क्या आपने कभी सोचा है कि जेब्रा की काली-सफेद धारियां सिर्फ दिखावे के लिए ही नहीं, बल्कि मक्खियों से बचाने में भी मददगार हो सकती हैं? जापान के वैज्ञानिकों की टीम ने इस बात को साबित कर दिया है कि जेब्रा की काली-सफेद धारियां मक्खियों से बचाने में मदद करती हैं। दिलचस्प बात यह है कि इसके लिए उन्होंने अपना एक्सपेरिमेंट जेब्रा पर नहीं, बल्कि गायों पर किया है। उन्होंने गायों को ही जेब्रा जैसा पेंट कर दिया। इसके बाद उन्होंने पाया कि जिन गायों पर जेब्रा जैसी धारियां थीं, उन पर मक्खियां कम मंडराती हैं। 


इसके लिए जापान की टीम को 2025 के 'Ig नोबेल प्राइज' से सम्मानित किया गया है। यह लगातार 19वां साल है, जब जापान को बायोलॉजी में यह पुरस्कार मिला है।


जापान की इस टीम को तोमोकी कोजिमा ने लीड किया था, जो जापान के नेशनल एग्रीकल्चर एंड फूड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन से जुड़े हैं। उन्होंने अपनी रिसर्च में 6 गायों का इस्तेमाल किया था। जब कोजिमा को यह सम्मान दिया गया तो उनकी टीम के लोग मक्खी की तरह बनकर उनके आसपास मंडराने लगे। फिर उन्होंने अपनी जैकेट उतारकर जेब्रा वाली एक शर्ट दिखाई। 

 

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कैसे किया गया यह एक्सपेरिमेंट?

इस  एक्सपेरिमेंट के लिए कोजिमा और उनकी टीम ने काले रंग की 6 गायें लीं। दो गायों पर सफेद रंग के पेंट से धारियां बनाई गईं। दो पर पेंट से काले रंग की धारियां बनाई गईं जबकि दो पर कोई पेंट नहीं किया गया।

 


इसके बाद टीम ने इस पर गौर किया कि गायों पर मक्खियां कितनी बार बैठती हैं और कितनी बार वे चिड़चिड़ा बर्ताव करती हैं। नतीजे चौंकाने वाले थे। जिन गायों पर कोई पेंट नहीं था, उनकी तुलना में जेब्रा जैसी धारियों की पेंट वाली गायों पर मक्खियां कम बैठी थीं। जिन गायों पर पेंट किया गया था, उनमें चिड़चिड़ापन कम था, जिससे तनाव में कमी का संकेत मिलता है।

क्यों फायदेमंद है यह रिसर्च?

जापान के वैज्ञानिकों की टीम की इस रिसर्च ने न सिर्फ जापान, बल्कि दुनियाभर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस रिसर्च को किसानों के लिए फायदेमंद माना जा रहा है।


साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) की रिपोर्ट के मुताबिक, जापान के यामागाट प्रांत के किसानों ने दो साल पहले ही इस तरीके को आजमाना शुरू कर दिया था। गायों को जेब्रा जैसे रंगने के लिए हल्के ब्लीच या सफेद स्प्रे पेंट का इस्तेमाल किया गया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब गायें बाहर जाती थीं तो मक्खियां मंडराने लगती थीं, जिससे न सिर्फ गायों का बर्ताव चिड़चिड़ा हो रहा था, बल्कि उनमें बीमारियां भी फैल रही थीं।

 


2024 में यामागाट के रिसर्चर्स ने पाया था कि जिन गायों में जेब्रा जैसी धारियां थीं, उन्होंने एक मिनट में मक्खियों से बचने की कोशिश सिर्फ 5 बार की। वहीं, जिन गायों पर कोई रंग नहीं था, उन्होंने हर महीने 16 बार बचने की कोशिश की। इसका मतलब हुआ कि जिन पर धारियां थीं, उनपर एक मिनट में 5 बार ही मक्खियां मंडराईं। 


हालांकि, अब तक इस बात का कोई ठोस कारण नहीं मिला है कि काली-सफेद धारियां कैसे मक्खियों को दूर भगाने में मदद करती हैं। 2014 में बायोलॉजिस्ट टिम कैरो ने एक स्टडी की थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि काली-सफेद धारियां मक्खियों को कन्फ्यूज कर देती हैं और वह समझ नहीं पाती हैं कि उन्हें कहां जाकर बैठना या मंडराना है।

 

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क्या है Ig नोबेल प्राइज?

यह हर साल अजीबोगरीब रिसर्च और स्टडीज के लिए मिलता है। हर साल अमेरिका की मैसाचुएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में इसकी अवॉर्ड सेरेमनी होती है। 


यह अवॉर्ड ऐसी रिसर्च और स्टडीज को मिलता है, जो सुनने में भले ही अजीबोगरीब लग सकती हैं लेकिन होती फायदेमंद हैं। यह अवॉर्ड 'Annals of Improbable Research' यानी AIR मैगजीन की ओर से दिए जाते हैं। AIR के को-फाउंडर मार्क अब्राहम्स ने एक बार कहा था, 'ये रिसर्च पहले हंसाती हैं, फिर सोचने पर मजबूर करती हैं।'


यह अवॉर्ड नोबेल विजेताओं की ओर से दिया जाता है। 'Ig नोबेल प्राइज' जीतने वाले विजेता को अपनी स्पीच देने के लिए सिर्फ 60 सेकंड मिलते हैं।