बांग्लादेश से 17 साल तक बचकर भागते रहे तारिक रहमान, अपने देश लौट आए हैं। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की कमान अब उनके हवाले है। एक जमाने में बांग्लादेश की पुलिस उन्हें भगोड़ा घोषित कर चुकी थी, अब उनकी स्वागत में पुलिसकर्मी उमड़ पड़े हैं। साल 2008 में गिरफ्तारी और उम्रकैद से बचने के लिए वह भागकर लंदन चले गए थे। वह कई संगीन मुकदमों के आरोपी रहे, कुछ मामलों में सजा तक हो गई। उनके आने से बांग्लादेश का कट्टरपंथी समूह बेहद उत्साहित है। शेख हसीना की आवामी लीग के चुनाव लड़ने पर बैन है, ऐसे में हो सकता है कि फरवरी में होने वाले आम चुनावों के बाद वह प्रधानमंत्री भी बने। उनकी आमद, भारत की सीमा सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती है।
तारिक रहमान की पार्टी बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी को कट्टरपंथी समर्थन देते रहे हैं। वह खालिदा जिया के बेटे हैं, जिनके दौर में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते हाशिए पर पहुचं गए थे। खालिदा जिया के शासन में बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अत्याचार की खबरें आम थीं, राष्ट्रवादी बांग्लादेशी मुस्लिमों के बीच भारत विरोधी सुर पनपने लगे थे। सीमाओं पर छुटपुट झड़प भी हुई थी। खालिदा जिया, पाकिस्तान के ज्यादा करीब रहीं हैं। तारिक रहमान अभी बेहतर रिश्तों की वकालत तो करते हैं लेकिन क्या उनकी पार्टी का अतीत ऐसा रहा है, आइए समझते हैं।
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खालिदा जिया की BNP के अच्छे दिन कैसे आए?
अगस्त 2024 में शेख हसीना, बांग्लादेश के हिसंक प्रदर्शनों में जान बचाकर भारत आईं थीं। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया, कई संगीन मामलों में जेल में बंद थीं। उन्हें नजरबंद रखा गया था। बांग्लादेश का मुख्य विपक्षी दल, बांग्लादेश नशनलिस्ट पार्टी है। खालिदा जिया इसी पार्टी की चीफ हैं, अब उनके बेटे तारिक रहमान के सिर पर बड़ी जिम्मेदारी है। अंतरिम सरकार ने 12 फरवरी 2025 को चुनाव कराने का फैसला किया है। तारिक रहमान ने अपनी पार्टी की तरफ से ढाका में नामांकन भी दाखिल कर दी है।
भारत के लिए चिंता क्या है?
बांग्लादेश में ऐसी संभावनाएं बन रहीं हैं कि 2024 तक, मुख्य विपक्षी पार्टी रही बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी, चुनाव में जीत जाए। शेख हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग के चुनाव लड़ने पर ही प्रतिबंध लगाया गया है। अगर खालिदा जिया की पार्टी सत्ता में आती है तो भारत को ज्यादा चौकन्ना रहने की जरूरत पड़ेगी। खालिदा जिया की पार्टी, पाकिस्तान परस्त है। इस पार्टी की संभावित सहयोगी जमात-ए-इस्लामी का रुख हमेशा से भारत विरोधी रहा है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने भारत द्वारा हसीना को शरण देने पर नाराजगी जताई है। बीएनपी नेताओं ने सार्वजनिक मंचों से कई बार कहा है कि बांग्लादेश और भारत के बीच आपसी सहयोग होना चाहिए। उनका कहना है कि भारत, शेख हसीना की मदद करता है, इसलि भविष्य में सहयोग बेहद मुश्किल होगा।
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खालिदा जिया के शासनकाल में हुआ क्या था?
शेख हसीना और खालिदा जिया की राजनीतिक दुश्मनी दशकों पुरानी है। बांग्लादेशी मीडिया में 'बैटल ऑफ बेगम्स' की जंग चर्चा में रही है। यह दुश्मनी हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान की 1975 में सैन्य तख्तापलट के बाद हत्या से शुरू हुई थी। उस समय खालिदा जिया के पति जियाउर रहमान सेना में थे। उन्होंने बाद में बांग्लादे सत्ता संभाली। जियाउर रहमान ने आर्थिक सुधार किए लेकिन 1981 में उनकी हत्या हो गई। खालिदा जिया, पहले राजनीति से तो दूर थीं लेकिन जब बीएनपी की नेता बनीं और तो सैन्य शासक तानाशाह इरशाद के खिलाफ आंदोलन पर उतरीं। 1990 के दशक में खालिदा जिया और शेख हसीना के लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों की वजह से उन्हें अपने पद से हटना पड़ा।
खालिदा जिया 1991-1996 और 2001-2006 के बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं। उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल में भारत के साथ रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं। वह धुर दक्षिणपंथी नेता हैं, इस्लामिक राष्ट्रवाद की पक्षधर हैं। उन्हें समर्थन देने वाले ज्यादार संगठनों की विचारधारा भी इस्लामिक ही है। खालिदा जिया का पहला कार्यकाल 1990 के दशक में रहा। दुनिया के ज्यादातर देश, अपनी अर्थव्यवस्था के उदारीकरण पर जोर दे रहे थे, बांग्लादेश ने भी ऐसा ही किया और वहां विकास हुआ।
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उनके दूसरे कार्यकाल विवादित रहा। साल 2001 से लेकर 2006 तक, उनके कार्यकाल में कट्टरपंथ पढ़ा, इस्लामिक हमले हुए भारत के साथ सीमा विवाद हुए। खालिदा जिया की सरकार में कट्टरपंथियों के हौसले इसने बुलंद थे कि एक हमले में शेख हसीना बाल-बाल बचीं थीं। खालिदा जिया की सरकार में ही उनके इस्लामिक सहयोगियों ने 2004 में हसीना की रैली पर ग्रेनेड से हमला किया था। 20 से ज्यादा लोग मारे गए और 500 से ज्यादा लोग घायल हो गए। कई साल बाद, उनके सबसे बड़े बेटे पर उनकी गैरमौजूदगी में हमले के लिए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। खालिदा का प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल 2006 में समाप्त खत्म हुआ। इस बीच में जो कुछ हुआ, उसे कोई भूल नहीं पाया।
भारत के लिए चिंता क्या है?
खालिदा जिया शासन काल में बांग्लादेश में भारत विरोधी ताकतों और भारत के खिलाफ काम कर रहे आतंकियों को जगह मिली। साल 2001 से 2006 के बीच में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने ढाका में गढ़ बना लिया था। भारत में हुए आतंकी हमलों की भूमिका भी यहां से तैयार हुई। उत्तर-पूर्व के उग्रवादी समूहों के कई नेता बांग्लादेश में छिपे रहे।
बांग्लादेश में मौजूद 'हरक-उल-जिहाद-अल-इस्लामी बांग्लादेश' ने जैसे संगठनों के पाकिस्तानी लिंक थे। शेख हसीना सरकार ने इसे बांग्लादेश में प्रतिबंधित किया। यूके में भी यह प्रतिबंधित आतंकी संगठन है।
साल 1991 के दौरान हुए चुनावों में खालिदा जिया की सरकार पर पाकिस्तान से फंडिंग लेने के भी आरोप लगे। साल 1996 में खालिदा जिया सरकार के दौरान नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) के लड़ाकों को बांग्लादेश में ट्रेनिंग मिली, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के लड़ाकों को भी बांग्लादेश पनाह दे रहा था। भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए हमेशा चुनौती बनी रही।
तारिक रहमान अगर पीएम बने तो क्या हो सकता है?
साल 2014 और 2019 चुनावों से पहले ISI और बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी के बीच साठ-गांठ की कई खबरें सामने आईं। तारिक रहमान पर ISI, उल्फा और दाऊद इब्राहिम से तगड़े कनेक्शन के आरोप हैं। वह चीन के साथ बेहतर रिश्तों के पक्षधर हैं। खालिदा जिया का भी चुनाव पड़ोसी भारत की तुलना में चीन की तरफ ज्यादा रहा है। साल 1971 के 'मुक्ति संग्राम' में चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया था। जब मुजीबुर्रहमान की हत्या हुई थी, तब बांग्लादेश की सेना, बीएनपी के और करीब आ गई। चीन भी भारत के खिलाफ बांग्लादेश में बीएनपी की मदद करता है, ऐसे आरोप लगे। दागदार अतीत की वजह से भारत और बांग्लादेश के साथ रिश्ते बिगड़ने की आशंका है।
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अतीत, जिसने भारत को दहला दिया था
भारत अप्रैल 2001 में बांग्लादेश राइफल्स की बर्बरता कभी नहीं भूल सकता है। बांग्लादेश राइफल्स के सैनिक और स्थानीय उग्रवादियों ने भारत के 16 जवानों की बर्बरतापूर्ण हत्या की थी। रंगपुर डिवीजन के कुरिग्राम जिले के बोराइबारी गांव में सैनिकों की क्षत-विक्षत लाशें मिलीं थीं। उनके शवों को रस्सियों से बांधकर खंभे में लटका दिया गया था। कुछ की आंख में गोली मारी गई थी, किसी के नाखून तक नोच लिए गए थे। इस हत्याकांड से दोनों देशों के बीच रिश्ते और तल्ख रहे।
अब अलर्ट होने की जरूरत क्यों है?
बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी एक बार फिर मजबूत हुई है। खालिदा जिया बीमार हैं, अस्पताल में भर्ती हैं। उनके बेटे तारिक रहमान लंदन से लौट आए हैं और पार्टी चला रहे हैं। शेख हसीना भारत में निर्वासन काट रहीं हैं। मोहम्मद यूनुस सरकार में पहले ही भारत-बांग्लादेश के बीच राजनायिक वार्ता, हाशिए पर है। बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न चरम पर है। भारतीयों को निशाना बनाया जा रहा है।
खालिदा जिया के नेतृत्व में बीएनपी की नीतियां भारत-विरोधी भावनाओं के इर्दगिर्द घूम रही थीं। इसी भावना का लाभ लेकर, खालिदा जिया सत्ता में आईं थीं। उनकी चुनावी रणनीति भी कट्टरपंथी वोटों को लामबंद करने की रही है। भारत और बांग्लादेश, सांस्कृतिक तौर पर एक हैं। मुस्लिम बाहुल देश होने के बाद भी वहां, बंगाली संस्कृति, इस्लामिक संस्कृति पर हावी है। वहां की राष्ट्रवादी पार्टियों का रुख अब बेहद अलग है।
खालिदा जिया के पहले कार्यकाल में भी भारत के प्रति अविश्वास रहा, दूसरे कार्यकाल में भी ऐसा ही नजर आया। जब साल 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश की विदेश नीति बदल गई। जिया उर रहमान और उसके बाद के सैन्य शासकों ने भारत से दूरी बनाई। खालिदा जिया, जिया उर रहमान की पत्नी हैं, उन्होंने इसे आगे बढ़ाया। साल 1972 की भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि तक को उन्होंने 'गुलामी की संधि' करार दिया था।
खालिदा जिया सरकार में ही गंगा नदी पर फरक्का बैराज के मुद्दे पर भी तनाव बढ़ा। बांग्लादेश का आरोप था कि भारत गर्मी के दिनों में पानी रोकता है, जिससे कृषि और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। बारिश के दौरान भारत ज्यादा पानी छोड़कर तबाही मचाता है। भारत और बांग्लादेश करीब 4,000 किमी सीमा की सीमा साझा करते हैं, जिसमें अवैध प्रवास और तस्करी की घटनाएं बढ़ गईं। तीन बीघा कॉरिडोर भी उनकी कार्यकाल में विवादित रहा है। अब एक बार फिर से यही चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।
