दुनिया के 7 सबसे ताकतवर देशों के संगठन G-7 की समिट होने जा रही है। इस बार यह समिट कनाडा के अल्बर्टा में कनानास्कीस में 15 से 17 जून को होगी। इस समिट में इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की गुंजाइश न के बराबर है। अगर ऐसा होता है तो यह 6 साल में पहली बार होगा, जब प्रधानमंत्री मोदी G-7 समिट में शामिल नहीं होंगे। प्रधानमंत्री मोदी पहली बार 2019 में इस समिट में शामिल हुए थे। 


बताया जा रहा है कि साउथ अफ्रीका, यूक्रेन और ऑस्ट्रेलिया को G-7 समिट का औपचारिक न्योता मिल गया है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अभी तक इस समिट में आने का फैसला नहीं लिया है। हालांकि, अभी तक भारत को इस समिट का औपचारिक न्योता नहीं दिया गया है।


वैसे तो भारत G-7 का हिस्सा नहीं है। इसके बावजूद गेस्ट कंट्री के तौर पर भारत को इस समिट में बुलाया जाता है। 2019 के बाद से हर साल भारत को G-7 में बुलाया गया है।

 

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क्या है यह G-7? 

1973 में सऊदी अरब ने तेल की कीमतें बढ़ा दी थीं। इससे दुनियाभर में तेल की कीमतें बढ़ गई थीं। इसके बाद 1975 में दुनिया की 6 बड़े देश साथ आए और G-6 बनाया। तब इसमें अमेरिका, जर्मनी, जापान, इटली, ब्रिटेन और फ्रांस थे। अगले ही साल यानी 1976 में कनाडा के आने के बाद यह G-7 बन गया।


इसके बाद 1991 में जब सोवियत संघ टूटा और रूस अलग बना तो 1998 में इसे भी G-7 में जगह मिली। इसके बाद इसका नाम G-8 पड़ गया। हालांकि, 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद रूस को इससे अलग कर दिया और फिर इसका नाम G-7 हो गया।

 

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भारत को क्यों बुलाया जाता है?

जब से G-7 yve बना है, तब से 11 बार भारत को इस समिट में बतौर गेस्ट बुलाया गया है। सबसे पहले 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी इस समिट में शामिल हुए थे। मनमोहन सिंह 2005 से 2009 तक लगातार 5 बार इस समिट में शामिल हुए थे। 2019 से प्रधानमंत्री मोदी लगातार इस समिट में शामिल हो रहे हैं।


भारत को इस समिट में इसलिए भी बुलाया जाता है क्योंकि अब यह तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। भारत की GDP 4 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा है। यह G-7 के 5 देशों- कनाडा, फ्रांस, जापान, यूके और इटली से भी ज्यादा है। पश्चिमी देशों में जहां इकोनॉमिक ग्रोथ की रफ्तार धीमी पड़ गई है, वहीं भारत में अब भी ग्रोथ तेजी से हो रही है।


हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के डेटा के हवाले से बताया था कि जापान को पछाड़कर भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। 2027-28 तक भारत, जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरे नंबर पर पहुंच जाएगा। यही वजह है कि भारत को G-7 अपने साथ रखना चाहते हैं।

 

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इस बार क्या हुआ?

भारत और कनाडा के रिश्तों में तब से तनाव है, जब से पूर्व पीएम जस्टिन ट्रुडो ने खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों के शामिल होने का आरोप लगाया था। ट्रुडो के दौर में भारत और कनाडा के रिश्ते सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे।


हालांकि, ट्रुडो के पद से हटने के बाद जब मार्क कार्नी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने भारत से रिश्ते सुधारने की वकालत की। अप्रैल में हुए आम चुनाव में मार्क कार्नी ने जोरदार वापसी की है। उन्होंने कहा था कि अगर वे सत्ता में लौटते हैं तो भारत के साथ संबंध सुधारने की कोशिश करेंगे। उन्होंने भारत के साथ अच्छे संबंधों को 'बहुत जरूरी' बताया था।


ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कनाडा की विदेश मंत्री अनीता आनंद से फोन पर बात की थी। मार्क कार्नी के दोबारा सत्ता में आने के बाद दोनों देशों की बीच राजनीतिक स्तर की पहली बातचीत थी। इस बातचीत को भारत-कनाडा के सुधरते रिश्तों के तौर पर देखा गया था।


हालांकि, G-7 समिट को लेकर जैसी खबरें सामने आ रहीं हैं, उससे पता चलता है कि अभी तक भारत और कनाडा के रिश्तों में पहली जैसी गर्माहट नहीं आई है।

 

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चेहरा बदला, पॉलिसी नहीं!

कनाडा में जब-जब लिबरल पार्टी सत्ता में रही है, तब-तब भारत से रिश्ते तल्ख ही रहे हैं। जस्टिन ट्रुडो के दौर में भी खालिस्तान समर्थकों से 'हमदर्दी' के कारण भारत और कनाडा में रिश्ते बहुत खराब रहे थे। उनसे पहले जब उनके पिता पियरे ट्रुडो प्रधानमंत्री थे, तब भी खालिस्तान समर्थकों से हमदर्दी भारत-कनाडा के रिश्तों को बेहतर रखने में सबसे बड़ी बाधा थी।


हालांकि, जब ट्रुडो की जगह मार्क कार्नी प्रधानमंत्री बने तो समझा गया कि इससे भारत और कनाडा के रिश्ते बेहतर हो सकते हैं। हालांकि, मार्क कार्नी भी जिस तरह की नीति अपना रहे हैं, उससे लग रहा है कि सिर्फ 'चेहरा बदला है, पॉलिसी नहीं', क्योंकि जिस तरह खालिस्तान समर्थकों के आगे ट्रुडो झुक जाते थे, वैसे ही मार्क कार्नी भी झुकते नजर आ रहे हैं।


दरअसल, कनाडा में खालिस्तान समर्थकों और सिख चरमपंथियों ने सरकार से अपील की है कि वे G-7 समिट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न बुलाएं। 


कनाडाई मीडिया ने बताया सिख संगठनों ने पीएम मोदी को G-7 समिट में न्योता न देकर सालों पुरानी परंपरा तोड़ने की अपील की है। टोरंटो की सिख फेडरेशन ने CBS न्यूज से कहा, 'भारत को तब तक कोई भी न्योता नहीं देना चाहिए, जब तक कि वह जांच में कनाडा का सहयोग नहीं करता।'


ऐसे में माना जा रहा है कि जिस तरह ट्रुडो खालिस्तान समर्थकों के आगे झुकते आ रहे थे, उसी तरह से मार्क कार्नी भी झुक रहे हैं। अब तक तो कनाडा की तरफ से औपचारिक न्योता नहीं मिला है। हालांकि, ऐसा माना जा रहा है कि न्योता मिलने के बाद भी पीएम मोदी के G-7 समिट में शामिल होने की संभावना नहीं के बराबर है।