पाकिस्तान में हिंदू और इसाईयों के खिलाफ नफरत बढ़ी है। यह मानना है पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग का। आयोग का कहना है कि पिछले साल पाकिस्तान में हिंदू और इसाई लड़कियों के धर्मांतरण और जबरन शादी के मामलों में तेजी देखने को मिली है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भी बढ़ी है। पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार की जड़े उसकी आजादी के साथ जुड़ी हैं। वहां हिंदुओं की आबादी लगातार कम हो रही है। अक्सर हत्या, उत्पीड़न और अगवा करने के मामले आते हैं। औरत फाउंडेशन के मुताबिक हर साल 1000 हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिववर्तन होता है। आज बात पाकिस्तान में हिंदुओं के शोषण की करेंगे।
आजादी के पहले पाकिस्तान वाले हिस्से में हिंदुओं की आबादी लगभग 24 फीसदी थी। 1947 में विभाजन के बाद लगभग 44 लाख हिंदुओं और सिखों ने पाकिस्तान छोड़कर भारत में शरण ली। दूसरी तरफ करीब 41 लाख मुसलमान भी भारत से पाकिस्तान पहुंचे। मौजूदा समय में पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी लगभग 1.2 फीसदी है। अगर संख्या में बात करें तो करीब 20 लाख। सबसे अधिक लगभग 96 फीसदी हिंदू सिंध प्रांत में रहते हैं। सिंध के अलावा बलूचिस्तान और पंजाब में भी हिंदुओं की कुछ आबादी है।
मुनीर के नफरती भाषण, हिंदुओं की दशा
पाकिस्तान में हिंदू शब्द का इस्तेमाल अपमान के तौर पर किया जाता है। पहलगाम हमले से पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने खुले तौर पर यह कहा था कि हम हिंदुओं से बेहतर हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि वहां इस समुदाय के खिलाफ नफरत की जड़े कितनी गहरी हैं। आइये जानते हैं कि पाकिस्तान में हिंदू समुदाय को क्या-क्या झेलना पड़ता है।
- जबरन धर्म परिवर्तन
- लड़कियों का अपहरण
- सामाजिक बहिष्कार
- छूआछूत
- आर्थिक बहिष्कार
- बंधुआ मजदूरी
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पाकिस्तानी हिंदुओं में बढ़ रही गरीबी
सिंध में रहने वाले लगभग 84.7 फीसदी हिंदू गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन को मजबूर हैं। साल 2011 में यह आंकड़ा 75.9 फीसदी और 2013 में 80.7 फीसदी रहा है। इसका मतलब साफ है कि समय के साथ-साथ पाकिस्तानी हिंदुओं में गरीबी की मार और व्यापक होती जा रही है।
हिंदू मंदिरों से वीरान हो गया लाकी
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पड़ने वाला लाकी हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण धर्मस्थल रहा है। ब्रिटिश यात्री रिचर्ड बर्टन ने इस जगह का वर्णन अपनी पुस्तक 'सिंध रिविजिटेड' में किया है। यहां कुल 273 हिंदू मंदिर थे। मगर आज यहां गिने-चुने मंदिर और शिवालय बचे हैं। इनकी देखरेख करने वाला भी कोई नहीं बचा है।
कहां होते हैं सबसे अधिक धर्मांतरण?
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक मीरपुरखास जिले में मौजूद भरचुंडी शरीफ के अलावा सरहंडी दरगाह में भी खूब धर्मांतरण होता है। अधिकांश धर्मांतरण हिदुओं के होते हैं, जबकि इसके उलट हिंदु लड़कों द्वारा मुस्लिम लड़कियों से शादी के मामले बिल्कुल ही नगण्य हैं। एक पाकिस्तानी मौलवी याकूब का कहना है कि पिछले 15 सालों में मदरसे में लगभग 9,000 लोगों के धर्मांतरण हुए। सिर्फ 2016 में ही लगभग 850 हिंदुओं ने मदरसे में धर्मांतरण किया।
ताजा रिपोर्ट में क्या खुलासा?
- हाल ही पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने 'डर की गलियां: 2024-25 नाम से एक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट में कहा गया कि हिंदू और इसाइयों के अलावा अहमदिया लोगों की टारगेट हत्या में भी वृद्धि हुई है। उनके पूजा स्थलों को निशाना बनाया गया है।
- आयोग की रिपोर्ट बताती है कि हिंदू और इसाई लड़कियों का सबसे अधिक शोषण पंजाब और सिंध प्रांत में हो रहा है। यहां जबरन धर्मांतरण, अपहरण और बाल विवाह के मामले बढ़े हैं।
- आयोग ने ईशनिंदा के आरोपियों की भीड़ हत्या पर भी चिंता जताई। रिपोर्ट में कहा गया कि अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले ईशनिंदा के अरोपियों की भीड़ द्वारा हत्या का चलन बढ़ा है।
- रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि पाकिस्तान में बार एसोसिएशन का झुकाव भी कट्टरपंथी धार्मिक समूहों की तरफ बढ़ रहा है। आयोग ने इस कदम को न केवल चिंताजनक, बल्कि चौंकाने वाला करार दिया।
पाकिस्तान में अपनी बेटियों को क्या सीखती हैं हिंदू माताएं?
पाकिस्तान में हिंदू लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। उनका शोषण और अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है। हालत यह है कि पाकिस्तान में हिंदू परिवार अपने बेटियों को घर से बाहर और खेतों में काम करते वक्त सतर्क रहने की शिक्षा देते हैं। उन्हें आठ और नौ साल की उम्र से ही समझाया जाने लगता है कि कैसे सावधान रहना है?
डॉन से बातचीत में 10 साल की कविता ने कहा कि हमारी माताएं हमें मुस्लिम गांवों के पास न जाने और किसी भी मुस्लिम लड़के से आंखें न मिलाने की सलाह देती हैं। मीरपुरखास के पास कृष्ण कोहली गांव है। यहां की बुजुर्ग महिला संपा का कहना है कि हमारे आस-पास मुसलमान ही सत्ता में हैं। हमें मुसीबत से कौन बचाना चाहेगा?
रविता मेघवाल केस क्या है?
2017 में सिंध के थारपारकर जिले से रविता मेघवार का अपहरण इलाके के एक मुस्लिम परिवार ने कर लिया था। उस वक्त रविता की उम्र महज 16 साल थी। अपहरण के बाद लड़की का धर्म परिवर्तन कराया गया और बाद में एक आरोपी नवाज अली शाह के साथ विवाह कर दिया गया। रविता से पहले 2016 में पाकिस्तान में दो बहनों का अपहण किया गया था। बंदूक और हथियारों के बल पर सोनारी और समझू नाम की दो लड़कियों को घर से जबरन उठाया गया और बाद में एक जमींदार के लड़के के शादी कर दी गई।
अमेरिका ने भी मानी उत्पीड़न की बात
2015 में पाकिस्तान के औरत फाउंडेशन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि पाकिस्तान में हर साल अल्पसंख्यकों की लगभग 1,000 लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है। अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने 2018 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि 2017 में पाकिस्तान में हिंदू, ईसाई, सिख, अहमदिया और शिया मुसलमानों को चरमपंथी समूहों ने निशाना बनाया। उनके खिलाफ भेदभाव बढ़ा है। मगर पाकिस्तान की सरकार इन समूहों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने में विफल रही है। मीडिया ने भी इनके खिलाफ नफरत को बढ़ावा दिया है।
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हिंदुओं के साथ कैसे-कैसे भेदभाव?
2005 में बलूचिस्तान में सशस्त्र विद्रोह हुआ था। इस दौरान पाकिस्तान के सुरक्षा बलों ने हिंदू समुदाय को निशाना बनाया था। आंकड़े के मुताबिक लगभग 33 हिंदुओं की हत्या की गई।
- अछूत जैसा व्यवहार: पाकिस्तान में रहने वाले अधिकांश हिंदू भूमिहीन हैं। उन्हें अछूत माना जाता है। उनके साथ बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार किया जाता है। उत्पीड़न और शोषण भी आम बात है।
- सुरक्षा की कमी: हिंसा, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ पाकिस्तान की सरकार हिंदुओं समेत अन्य धार्मिक समूहों के बेहद कम सुरक्षा प्रदान करती है। कानूनी तौर भी उन्हें मदद नहीं मिलती है।
- ईमानदारी पर सवाल: पाकिस्तानी हिंदुओं का कहना है कि उनकी ईमानदारी पर हमेशा सवाल उठाए जाते हैं। सरकारी स्कूलों से दफ्तरों तक हिंदुओं के खिलाफ पूर्वाग्रह और भेदभाव देखने को मिलता है।
- जिम्मेदार पद नहीं मिलते: पाकिस्तान में हिंदुओं को सरकारी नौकरी में खासकर सिविल सेवा, न्यायपालिका और सुरक्षा बलों में खास जिम्मेदारी नहीं मिलती है। इसकी वजह यह है कि हिंदुओं को पाकिस्तान में विश्वास की नजर से नहीं देखा जाता है।
ऑनलाइन नफरत भी बढ़ी
पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ नफरत डिजिटल दुनिया में भी बढ़ी है। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ऑर्गनाइज्ड हेट की रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने के अड्डे बनते जा रहे हैं। 2021 में डिजिटल राइट्स फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सोशल मीडिया पर वाजिब-उल-कताल (हत्या के योग्य), काफिर और फित्ना जैसी भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल अक्सर हिंदुओं के खिलाफ किया जाता है। इन बयानों से भय का माहौल पैदा होता है। सोशल मीडिया पर ही हिंदू त्योहारों और प्रथाओं का मजाक उड़ाना आम है।
