भारत से पूर्व दिशा में सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के पास एक छोटा सा देश कतर है। इतना छोटा कि मैप पर जूम करने के बाद ही यह देश दिखाई पड़ता है। मगर यहां की राजधानी दोहा पिछले कुछ दिनों में दुनिया का 'पंचायत घर' बनकर उभरी है। कतर जितना पश्चिमी दुनिया से जुड़ा है, उतना ही कट्टर इस्लामी संगठनों में भी उसकी पैठ है। एक तरफ कतर अमेरिका का खास है तो दूसरी तरफ ईरान, हमास और तालिबान से उसके सीधे संबंध हैं। पिछले तीन दशकों में उसने एक खास रणनीति अपनाई है। इसके तहत कतर का फोकस ज्यादा से ज्यादा दोस्त बनाने और दुश्मनों की संख्या कम करने पर है। दोहा आज एक ऐसा कैफे बन चुका है, जहां दोस्त और दुश्मन एक साथ बैठ सकते हैं। आज जानते हैं कि कतर कैसे 'छोटा यूएन' बना।
कतर को 1971 में आजादी मिली थी। 24 साल बाद 27 जून 1995 को शेख हमाद बिन खलीफा कतर के पहले अमीर बने। उन्हें अमेरिका का समर्थन मिला हुआ था। हमाद बिन खलीफा ने तय किया कि वह कतर को भू-राजनीति में एक बड़ा प्लेयर बनाएंगे। उन्होंने अल जजीरा चैनल की शुरुआत की और दुनियाभर में कतर का एजेंडा सेट करना शुरू किया। वही इस्लामी गुटों को आर्थिक मदद दी। अपने यहां शरण दी, ताकि इन गुटों पर भी कतर का खासा प्रभाव बना रहे।
गैस रणनीति
हमाद ने कतर को प्राकृतिक गैस उत्पादन की तरफ शिफ्ट किया। जापान से यूरोप तक कतर की गैस से चूल्हे चलने लगे। इससे होने वाली कमाई का इस्तेमाल कतर ने कई देशों पर अपना प्रभाव जमाने पर किया। वहीं पश्चिमी देशों में कतर की सॉफ्ट पावर मजबूत हुई।
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शिक्षा की रणनीति
कतर ने अपने प्रभाव को बढ़ाने के खातिर एक नई रणनीति अपनाई। उसने 1997 में एजुकेशन सिटी बनाई। इसका उद्घाटन अमीर की पत्नी शेखा मोजा बिंत नासर ने किया। दुनिया भर के विश्वविद्यालयों को कतर में अपना कैंपस खोलने का न्योता दिया गया। आज कतर में दुनिया के कई बड़े शिक्षण संस्थान हैं। इसके माध्यम से भी उसने अपने प्रभाव का विस्तार किया। अमेरिका को अपने पाले में किया
कैसे अमेरिका का करीबी बना कतर?
9/11 हमले के बाद अमेरिका मध्य पूर्व में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाना चाहता था। इस मौके का फायदा कतर ने उठाया। उसने साल 2003 में अमेरिका को अल-उदीद एयरबेस सौंप दिया। यहां आज अमेरिकी सेंट्रल कमांड का मुख्यालय है। इसके बदले में अमेरिका ने कतर को सुरक्षा की गारंटी दी। मगर ईरान के साथ अपने संबंधों को कभी नहीं बिगाड़ा। उधर, तलिबान, मुस्लिम ब्रदरहुड और हमास जैसे नेताओं को अपने यहां शरण दी और आर्थिक मदद पहुंचाई। उसकी इस रणनीति के कारण कतर के सबंध अमेरिका और कट्टर इस्लामी संगठनों से एक जैसे थे।
अमेरिका लेता है कतर की मदद
अमेरिका तालिबान के खिलाफ था। कतर तालिबान के संपर्क में था। वह हमास के करीब भी रहा और इजरायल के भी। उसकी इसी रणनीति ने कतर को एक ऐसा देश बना दिया, जो दोस्त और दुश्मन से एक साथ बात करने की क्षमता रखता था। अमेरिका जिन संगठनों से सीधे बात नहीं कर सकता था, उसमें वह कतर की मदद लेता। आज दुनिया के कई समझौतों में कतर की भूमिका बेहद अहम रही है।
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इन समझौतों में रही कतर की अहम भूमिका
- हिजबुल्लाह समझौता: साल 2008 में हिजबुल्लाह ने लेबनान की राजधानी बेरूत के कुछ इलाकों में कब्जा कर लिया था। यह संकट गृह युद्ध में बदल सकता था। मगर 2009 में कतर ने लेबनान की सरकार और हिजबुल्लाह के बीच समझौता करवाया। समझौते के तहत हिजबुल्लाह को भी सरकार में शामिल किया। यह समझौता इसलिए खास है कि हिजबु्ल्लाह को ईरान फंड देता है। अमेरिका का करीबी होने के बावजूद कतर ने यह समझौता करवाया, जबिक ईरान हमेशा अमेरिका के खिलाफ रहा है।
- इजरायली बंधक समझौता: कतर फलस्तीन को आर्थिक मदद पहुंचाता है। वह फलस्तीन का समर्थक है। हमास को दोहा में अपना ऑफिस खुलने की अनुमति दी। मुखिया इस्माइल हानिया को शरण दी। मगर 2023 में हमास और इजरायल युद्ध में अमेरिका को कतर से ही मदद मांगनी पड़ी। कतर ने ही इजरायल और हमास के बीच बंधकों की रिहाई का समझौता करवाया था।
- अमेरिका-तालिबान: 2013 में हमाद ने अपनी सत्ता बेटे शेख तमीम बिन हमद अल थानी को सौंप दी। मगर कतर की यह विदेश नीति आज भी जारी है। कहा जाता है कि कतर का विदेश मंत्रालय दुनिया के सबसे व्यस्त विदेश मंत्रालयों में से एक है। 2021 में अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना को निकालने का फैसला किया। मगर इसमें कतर की भूमिका बेहद अहम रही। अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से कतर पहुंचे थे। इसके अलावा उसने तालिबान से बात करके अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया।
- सैनिकों की रिहाई करवाई: कतर ने ईरान और अमेरिका के बीच मध्यस्थता करके पांच अमेरिकी सैनिकों को रिहा करवाया था। बदल में अमेरिका ने ईरानी फंड में 6 बिलियन डॉलर की रोक हटाई थी। इसके अलावा उसने परमाणु समझौते में भी खास भूमिका निभाई थी।
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एनपीआर से बातचीत में कतर के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मेहरान कामरावा का कहना है कि अमेरिका को जब तालिबान से बात करना होता है तो वह कतर के माध्यम से करता है। जब अमेरिका ईरान के साथ अपने कैदियों की रिहाई चाहता है तो भी कतर को याद करता है। संकट में कतर की यह विदेश नीति अमेरिका के काम आती है।
इजरायल भी नहीं चाहता कतर की नाराजगी
जुलाई 2024 में हमास के सरगना स्माइल हानिया को ईरान की राजधानी तेहरान में मारा गया था। मगर साल 2017 से हानिया अधिकांश अपना समय कतर की राजधानी दोहा में बिताया। मगर इजरायल ने कभी उसे कतर में मारने की कोशिश नहीं की। वह खुलेआम वहां घूमता था। मगर हानिया के तेहरान पहुंचते ही इजरायल ने उसे ठिकाने लगा दिया। दरअसल, विश्लेषकों का मानना है कि कतर की नाराजगी इजरायल के लिए अच्छी नहीं थी। हमास के साथ कई समझौतों में कतर ने अहम भूमिका निभाई है। यहां तक कि बंधकों को रिहा करवाने में कतर की भूमिका खास थी।