कनाडा का अल्बर्टा शहर। दुनिया की 7 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की एक बैठक हुई। ग्रुप7 की इस बैठक में एक बात पर सारे देशों ने मिलकर जोर दिया कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं होगा। अगर ऐसा होता है तो मध्य पूर्व अशांत हो जाएगा। जी7 देशों ने यहां तक कह दिया कि ईरान परमाणु हथियार बनाएगा आत्मरक्षा का हथियार इजरायल के पास होगा। ऐसा नहीं है कि यह विरोध सिर्फ ईरान झेल रहा है। जब भारत ने परमाणु परीक्षण किए थे तो रूस को छोड़कर सारे देशों ने भारत की आलोचना की थी।


ईरान की आलोचना नहीं, हमले हो रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संप्रभुता की धज्जियां उड़ाते हुए कहा है कि उन्हें पता है कि ईरान बिना शर्त सरेंडर कर दे। अमेरिकी सेना जानती है कि सुप्रीम लीडर कहां है, वह आसान निशाना हैं लेकिन वह सुरक्षित है। अमेरिकी सेना उन्हें मारने नहीं जा रही है। अमेरिका का सब्र अब खत्म हो रहा है। दूसरी तरफ इजरायल ने ईरान में घुसकर तबाही मचाई है। 

इजरायल के विदेश मंत्री गिदियोन सार ने कहा है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाने का काम पूरा नहीं हो पाया है। 

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भारत की परमाणु नीति क्या है? 

साल 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था और खुद को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र घोषित किया था। भारत की गिनती दुनिया के शांति प्रिय देशों में होती है, भारत की परमाणु प्रतिज्ञा है कि कभी परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साल 2019 में एक बयान दिया था कि भारत अपने परमाणु नीति पर कायम है लेकिन भविष्य में क्या होगा, यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। ईरान, अपने परमाणु हथियारों का क्या करेगा, इसे लेकर पूरी दुनिया आशंकित है। 


परमाणु परीक्षण पर रोक क्यों है?

संयुक्त राष्टर्र महासभा ने साल 1996 में कॉम्प्रिहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रिटी (CTBT) की शुरुआत की। मकसद था कि परमाण हथियारों के परीक्षण और परमाणु विस्फोट पर पूरी तरह से रोक लगे। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि दुनिया की शांति और सुरक्षा की दिशा में बढ़ पाए, इसके लिए यह जरूरी है कि परमाणु हथियारों के प्रसार को रोक दिया जाए। 
 

क्या यह संधि लागू हो पाई है?

कॉम्प्रिहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रिटी के भाग-2 में एक शर्त है कि दुनिया के 44 देशों की मंजूरी, इसे लागू करने के लिए अनिवार्य होगी। भारत, चीन, मिस्र, ईरान, इजरायल, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान और अमेरिका जैसे देशों ने इस पर हस्ताक्षर ही नहीं किए हैं। जिन देशों ने CTBTO संधि को माना है, उनकी मॉनिटरिंग,इंटनेशनल मॉनिटरिंग सिस्टम के जरिए की जाती है। यह संस्था हाइड्रोअकॉस्टिक, इन्फ्रासाउंड और रेडियोन्यूक्लाइड स्टेशनों पर नजर रखती है।  

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परमाणु अप्रसार संधि (NPT) क्या है? 

संयुक्त राष्ट्र संघ की अगुवाई में परमाणु अप्रसार संधि एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है। 1970 के दशक में यह लागू हुआ था। इस संधि का मकसद परमाणु हथियारों और तकनीक के प्रसार को रोकना था। परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देना था। यह संधि, परमाणु निरस्त्रीकरण के सिद्धांत पर काम करती है, जिसका मकसद दुनिया से परमाणु हथियारों को खत्म करना है। 

संधि को 11 मई 1995 को अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया। पांच परमाणु-हथियार वाले देशों सहित कुल 191 देश इस संधि में शामिल हुए हैं। अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन भी इसके सदस्य हैं। इन देशों ने अपने परमाणु हथियारों को न तो नष्ट किया है, न ईरादा रखते हैं लेकिन दुनिया पर दबाव बनाते हैं कि वे इस संधि से बाहर आएं।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) इस संधि की निगरानी करती है। इसके सदस्य देशों का मानना है कि दुनिया में शांति तभी आएगी, जब दुनिया के नए देश, परमाणु हथियार नहीं बनाएंगे। ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देश, इस संधि को आए दिन चुनौती देते हैं।  

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NPT को खारिज करने वाले देश कौन से हैं 

भारत, पाकिस्तान और इजरायल, इस संधि को नहीं मानते हैं। भारत ने साल 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण किए। भारत घोषित तौर पर परमाणु शक्ति संपन्न देश है। परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने कई कड़े प्रतिबंध लगाए थे, बीते कुछ साल में हटे हैं। पाकिस्तान और इजरायल ने भी खुद को इस संधि से बाहर रखा और परमाणु हथियारों को बना लिया। उत्तर कोरिया भी इस संधि को खारिज करता है।  


क्यों NPT की आलोचना होती है?

यूक्रेन ने 1991 के दशक से ही अपने परमाणु हथियार नष्ट करने शुरू किए। 2001 तक, यूक्रेन के पास परमाणु हथियार नहीं रहे। रूस ने अपने परमाणु हथियार नहीं तबाह किए थे। अंजाम यह हुआ है कि 24 फरवरी, 2022 से जारी यूक्रेन-रूस जंग में यह देश मिटने की कगार पर खड़ा है, लाखों लोग विस्थापित हैं, हजारों लोग मारे जा चुके हैं। दुनिया के कई नेता कह चुके हैं कि अगर यूक्रेन भी रूस की तरह परमाणु शक्ति संपन्न होता तो यह हिमाकत रूस नहीं कर पाता।

परमाणु शक्ति संपन्न 5 राष्ट्रों के परमाणु हथियारों पर एकाधिकार की बात से दुनिया के कई देशों को ऐतराज है। ईरान भी उन्हीं देशों में शुमार है। ईरान और इजरायल की दुश्मनी जगह जाहिर है। ऐसे में जब तक इजरायल के पास परमाणु हथियार रहेगा, ईरान सुरक्षित नहीं रहेगा। ईरान ने परमाणु हथियार बनाना शुरू किया तो अमेरिका ने पाबंदियां थोपीं, अब इजरायल ने उनके परमाणु ठिकानों पर ही हमला बोल दिया। जब कोई देश चोरी-छिपकर परमाणु हथियार विकसित करता है तो इन देशों की सबसे कठोर टिप्पणियां सामने आती हैं।

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भेदभाव का तर्क क्या है?

जिन 5 देशों का परमाणु हथियार विकसित करने का एकाधिकार है, उनका कहना है कि उन्होंने 1968 से पहले परमाणु परीक्षण किया था। बात के देशों को परमाणु परीक्षण से रोकना है, जिससे दुनिया परमाणु हथियारों की अंधी दौड़ में शामिल न हो। यह संधि, 1970 में अस्तित्व में आई।


विंडबना क्या है?

जापान पर 6 अगस्त 1945 को 'लिटिल बॉय' और 9 अगस्त 1945 को 'फैट मैन' गिराने वाले अमेरिका को इस बात पर ऐतराज है कि ईरान परमाणु बम बना रहा है। अमेरिका के अलावा किसी देश ने कभी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया। अमेरिका की क्रूरता की वजह से जापान में लाखों मौतें हुईं थीं।  


किन देशों के पास कितना है परमाणु हथियार?

दुनिया के 9 देश ऐसे हैं, जिनके पास घोषित तौर पर परमाणु हथियार है। दुनिया इन्हें परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र की सूची में रखती है।

  • रूस- 5449 
  • अमेरिका- 5277
  • चीन- 600
  • फ्रांस- 290
  • ब्रिटेन- 225
  • भारत- 180
  • पाकिस्तान- 170
  • इजरायल- 90
  • उत्तर कोरिया- 50 


परमाणु हथियारों की निगरानी कौन करता है?

इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) परमाणु हथियारों की निगरारी करती है। यह एक स्वायत्त वैश्विक संस्था है, जिसका मकसद परमाणु हथियारों के सैन्य इस्तेमाल को हर हाल में रोकना है। 29 जुलाई 1957 को यह संस्था अस्तित्व में आई। इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियाना में है।