15 साल से बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज रहीं शेख हसीना को लगभग 16 महीने पहले अपना ही देश छोड़कर भागना पड़ा था। तब से बांग्लादेश की पद्मा नदी में बहुत पानी बह चुका है। हिंसा झेल रहे बांग्लादेश में मोहम्मद युनूस अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं और देश चुनाव की ओर बढ़ रहा है। अचानक 17 साल पहले देश छोड़ने को मजबूर हुआ एक शख्स अपने वतन लौट रहा है। नाम है तारिक रहमान। वही तारिक रहमान जिनकी पहली पहचान यह है कि वह बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की नेता खालिदा जिया के बेटे हैं। तारिक रहमान लंबे समय से दूसरे देशों में रह रहे हैं और शेख हसीना के समर्थक आरोप लगाते हैं कि उनकी शह पर ही बांग्लादेश में हिंसा हुई और तख्तापलट हो गया।
तारिक रहमान के बारे में कहा जा रहा है कि वह न सिर्फ अपने देश लौट रहे हैं बल्कि अब वह चुनाव भी लड़ेंगे। BNP के समर्थक अभी से उनमें अपना अगला प्रधानमंत्री भी देखने लगे हैं। गुरुवार को लाखों लोग ढाका की सड़कों पर उतरे और किसी सुपरस्टार की तरह तारिक रहमान का स्वागत किया। BNP के अलावा बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) ने भी तारिक रहमान का स्वागत किया है। रोचक बात यह है कि शेख हसीना के तख्तापलट में NCP की भी अहम भूमिका रही है।
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क्या है तारिक रहमान की कहानी?
अगर तारिक रहमान और शेख हसीना की तुलना की जाए तो दोनों में एक चीज कॉमन है कि इन दोनों को ही अपना देश छोड़ना पड़ा। अब उनकी मां खालिदा जिया बीमार हैं और ढाका के ही एक अस्पताल में भर्ती हैं। कभी 'डार्क प्रिंस' के नाम से मशहूर या यूं कहें कि बदनाम रहे तारिक रहमान कभी उस स्टेज पर थे कि वह देश की सत्ता चलाते थे। फिर स्थिति ऐसी बदली कि वह 17 साल तक अपने ही देश नहीं लौट पाए।
तारिक रहमान खालिदा जिया के बेटे हैं। खालिदा जिया और उनके पति और पूर्व राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान के कुल तीन बच्चे हुए हैं। तारिक उनमें से सबसे बड़े हैं। मौजूदा वक्त में BNP के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान उस वक्त भी राजनीति में काफी सक्रिय थे जब उनकी मां प्रधानमंत्री बनीं। कहा जाता है कि तारिक ने ही अपनी मां के चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी।
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साल 1965 के नवंबर महीने की 20 तारीख को पैदा हुए तारिक उस वक्त सिर्फ 6 साल के थे, जब बांग्लादेश की मुक्ति अभियान के वक्त साल 1971 में उनकी मां खालिदा जिया समेत उनके पूरे परिवार को गिरफ्तार कर लिया गया था। यही वजह है कि तारिक रहमान की तारीफ में BNP कहती है कि वह आजादी की जंग में सबसे कम उम्र के कैदी थे।
मां को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका
खैर, बांग्लादेश आजाद मुल्क बना और तारिक बड़े होते रहे। युवा अवस्था में पहुंचे तो पहले ढाका के BAF शाहीन कॉलेज और फिर यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका से पढ़ाई की। पढ़ाई खत्म होने को आई तो मां खालिदा जिया के साथ राजनीतिक में सक्रिय हुए। 1988 में यानी 23 साल की उम्र में BNP की सदस्यता ली और राजनीति में जुट गए। कहा जाता है कि साल 1990 में जब हुसैन मोहम्मद इरशाद बांग्लादेश के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने को मजबूर हो गए तो उसके पीछे भी तारिक रहमान की बड़ी भूमिका थी।

इसी के बाद बांग्लादेश के संविधान में बदलाव हुआ और ज्यादा ताकत प्रधानमंत्री के पास आ गई। इसी के बाद साल 1991 में खालिदा जिया पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं और पूरे 5 साल सरकार चलाई। खालिदा जिया को प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचाने में भी तारिक रहमान का ही हाथ था।
1991 से 1995 के बीच जब खालिदा जिया का परिवार देश की राजनीति का केंद्र था, उसी के बीच साल 1993 में तारिक रहमान की शादी बांग्लादेशी नेवी के चीफ ऑफ स्टाफ रहे महबूब अली खान की बेटी जुबैरा रहमान से शादी हुई। खालिदा जिया के बाद शेख हसीना की सरकार आई और वह भी पूरे 5 साल यानी 1996 से 2001 तक सरकार में रहीं। 2001 में फिर खालिदा जिया की वापसी हुई और फिर से 5 साल उनकी सरकार चली।
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2006 के आखिर से 2009 की शुरुआत तक बांग्लादेश में स्थायी सरकार नहीं बन पाई और इयाजुद्दीन अहमद, फजलुल हक और फकरुद्दीन अहमद ने सलाहकार के तौर पर सरकार चलाई। ठीक वैसे ही जैसे इस समय मोहम्मद यूनुस तला रहे हैं। 2009 में 6 जनवरी को शेख हसीना की वापसी हुई और तब से देश छोड़ने तक यानी 15 साल 212 दिन वही देश की प्रधानमंत्री रहीं। खालिदा जिया के दूसरे कार्यकाल के दौरान अगस्त 2004 में ढाका में ही शेख हसीना की अवामी लीग की एक रैली हो रही थी। रैली में ग्रेनेड से हमला हुआ, 24 लोगों की जान गई, सैकड़ों लोग घायल हुए और शेख हसीना बाल-बाल बच गईं। नाम आया तारिक रहमान का लेकिन उनकी मां देश की प्रधानमंत्री थीं।
2006 में खालिदा जिया की सरकार गई और सेना के समर्थन से चल रही सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के तहत तारिक रहमान को गिरफ्तार कर लिया। जेल में रहने के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ी। BNP दावा करती है कि टॉर्चर किए जाने के चलते तारिक बीमार पड़े। साल 2008 में इलाज कराने के लिए तारिक को जमानत मिली और लंदन जाने की अनुमति मिल गई। तब से तारिक आज तक देश नहीं लौटे थे।

उम्रकैद क्यों हो गई?
2004 में हुए ग्रेनेड अटैक केस में अदालत का फैसला आया 14 साल बाद यानी अक्तूबर 2018 में। कुल 19 लोगों को उम्रकैद हुई, इसमें एक नाम तारिक अनवर का भी था। रिश्वतखोरी और वित्तीय गड़बड़ियों के कई मामलों उनका नाम आया और ढाका ट्रिब्यून ने तारिक रहमान को 'डार्क प्रिंस' बताया। अवैध संपत्ति जुटाने वाले मामले में 2023 में फैसला आया और तारिक को 9 साल की सजा सुनाई गई।
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अब जब शेख हसीना की सरकार नहीं रही तो तारिक को सभी 84 मामलों में बरी कर दिया गया। हैरानी की बात है कि तारिक अनवर ग्रैनेड अटैक वाले उस मामले में भी बरी हो गए जिसमें उन्हें उम्रकैद की सजा मिली थी।
