पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया। पाकिस्तान का कहना है पानी रोकने को 'एक्ट ऑफ वार' माना जाएगा। वहां नेता और सेना खुलेआम धमकी देने में उतरी है। मगर भारत का साफ कहना है कि खून और पानी अब एक साथ नहीं बहेगा। पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था और जनता का जीवन सिंधु नदी तंत्र पर निर्भर है। अगर सिंधु नदी तंत्र सूखा तो पाकिस्तान की रगों में बहने वाला खून भी सूख जाएगा। पाकिस्तान को न केवल भारत बल्कि अफगानिस्तान के मोर्चे पर भी मुंह की खानी पड़ रही है। हाल ही में तालिबान के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी जनरल मुबीन ने कुनार क्षेत्र का दौरा किया और पाकिस्तान को जाने वाले पानी रोकने की बात की। अगर अफगानिस्तान ने पाकिस्तान के पानी वाला मोर्चा खोला तो यह पड़ोसी देश के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं होगा। अगर अफगानिस्तान ने पानी रोका तो पाक पर क्या असर होगा, अफगानिस्तान से आने वाले पानी पर उसकी कितनी निर्भरता?
अफगानिस्तान में अमु दरिया, हेलमन, हरिरुद-मुर्गब और काबुल चार मुख्य नदी बेसिन हैं। इनमें से काबुल अफगानिस्तान की सबसे अहम नदी है। हिंदू-कुश के पहाड़ों से निकलने के बाद यह नदी पाकिस्तान के अटक में सिंधु नदी में जा मिलती है। अफगानिस्तान के पास पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हैं। मगर उसका प्रबंधन सही से नहीं किया गया है। अफगानिस्तान के पास सालाना 80 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध होता है। मगर 60 बिलियन क्यूबिक मीटर पाकिस्तान और अन्य देशों में चला जाता है। काबुल नदी के तट पर ही अफगानिस्तान की राजधानी काबुल बसी है। यह नदी 11 प्रदेशों से गुजरती है और लगभग ढाई करोड़ लोगों की रोजी-रोटी इसी पर टिकी है।
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अफगानिस्तान के लिए नदियों का पानी बचाना क्यों जरूरी?
ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे हैं। अफगानिस्तान में बारिश भी कम हो रही है। पानी को स्टोर करने की सुविधा न के बराबर है। काबुल नदी के किनारे आबादी तेजी से बढ़ रही है। बारिश में 60 फीसदी तक गिरावट ने अफगानिस्तान के सामने सूखा और खाद्य संकट खड़ा कर दिया है। अफगानिस्तान की लगभग 80 फीसदी आबादी के पास पीने का साफ पानी नहीं है।
जल संकट के कारण अफगानिस्तान में लगभग 2.60 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। यह संख्या युद्ध के दौरान अपने घर छोड़ने वाले लोगों से भी ज्यादा है। इस देश की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर टिकी है। ऐसे में नदियों के पानी का प्रबंधन करना अफगानिस्तान के लिए बेहद अहम है, लेकिन दिक्कत यह है कि अफगानिस्तान ने कोई कदम उठाया तो इसका पाकिस्तान पर विपरीत असर पड़ेगा।
पाकिस्तान अफगान पानी पर कितना निर्भर?
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की पूरी अर्थव्यवस्था काबुल नदी पर टिकी है। यहां सिंचाई, पीने का पानी और बिजली का सबसे बड़ा जरिया काबुल नदी है। पाकिस्तान ने 1960 में काबुल नदी पर वारसाक बांध बनाया था। यहां 250 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। पाकिस्तान के पेशावर जैसे शहर इसी बिजली पर निर्भर हैं। पाकिस्तान को डर है कि अगर अफगानिस्तान ने अपने हिस्से में काबुल नदी पर बांधों का निर्माण किया तो वारसाक नहर को लगभग 11 फीसदी कम पानी मिलेगा। इससे खैबर पख्तूनख्वा में सिंचाई और पेयजल का संकट खड़ा होना लाजिमी है।
भारत की इस चाल से बढ़ जाएगा पाकिस्तान का संकट
भारत ने अफगानिस्तान में काबुल नदी की सहायक नदी मैदान पर शहतूत बांध बनाने का प्रस्ताव दे रखा है। साल 2021 में दोनों देशों के बीच एक समझौता भी हुआ था। मगर तालिबान के सत्ता में आने के बाद प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया था। अब पाकिस्तान के साथ तनाव के बीच भारत ने तालिबान के साथ संपर्क बढ़ाया है।
माना जा रहा है कि भारत ने शहतूत बांध के निर्माण में अपनी दिलचस्पी दिखाई है। मगर पाकिस्तान इसका विरोध पहले से ही कर रहा है। उसका मानना है कि बांध के निर्माण से उसे मिलने वाले पानी की मात्रा में कमी आना तय हैं। सिंधु जल संकट के बीच अगर अफगानिस्तान ने ऐसा किया तो पाकिस्तान की उपजाऊ भूमि का बंजर बनना लगभग तय है।
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शहतूत डैम से अफगानिस्तान को कितना फायदा?
शहतूत डैम को 236 मिलियन डॉलर की लागत से बनाया जाना था, लेकिन मौजूदा लागत अब और बढ़ सकती है। डैम के बनने से काबुल में रहने वाले 20 लाख लोगों को पीने का साफ पानी मिल सकेगा। चार हजार हेक्टेयर भूमि में सिंचाई का पानी भी मिलेगा। काबुल के पास देह सब्ज नाम का एक नया शहर बसा है। शहतूत डैम बनने से इस शहर को भी पानी मिल सकेगा। भारत ने अफगानिस्तान के हेरात प्रांत के चिश्ती शरीफ जिले में हरी नदी पर सलमा डैम का निर्माण कर चुका है। इसे अफगान-भारत मैत्री बांध के नाम से भी जाना जाता है। भारत काबुल नदी बेसिन पर 12 बांध बनाना चाहता है। अगर ऐसा करना संभव होता तो पाकिस्तान का संकट काफी हद तक बढ़ जाएगा।