश न केवल एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, बल्कि चीन के व्यापारिक सहयोगी भी हैं।
इस बैठक में व्यापार, तकनीक और आर्थिक सहयोग पर चर्चा हुई। जापान चीन का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2024 में दोनों देशों के बीच $357.4 बिलियन का व्यापार हुआ था। वहीं दक्षिण कोरिया की बात करें तो चीन और साउथ कोरिया के बीच 2024 में $362 बिलियन का व्यापार हुआ, जो एशिया में सबसे बड़ा है।
हालांकि दोनों देश अमेरिका के रणनीतिक सहयोगी हैं, चीन अब कोशिश कर रहा है कि वे राजनीतिक और आर्थिक रिश्तों को अलग रखे, ताकि इन देशों के साथ व्यापारिक सहयोग बना रहे।
दक्षिण कोरिया की कंपनियां चीन को चिप्स का एक्सपोर्ट करती हैं। जापान से चीन को उन्नत मशीनें और जरूरी कंपोनेंट्स मिलते हैं। चीन इन देशों के साथ तकनीकी सहयोग बढ़ाकर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि अमेरिकी टैरिफ के असर को कम किया जा सके और उसकी मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को जरूरी संसाधन मिलते रहें।
भारत को लुभाने की कोशिश
इस दौरान चीन ने कई बार भारत को भी लुभाने की कोशिश की। चीन ने कहा कि व्यापारिक तौर पर भारत और चीन को साथ मिलकर काम करना चाहिए। संकेत साफ थे कि किसी भी तरह से अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए सारे पड़ोसियों को साथ जोड़ा जाए। हालांकि, भारत ने इस पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। भारत इस पूरे मामले में अपने हिसाब से परिस्थितियों को डील करने की कोशिश कर रहा है।
बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति चीन के लिए एक नई चुनौती लेकर आई है, लेकिन चीन राजनीतिक चतुराई और क्षेत्रीय कूटनीति से इस चुनौती का जवाब दे रहा है। वह एशिया में पड़ोसी देशों के साथ मिलकर इस प्रभाव को कम करना चाह रहा है।