ऑस्ट्रेलिया के ब्लड डोनर जैम्स हैरिसन का निधन हो गया है। वे 88 साल के थे। उनके ब्लड से 24 लाख नवजात बच्चों की जान बचाई गई थी। छह दशकों में उन्होंने 11सौ से ज्यादा बार ब्लड डोनेट किया था। उन्हें 'मैन विद द गोल्डन आर्म' कहा जाता था।
जेम्स हैरिसन 18 साल की उम्र से ब्लड डोनेट कर रहे थे। ऑस्ट्रेलिया की रेड क्रॉस ब्लड सर्विस 'ब्लड लाइफ' ने बताया कि जेम्स जब 14 साल के थे, तब उनकी एक बड़ी सर्जरी हुई थी। इसके बाद उन्हें ब्लड डोनेट करने की ठान ली थी। जेम्स ने 81 साल की उम्र तक ब्लड डोनेट किया।
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सुई से डरते थे, फिर भी ब्लड डोनेशन में आगे
जेम्स के खून में दुर्लभ एंटीबॉडी 'Anti-D' मौजूद थी। इस एंटीबॉडी का इस्तेमाल एक खास दवा बनाने में किया जाता है, जो उन गर्भवती महिलाओं को दी जाती है, जिनके खून में उनके अजन्मे बच्चे के लिए खतरा पैदा करने की आशंका होती है।
14 साल की उम्र में जेम्स की लंग सर्जरी हुई थी। इस दौरान उन्हें खून की जरूरत पड़ी थी। इसके बाद से ही उन्होंने ब्लड डोनेट करने की ठान ली थी। 18 से 81 साल की उम्र तक जेम्स हर दो हफ्ते में ब्लड डोनेट करते थे। 2005 में उन्हें सबसे ज्यादा 'ब्लड प्लाज्मा' डोनेट करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। 2022 तक उनका ये रिकॉर्ड कायम रहा था।
जेम्स को सुई से बहुत डर लगता था। जब भी उन्हें सुई लगती थी तो वो उसे देखते नहीं थे। इसके बावजूद वो ब्लड डोनेट करने में सबसे आगे रहते थे। ब्लड डोनेट करने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली थी। 1999 में उन्हें ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च सम्मान 'मेडल ऑफ द ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया' से सम्मानित किया गया था।
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1,173 बार डोनेट किया था ब्लड
सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड के मुताबिक, जेम्स ने अपने जीवन में 1,173 बार ब्लड डोनेट किया था। 1,163 बार दाहिने हाथ से और 10 बार बाएं हाथ से। उनकी बेटी ट्रेसी मेलोशिप ने बताया कि जेम्स न सिर्फ दयालु थे बल्कि काफी मजाकिया भी थे।
क्या है दुर्लभ एंटीबॉडी Anti-D?
जेम्स के खून में दुर्लभ एंटीबॉडी Anti-D मौजूद थी। इस एंटीबॉडी से एक खास दवा बनाई जाती है, जिससे अजन्मे या नवजात बच्चों को हेमोलिटिक बीमारी (HDFN) से बचाया जाता था। यह बीमारी तब होती है जब मां का ब्लड टाइप बच्चे के ब्लड टाइप से मेल नहीं खाता।
ऑस्ट्रेलिया में 200 Anti-D डोनर हैं। इनसे हर साल 45 हजार महिलाओं और उनके बच्चों की जान बचाई जाती है। जेम्स की बेटी ट्रेसी का कहना है कि Anti-D डोनर की वजह से मृत्यु दर में काफी कमी आई है। पहले एक हजार में से 4 बच्चों की मौत हो जाती थी लेकिन अब ये दर घटकर 0.01 हो गई है।