पहलगाम अटैक पर भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा फैसला लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) ने सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया है। यह पहली बार है जब भारत ने इतनी बड़ी और सख्त कार्रवाई की है। भारत और पाकिस्तान के बीच तीन बड़ी जंग हो चुकी है लेकिन पहले कभी भी इस संधि को स्थगित नहीं किया गया। 


कैबिनेट कमेटी की बैठक में लिए गए फैसलों के बारे में विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया, '1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दी गई है। यह रोक तब तक रहेगी, जब तक पाकिस्तान क्रॉस बॉर्डर टेररिज्म को अपना समर्थन देना बंद नहीं करता।'


भारत ने यह फैसला लेकर पाकिस्तान पर बहुत बड़ा दबाव बना दिया है। मतलब साफ है कि पाकिस्तान जब तक आतंकवाद का साथ नहीं छोड़ता, तब तक सिंधु जल संधि पर रोक लगी रहेगी।

 

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सिंधु जल संधि क्या है? 5 पॉइंट्स में समझिए

  • क्या है यह संधि?: वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस संधि पर दस्तखत किए थे।
  • क्यों हुई थी यह संधि?: 1947 में बंटवारे के बाद सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद हुआ। तनाव के कारण भारत ने पानी को रोक दिया था। इसके बाद वर्ल्ड बैंक ने मध्यस्थता की और दोनों के बीच समझौता कराया।
  • इसका मकसद क्या था?: सिंधु नदी और उसकी 5 सहायक नदियों- सतलुज, रावी, ब्यास, झेलम और चिनाब के पानी का बंटवारा हो सके। दोनों देश अपनी कृषि और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी का इस्तेमाल कर सकें। साथ ही भारत और पाकिस्तान मिलकर काम कर सकें, ताकि तनाव कम हो।
  • हुआ क्या इससे?: पश्चिमी नदियां- सिंधु, झेलम और चेनाब का लगभग 80% पानी पाकिस्तान को मिला। भारत इन नदियों की सीमित इस्तेमाल कर सकता है। इन नदियों के 13.5 एकड़ फीट पानी का पाकिस्तान इस्तेमाल करता है। पूर्वी नदियां- रावी, ब्यास और सतलुज का पूरा नियंत्रण भारत के पास है। इन नदियों के 3.3 एकड़ फीट पानी का भारत बिना रोक-टोक इस्तेमाल कर सकता है। भारत को पाकिस्तान के साथ पानी के प्रवाह का डेटा साझा करना होता है। साथ ही एक सिंधु जल आयोग बना, जिसकी बैठकें होती रहती हैं।
  • अब क्या किया भारत ने?: भारत ने फिलहाल सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है। भारत इस संधि से पूरी तरह से हट नहीं सकता, क्योंकि इसमें वर्ल्ड बैंक भी शामिल है। संधि से बाहर निकलने के लिए अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। संधि को स्थगित करके भारत अब इसके नियम मानने को बाध्य नहीं है।

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मोदी सरकार के इस फैसले के मायने क्या?

रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां कहा जाता है जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु को पश्चिमी नदियां कहते हैं। इनका पानी भारत और पाकिस्तान, दोनों के लिए जरूरी है। छह साल तक सिंधु जल आयोग में कमिश्नर रहे प्रदीप कुमार सक्सेना ने न्यूज एजेंसी PTI से कहा, 'यह संधि को खत्म करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है।'


प्रदीप सक्सेना ने बताया, 'संधि में इसे खत्म करने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। हालांकि वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 62 में इस बात की पूरी गुंजाइश नहीं है, जिसके तहत मौजूदा हालात को देखते हुए संधि के प्रावधानों को मानने से इनकार किया जा सकता है।' उन्होंने बताया कि अब भारत किशनगंगा प्रोजेक्ट और पश्चिमी नदियों पर चल रहे दूसरे प्रोजेक्ट पर प्रतिबंधों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।


संधि पर रोक लगाने से भारत अब पश्चिमी नदियों के बांधों पर 'फ्लशिंग' भी कर सकेगा। दरअसल, बांधों के जलाशयों में गाद जम जाती है तो उसे फ्लशिंग करके हटाया जाता है। इसमें पानी को तेजी से निकाला जाता है। संधि के कारण किशनगंगा जैसे प्रोजेक्ट्स में भारत को फ्लशिंग करने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि इससे पाकिस्तान को मिलने वाले पानी पर असर पड़ सकता था। अब भारत पर यह रोक-टोक नहीं होगी।

 


सक्सेना ने बताया, 'संधि के तहत, अगर भारत फ्लशिंग करता था तो अगस्त में जलाशयों को भरना होता था। अब ऐसा करने के लिए भारत बाध्य नहीं है और इससे पाकिस्तान पर बड़ा असर हो सकता है, क्योंकि उसके पंजाब का एक बड़ा हिस्सा सिंचाई के लिए सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है।'


उन्होंने बताया कि संधि के तहत सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर बांध जैसी संरचनाओं के निर्माण पर डिजाइन करना प्रतिबंध है। कई बार पाकिस्तान इन डिजाइन पर आपत्ति जता चुका है लेकिन अब भारत के लिए उसकी चिंता करना जरूरी नहीं है।


उन्होंने बताया कि भारत अब नदियों पर बाढ़ के डेटा को साझा करना बंद कर सकता है। यह पाकिस्तान के लिए खतरनाक हो सकता है, खासकर मानसून में जब नदियां उफान पर होती हैं। अब भारत अपने यहां बाढ़ रोकने के लिए कई उपाय कर सकता है। 

 

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क्या भारत तुरंत रोक सकता है पानी?

सिंधु जल संधि के तहत भारत पश्चिमी नदियों- झेलम, चिनाब और सिंधु पर कुछ शर्तों के साथ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट या डैम बनाने की अनुमति थी। यह प्रोजेक्ट 'रन-ऑफ-द-रिवर' होनी चाहिए, जिसका मतलब है कि इससे पाकिस्तान को जाने वाले पानी पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।


चिनाब नदी पर भारत ने किशनगंगा और बहलिहार जैसे प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं। अब जब भारत ने संधि को स्थगित कर दिया है तो वह इन प्रोजेक्ट्स को और बढ़ा सकता है। अभी यह प्रोजेक्ट्स रन-ऑफ-द-रिवर हैं, इसलिए इनसे पानी बहुत ज्यादा देर तक रुकता नहीं है। पाकिस्तान का पानी रोकने के लिए भारत को झेलम, चिनाब और सिंधु नदी में कई बांध बनाने होंगे या हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट शुरू करने होंगे लेकिन इनमें कम से कम 5 से 10 साल का वक्त लग सकता है।


अपने हिस्से में आने वाली पूर्वी नदियों पर भारत ने 5 बड़े प्रोजेक्ट बनाए हैं। इनमें सतलुज पर भाखड़ा नागल बांध, ब्यास पर पोंग बांध, रावी पर रंजीत सागर बांध और हरिके बैराज, इंदिरा नहर जैसे प्रोजेक्ट्स हैं। इसके अलावा, रावी पर शाहपुर कांडी प्रोजेक्ट, सतलुज-ब्यास नहर लिंक प्रोजेक्ट और रावी की सहायक नदी पर ‘उझ डैम’ बनाया जा रहा है लेकिन इन्हें पूरा होने में अभी वक्त लगेगा। 


अब संधि से बाहर आने के बाद भारत पश्चिमी नदियों के पानी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी नदियों के पानी को पूर्वी नदियों में मोड़ने का विकल्प भी भारत के पास है। हालांकि, यह सब कुछ अचानक नहीं किया जा सकता। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो इससे भारत के पंजाब और कश्मीर में बाढ़ का खतरा आ सकता है। कुल मिलाकर यह है कि भारत इस संधि से अस्थायी रूप से बाहर आ गया है लेकिन पाकिस्तान को मिलने वाले पानी को पूरी तरह से रोकने में अभी कुछ साल लग सकते हैं।

 

 

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पानी रुका तो पाकिस्तान पर आएंगे ये 4 संकट

  • खाद्य संकटः पाकिस्तान की 90% खेती सिंचाई के लिए इस संधि पर निर्भर है। पानी रुकने से गेहूं, चावल, गन्ना और कपास की फसलों पर असर पड़ सकता है। फसल की पैदावार में 30% की कमी आ सकती है, जिससे खाद्य संकट बढ़ सकता है।
  • आर्थिक संकटः पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर काफी हद तक कृषि पर निर्भर है। 68% आबादी खेती पर निर्भर है। पाकिस्तान में 45% रोजगार कृषि सेक्टर में ही है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान की GDP में 21% योगदान कृषि का ही है।
  • जल संकटः पानी रुकने से पाकिस्तान में पानी की किल्लत हो सकती है। पाकिस्तान की 23 करोड़ में से 61% आबादी सिंधु नदी से आने वाले पानी पर निर्भर है। कराची, मुल्तान और लाहौर जैसे शहरों में जल संकट गहरा सकता है।
  • बिजली का संकटः पाकिस्तान के तारबेला और मंगला जैसे कई बांध सिंधु नदी से आने वाले पानी पर निर्भर है। इस पानी से ही बिजली पैदा होती है। पानी रुकने से बिजली के उत्पादन में कमी आ सकती है। इससे बिजली महंगी हो सकती है या फिर कटौती हो सकती है।

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अब पाकिस्तान के पास क्या है रास्ता?

भारत कई सालों से सिंधु जल संधि से बाहर आना चाह रहा था लेकिन अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियां होने के कारण ऐसा करना आसान नहीं है। इस संधि से सबसे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को ही होता है लेकिन भारत ने इस संधि पर इसलिए दस्तखत किए थे कि बदले में शांति मिलेगी, मगर ऐसा हुआ नहीं।


अब पाकिस्तान के पास भारत की बात मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। भारत साफ कर चुका है कि जब तक आतंकवाद नहीं रुकेगा, तब तक सिंधु जल संधि पर लगी रोक नहीं हटेगी। 2016 में उरी अटैक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता।'


कुल मिलाकर, अब गेंद पाकिस्तान के पाले में है। पाकिस्तान अगर आतंकवाद को समर्थन बंद करता है, जो मुश्किल है, तभी सिंधु जल संधि पर लगी रोक हटाई जाएगी।