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बांग्लादेश में क्यों फूंके गए सिर्फ 2 अखबारों के दफ्तर, भारत का एंगल क्या है?

बांग्लादेश में स्वतंत्र पत्रकारिता सबसे बड़े हमले का सामना कर रही है। शुक्रवार को जो हुआ, वह बांग्लादेश के इतिहास में काला अध्याय के तौर पर याद किया जाएगा। दो अखबार भीड़ हिंसा का शिकार बने तो पूरी दुनिया में इसकी चर्चा शुरू हुई।

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बांग्लादेश में दो अखबारों पर भीड़ हमला। (Photo Credit: Social Media)

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बांग्लादेश में कट्टरपंथी विचारधारा से जुड़े छात्र नेता की हत्या के बाद भड़की हिंसा की आड़ में प्रेस को निशाना बनाया गया। गुरुवार की रात बांग्लादेश के दो प्रमुख अखबारों के दफ्तरों पर आगजनी, तोड़फोड़ और लूटपाट की गई। एक अखबार के संपादक के साथ बदतमीजी की गई। कई पत्रकारों को बंधक बनाया गया है। सेना के दखल के बाद 30 से अधिक पत्रकारों को बचाया गया है।

 

गुरुवार की घटना को बांग्लादेश के इतिहास में मीडिया पर हुए सबसे बड़े हमले के तौर पर देखा जा रहा है। उस्मान हादी की मौत के साथ ही बांग्लादेश के इतिहास के साथ यह काला अध्याय भी जुड़ गया है। मगर सवाल यह उठ रहा है कि बांग्लादेश में तमाम मीडिया हाउस हैं, लेकिन उन्मादी भीड़ ने सिर्फ दो अखबारों के दफ्तरों को क्यों निशाना बनाया, इसके पीछे क्या कारण हैं और बांग्लादेश में इस घटना के बाद कैसी प्रतिक्रिया आ रही है?

पहले हिंसा की असली वजह समझें

बांग्लादेश में मीडिया पर हमले से पहले यह जानना जरूरी है कि हिंसा की असल वजह क्या है? दरअसल, 12 दिसंबर की दोपहर को बांग्लादेश की राजधानी ढाका के बिजोयनगर में पानी की टंकी के पास ई-रिक्शा में सवार उस्मान हादी नाम के शख्स को दो लोगों ने गोली मार दी। पहले हादी का इलाज ढाका में चला, लेकिन हालत नहीं सुधरी। 15 दिसंबर को उसे सिंगापुर भेजा गया। गुरुवार यानी 18 दिसंबर की रात साढ़े नौ बजे उसकी मौत हो गई। मौत की खबर आते ही पूरे बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन, गम और गुस्से का नया दौर शुरू हुआ। 

भारत का नाम क्यों आ रहा?

बांग्लादेश का आरोप है कि हादी की हत्या को अंजाम देने वाले दोनों आरोपी भारत भाग चुके हैं। मगर अभी तक बांग्लादेश ने कोई सबूत नहीं दिया है। गोली लगने से कुछ दिन पहले उस्मान हादी ने एक विवादित मैप सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था। इसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को बांग्लादेश और जम्मू-कश्मीर समेत कुछ हिस्सों को पाकिस्तान में दिखाया गया था। 

 

अब हादी की हत्या के बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान के कट्टरपंथी इसके पीछे भारत का हाथ होने का फर्जी नैरेटिव गढ़ने लगे हैं। वहीं शेख हसीना को शरण देने का मुद्दा भी उठाया जा रहा है। यही कारण है कि चटगांव में भारत के सहायक उच्चायोग पर गुरुवार की रात हमला किया गया और ढाका में भी दूतावास घेरने की कोशिश हुई।

 

यह भी पढ़ें: ढाका से चटगांव तक हिंसा, बांग्लादेश में उस्मान हादी की मौत के बाद क्या हो रहा?

 

किन-किन अखबारों के दफ्तरों पर हुआ हमला?

बांग्लादेश में गुरुवार की रात उन्मादी भीड़ ने सिर्फ दो अखबारों पर हमला किया। पहला अखबार का नाम प्रोथोम आलो और दूसरा द डेली स्टार है। दोनों अखबार के दफ्तरों पर हमले के बाद स्थिति और अराजक हुई। बांग्लादेशी मीडिया के मुताबिक पहला हमला रात 11 बजे कारवां बाजार स्थित प्रोथोम आलो के मुख्यालय पर हुआ। यहां सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने दफ्तर में आगजनी, तोड़फोड़ और पथराव किया।

 

मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि प्रदर्शनकारियों ने प्रोथोम आलो के प्रकाशन विंग, लेखा कार्यालय और पुस्तक संग्रह विभाग में आगजनी की। पूरी फर्श को तोड़ दिया है। कंप्यूटर और सर्वर को भारी नुकसान पहुंचाया गया है। राहत की बात यह है कि प्रोथोम आलो का दफ्तर खाली था। अधिकांश कर्मचारी काम खत्म करके घर जा चुके थे।

 

प्रोथोम आलो के दफ्तर से कुछ सौ मीटर की दूरी पर ही द डेली स्टार का ऑफिस है। यह फार्मगेट पर स्थित है। प्रोथोम आलो को फूंकने के एक घंटे के भीतर उन्मादी भीड़ वहां भी पहुंच गई। द डेली स्टार के दफ्तर पर रात पर हमला और आगजनी को अंजाम दिया गया। आग और धुएं के बीच डेली स्टार के करीब 30 पत्रकार इमारत में फंस गए। 

 

अखबार ने खुद अपनी वेबसाइट में लिखा, छत पर फंसे हमारे साथियों को अपनी जान का खतरा महसूस हो रहा था, क्योंकि भीड़ ने एक-एक कर हर मंजिल पर तोड़फोड़ और आगजनी की। साथियों को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। हालांकि दमकल पुलिस और सेना की मदद से सभी लोगों को बचा लिया गया है।

 

अखबार का कहना है कि कुछ तत्वों ने जनता के गुस्से का फायदा उठाया और दोनों अखबारों के खिलाफ भीड़ को भड़काया। लगता है कि यह आगामी चुनाव को पटरी से उतारने और देश में अस्थिरता का माहौल बनाने की एक कोशिश है। अखबार ने दंगाइयों के खिलाफ सख्त एक्शन की मांग की। 

 

प्रोथोम आलो और द डेली स्टार के अलावा उन्मादी भीड़ ने न्यू एज के संपादक नूरुल कबीर के साथ मारपीट और धक्का-मुक्की की। बाद में सेना और नेशनल सिटीजन पार्टी के नेताओं ने पत्रकार नूरुल कबीर को बचाया। बताया जा रहा है कि वह तड़के 3 बजे द डेली स्टार के दफ्तर में फंसे पत्रकारों का हालचाल जानने पहुंचे थे।

इतिहास में पहली बार नहीं छपे अखबार

बांग्लादेश में समाचार पत्रों पर हमले की चौतरफा निंदा हो रही है। इस बीच अतंरिम सरकार ने कार्रवाई की बात कही है। मुहम्मद यूनुस ने प्रोथोम आलो और द डेली स्टार के संपादकों से बात की है। अनुमान के मुताबिक दोनों संस्थानों को तोड़फोड़ और लूटपाट से 300 करोड़ टका से अधिक का नुकसान हुआ है। डेली स्टार ने 35 साल में पहली और प्रोथोम आलो ने 27 साल में पहली बार शुक्रवार यानी 19 दिसंबर को अखबार नहीं छापा। हालांकि वेबसाइट पर खबरें प्रकाशित होती रही हैं।

 

प्रोथोम आलो: यह बांग्लादेश का सबसे बड़ा मीडिया संस्थान है। प्रोथोम आलो में एक हजार से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। अखबार की शुरुआत 4 नवंबर 1998 को हुई थी। बांग्ला भाषा इस अखबार के छह संस्करण राजधानी ढाका और बोगरा से प्रकाशित होते हैं। सर्कुलेशन के लिहाज से भी प्रोथोम आलो बांग्लादेश का सबसे बड़ा अखबार है। इसका स्वामित्व बांग्लादेश के प्रसिद्ध औद्योगिक समूह ट्रांसकॉम ग्रुप की सहायक कंपनी मीडियास्टार लिमिटेड के पास है।

 

5 नवंबर 2008 को प्रोथोम आलो ने बांग्लादेश में पहली बार ई-पेपर लॉन्च किया। 17 मई 2009 को अखबार ने अपनी वेबसाइट की शुरुआत की। यह मीडिया संस्थान 'किशोर आलो' और विज्ञानचिंता नाम से दो मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन भी करता है। इसके अलावा साल में सात अन्य पत्रिकाओं को प्रकाशित करता है। फेसबुक पर इसके 2 करोड़ से ज्यादा फॉलोअर्स हैं और वेबसाइट पर 2.2 करोड़ से अधिक पेज व्यूज होते हैं। 

 

द डेली स्टार: यह बांग्लादेश का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला अंग्रेजी अखबार है। इसकी स्थापना 14 जनवरी 1991 को हुई थी। अखबार की स्थापना बांग्लादेश के प्रमुख व्यवसायियों की सहायता से सैयद मोहम्मद अली और महफूज अनम ने की थी। सैयद मोहम्मद अली की मौत के बाद 1993 में महफूज अनम ने संपादक की जिम्मेदारी संभाली। द डेली स्टार के 300 से अधिक कर्मचारी है। 

 

यह भी पढ़ें: कौन थे शरीफ उस्मान हादी, जिनकी मौत के बाद भड़क उठा बांग्लादेश?

सिर्फ दो अखबारों को ही क्यों बनाया गया निशाना?

अब सवाल उठता है कि उन्मादी भीड़ ने सिर्फ दो अखबारों को ही निशाना क्यों बनाया? दरअसल, प्रदर्शनकारियों का मानना है कि यह दोनों अखबार भारत समर्थित हैं। इसके अलावा दोनों पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का भी समर्थन करते हैं। भारत ने शेख हसीना को शरण दे रखी है। बांग्लादेश के अनुरोध के बाद भी भारत हसीना को प्रत्यर्पित नहीं कर रहा है। न्यू एज के संपादक नूरुल कबीर पर भी हमला भारत के एंगल से किया गया। उन्मादी कट्टरपंथी उन्हें भारत और हसीना का सहयोगी मानते हैं। 

 

उधर, बांग्लादेश के पत्रकार सलाहुद्दीन शोएब चौधरी का कहना है कि ढाका के सबसे बड़े अखबारों 'प्रोथोम आलो' और डेली स्टार के दफ्तरों पर हमला किया है। इन प्रकाशनों को 'भारत की आवाज' बताया है। मगर सच यह है कि ये दोनों अखबार यूनुस के कट्टर समर्थक हैं। पिछले साल बांग्लादेश में जिहादी तख्तापलट में इनकी भूमिका अहम थी।

 


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