9 महीने से अंतरिक्ष में फंसीं सुनीता विलियम्स 19 मार्च को वापस आ सकतीं हैं। सुनीता विलियम्स और उनके साथ बुच विल्मोर पिछले साल 5 जून को अंतरिक्ष गए थे। दोनों को 8 दिन में पृथ्वी पर वापस लौटना था लेकिन तब से ही वे दोनों इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में फंसे हैं। अब NASA और एलन मस्क की कंपनी SpaceX मिलकर दोनों को वापस लाने जा रही है।


सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की घर वापसी के लिए एलन मस्क की कंपनी SpaceX का रॉकेट फॉल्कन-9 ISS पहुंच गया है। इस रॉकेट के ड्रैगन कैप्सूल में 4 अंतरिक्ष यात्री हैं, जिन्हें Crew-10 नाम दिया गया है। हालांकि, वापसी के बाद उन्हें कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं।

 

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चलने में हो सकती है दिक्कत

पृथ्वी पर लौटने के बाद सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को चलने में दिक्कत हो सकती है। दरअसल, लगभग 9 महीने तक अंतरिक्ष में रहने के बाद उनके तलवे बच्चे की तरह नरम हो सकते हैं, जिससे उनके लिए चल पाना मुश्किल हो सकता है।


ऐसा इसलिए, क्योंकि पृथ्वी पर चलते समय ग्रेविटी के कारण पैरों की त्वचा मोटी और सख्त हो जाती है। हालांकि, अंतरिक्ष में महीनों बिताने के बाद सख्त त्वचा उतर जाती है और पैर बहुत नरम हो जाते हैं। पैरों को फिर से पहले की तरह होने में कुछ हफ्ते और महीने भी लग सकते हैं।


अंतरिक्ष में 340 दिन बिताने के बाद मार्च 2016 में जब अमेरीकी एस्ट्रोनॉट स्कॉट केली और रूसी एस्ट्रोनॉट मिखाइल कॉर्निएंको पृथ्वी पर लौटे थे तो वे लड़खड़ाने लगे थे। बाद में उन्हें उठाकर ले जाया गया था। एक इंटरव्यू में स्कॉट केली ने बताया था कि वे महीनों तक ठीक से नहीं चल पाए थे।

 

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बोन डेंसिटी कम हो जाती है

लंबे वक्त तक अंतरिक्ष में रहने से बोन डेंसिटी यानी हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है। NASA के मुताबिक, हर महीने हड्डियों का घनत्व 1% तक कम हो जाता है। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। पैर, पीठ और गर्दन की मांसपेशियों पर असर पड़ता है। 


इसके अलावा, कान और मस्तिष्क में एक वेस्टिबुलर सिस्टम होता है, जो शरीर को बैलेंस बनाए रखने में मदद करता है। अंतरिक्ष में ग्रेविटी नहीं होने के कारण यह सिस्टम ठीक तरह से काम नहीं करता। ऐसे में पृथ्वी पर लौटने के बाद कई दिनों तक अंतरिक्ष यात्री को चलने-फिरने या खड़े होने में दिक्कत आ सकती है।

 

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ब्लड फ्लो पर भी असर, अंधा होने का खतरा भी

अंतरिक्ष यात्री के शरीर में खून की मात्रा भी कम हो जाती है। अंतरिक्ष में ग्रेविटी न होने के कारण ब्लड फ्लो पर असर पड़ता है। ऐसे में जब पृथ्वी पर लौटते हैं तो खून के थक्के जमने का खतरा बढ़ जाता है।


कनाडा के अंतरिक्ष यात्री क्रिस हैडफील्ड ने एक इंटरव्यू में बताया था कि अंतरिक्ष में रहने की वजह से उनकी दोनों आंखों में समस्या होने लगी थी। उन्हें डर लग रहा था कि कहीं अंधे न हो जाएं।


अंतरिक्ष में जीरो ग्रेविटी होने के कारण शरीर का तरल पदार्थ सिर की ओर बढ़ता है। इससे आंखों की पुतलियों का आकार भी बदल जाता है। इसे स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो-ओकुलर सिंड्रोम कहा जाता है। 

रेडिएशन का खतरा

अंतरिक्ष में ज्यादा समय बिताने का सबसे बड़ा खतरा रेडिएशन का होता है। पृथ्वी का वायुमंडल कई सारे रेडिएशन से बचा लेता है लेकिन अंतरिक्ष में ऐसा नहीं होता है। 


NASA के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्री मुख्य रूप से तीन तरह के रेडिएशन से सीधे संपर्क में आते हैं। इनमें पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड में फंसे कण, सूर्य से आने वाले मैग्नेटिक पार्टिकल्स और आकाशगंगा से निकलने वालीं किरणें शामिल हैं।


इस कारण अंतरिक्ष यात्रियों का इम्युन सिस्टम कमजोर हो जाता है। रेडिएशन की वजह से कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। 

 

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ठीक होने में कितना वक्त लगता है?

पृथ्वी पर लौटने के बाद सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को यहां के हिसाब से ढलने में लंबा वक्त लग सकता है। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी के वातावरण में फिर से ढलने में 45 दिन से लेकर कुछ महीने या सालों का वक्त भी लग सकता है।


स्पेस में 179 दिन बिताने वाले NASA के अंतरिक्ष यात्री डगलस व्हीलॉक ने बताया था, 'जीरो ग्रेविटी में रहने वजह से हम सोचने लगे थे कि पैरों की जरूरत नहीं है। ऐसे में पृथ्वी पर लौटने में खुद को ढालना चुनौतीपूर्ण होता है। डॉक्टर और फिजिकल एक्सपर्ट से ट्रेनिंग लेनी पड़ती है। मांसपेशियों और हड्डियों की रिकवरी करने के लिए महीनों तक एक्सरसाइज करनी पड़ती है।'


सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को वापस लौटने पर पूरी तरह से रिकवर होने में सालभर लग सकते हैं।