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H-1B Visa: फीस बढ़ाकर कितना कमा लेंगे ट्रंप, आंकड़े से गणित समझिए

ट्रंप ने एच-1बी वीजा पर फीस बढ़ा दी है। इसका मुख्य उद्देश्य कमाई तो नहीं है। फैसले का लक्ष्य अमेरिका में आने वाले बाहरी कर्मचारियों को रोकना है। बावजूद इसके अगर कोई अमेरिका आता तो फीस चुकानी पड़ेगी। अब जानते हैं कि सिर्फ इस फीस से कितनी कमाई हो सकती है।

H-1B Visa.

एच-1बी वीजा पर फीस बढ़ी। (AI generated image)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा पर एक लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की फीस लगा दी। अमेरिका के इस कदम को भारतीयों के लिए झटका माना जा रहा है, क्योंकि अमेरिकी टेक कंपनियों पर काम करने वाले अधिकांश भारतीय इसी वीजा के दम पर टिके हैं। ट्रंप प्रशासन के मुताबिक यह फीस सिर्फ एक बार चुकानी होगी। 21 सितंबर से पहले आवेदन करने वालों को छूट रहेगी। अगर कोई शख्स पहले से ही एच-1बी वीजा धारक है तो उसे कोई फीस नहीं देनी पड़ेगी।

 

आइये समझते हैं एच-1बी वीजा का पूरा गणित। अभी तक कितनी फीस लगती है, भारतीयों को पिछले साल कितना वीजा मिला, बदलाव से अमेरिका को कितनी कमाई होगी और कौन सी कंपनी कितने एच-1बी वीजा हासिल कर चुकी है। 2009 से 2025 तक एच-1बी वीजा के पैटर्न में कैसा बदलाव आया है?

 

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एच-1बी वीजा से कैसे और कितनी कमाई करता है अमेरिका?

21 सितंबर तक एच-1बी वीजा पर 2,000 से 5,000 डॉलर तक की फीस लगती है। इसका निर्धारण कंपनी के आकार के आधार पर किया जाता था। कंपनी जितनी बड़ी उतनी अधिक फीस वाला सिद्धांत लागू होता है। मगर अब ट्रंप प्रशासन एच-1बी वीजा पर 1 लाख डॉलर वसूलेगी। अब समझते हैं कि अमेरिका फीस से अभी तक कितना कमाता है और नई फीस लागू होने के बाद अनुमानित कितनी कमाई कर सकता है?

 

अमेरिका अभी एच-1बी वीजा पर फीस और सरचार्ज से कमाई करता है। फीस का भुगतान कंपनी अमेरिकी की सरकार को करती है। फाइलिंग फीस के नाम पर 460 डॉलर लगते हैं। कंपनियों को ट्रेनिंग फीस भी देनी होती है। अगर कोई कंपनी 25 कर्मचारियों से छोटी है तो उसे 750 और इससे बड़ी कंपनी को 1,500 डॉलर का भुगतान करना होता है। 500 डॉलर फ्रॉड प्रिवेंशन और डिटेक्शन फीस के तौर पर चुकाने होते हैं। 205 डॉलर का वीजा स्टैंपिंग फीस लगती है। एक एच-1बी वीजा आवेदन पर मोटा-माटी  2,000 से 5,000 डॉलर का खर्च आता है।

 

अब कमाई का पूरा गणित एक उदाहरण से समझते हैं। 2024 में भारतीयों को कुल 150,647 वीजा मिले। दुनियाभर से कुल 477,000 आवेदन मिले। इनमें से 283,000 सिर्फ भारत के  थे। मान लेते हैं कि एक एच-1बी वीजा पर सिर्फ 2,500 की फीस लगती है तो भारत ने एक साल में सिर्फ भारतीय एच-1बी वीजा अप्रूवल्स से ही 700 मिलियन डॉलर से ज्यादा की कमाई का अनुमान है। भारतीय रुपये में यह राशि करीब 5,794.6 करोड़ रुपये बनती है। अगर सभी देशों के वीजा आवेदन को मिला दें तो अमेरिकी कमाई करीब 1.2 से 1.5 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

एक लाख डॉलर के बाद की गणित भी समझें 

अब ट्रंप के एक लाख वाली फीस के हिसाब से एच-1बी वीजा का गणित समझते हैं। मान लेते हैं कि पिछले साल की तरह अगले साल भी भारतीयों को 150,647 वीजा मिले तो भारतीय कर्मचारियों के नाम पर ट्रंप प्रशासन 150,647 × 100,000= 150.6 बिलियन डॉलर की कमाई कर सकता है। पिछले साल अमेरिका को कुल 477,000 एच-1बी वीजा आवेदन मिले। इनमें से 200,000 आवेदन को वीजा स्वीकृति किया गया।

 

  • 200,000 जारी एच-1बी वीजा।
  • 100,000 डॉलर प्रति वीजा फीस।
  • 200,000 × 100,000 = 200 बिलियन डॉलर।

क्या संभव है ट्रंप का प्लान?

मतलब साफ है कि 1.5 मिलियन की तुलना में अमेरिकी की कमाई 200 गुना बढ़ सकती है। हालांकि यह एक मोटा अनुमान है। अधिकांश कंपनियां इतनी भारी भरकम फीस वहन नहीं कर सकेंगी। वह अन्य देशों की तुलना में अमेरिकियों को अधिक भर्ती करेंगी, ताकि मोटी फीस से बचा जा सकता है। एक शंका यह भी है कि एच-1बी वीजा सिस्टम खत्म भी हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका की तकनीकी, हेल्थ और रिसर्च कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

एच-1बी वीजा हासिल करने वाले टॉप 5 देश

एच-1बी वीजा हासिल करने के मामले में भारतीयों का किसी से कोई मुकाबला नहीं है। पिछले साल अमेरिका ने जितने वीजा को मंजूरी दी, उनमें से 71 फीसदी भारतीय टेक दिग्गजों की झोली में पहुंचे। अगर आंकड़ों में बात करें तो 2024 में 150,647 भारतीयों को एच-1बी वीजा मिले। 

 

  • 11.7 फीसद वीजा के साथ चीन दूसरे स्थान पर।
  • तीसरे स्थान पर फिलीपींस, 1.3 फीसदी वीजा।
  • 1.1% वीजा के साथ कनाडा चौथे स्थान पर।
  • पांचवे स्थान पर दक्षिण कोरिया, 1% वीजा मिले।

एच-1बी वीजा हासिल करने वाली भारत की टॉप चार कंपनियां

अमेरिका के नागरिकता एवं आव्रजन सेवा (USCIS) के आंकड़े बताते हैं कि भारत की कंपनियां सबसे अधिक एच-1बी वीजा धारक कर्मचारियों को लाती हैं। इस मामले में साल 2009 से 2025 तक भारत की चार कंपनियां टॉप पर हैं।  

 

  • टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी टीसीएस को सबसे ज्यादा 98,259 एच-1बी वीजा मिले।
  • कॉग्निजेंट दूसरे स्थान पर है। उसे 16 साल में  92,435 वीजा मिले।
  • इंफोसिस को 87,654 वीजा मिले। वह सूची में तीसरे स्थान पर है।
  • 77,289 वीजा के साथ विप्रो चौथे स्थान पर काबिज है।

2015 से 2025 तक कैसे बदला पैटर्न?

पिछले 10 वर्षों में एच-1बी वीजा हासिल करने के पैटर्न में बदलाव आया है। अब टॉप 5 कंपनियों में दो अमेरिकी कंपनी भी शामिल हो गई हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है कि अमेरिकी कंपनियां भारत जैसे देशों से कम वेतन पर कर्मचारियों नौकरी पर रखती है। इन कर्मचारियों के पास हाई स्किल होती है और उन पर अमेरिकी लोगों की तुलना में कम खर्च भी करना पड़ता है। 2015 से 2025 तक सबसे अधिक एच-1बी वीजा पाने वाले कंपनियों में तीन भारतीय हैं। पहले स्थान पर टीसीएस है। दूसरे पर कॉग्निजेंट और तीसरे पर इंफोसिस है। चौथे स्थान पर माइक्रोसॉफ्ट और पांचवें पर गूगल है।

 

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अमेरिकियों के आरोपों में कितना दम?

अमेरिकी सरकार में शामिल लोग और वहां की आम जनता भारतीय कंपनियों पर सिर्फ भारतीयों को नौकरी पर रखने का आरोप लगाती रहती है। पिछले साल भारतीय कंपनी टीसीएस के खिलाफ अमेरिका में एक मुकदमा दायर किया गया। इसमें कंपनी एक पूर्व कर्मचारी ने आरोप लगाया कि भारतीय कर्मचारियों को रखने के लिए कंपनी ने अमेरिकी कर्मचारियों को कंपनी से निकाल दिया। मगर 2020 के बाद से बदला पैटर्न अलग ही संकेत दे रहा है। 2020 के बाद सबसे अधिक एच-1बी वीजा अमेरिकी कंपनियों को मिले।2025 के पहले छह महीने में टीसीएस को 5,505 वीजा मिले। वह टॉप 10 में शामिल इकलौती भारतीय कंपनी है। नीचे आंकड़े में समझते हैं।

 

2020 के बाद किस कंपनी को कितने वीजा मिले
कंपनी  प्राप्त  एच-1बी वीजा
अमेजन 43,375
इंफोसिस 43,332
टीसीएस   38,138
गूगल 35,736 
माइक्रोसॉफ्ट   35,356

 

                
                 

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