'तेरे जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना, याद करेगी दुनिया तेरा-मेरा अफसाना।' यह गाना हम सब ने सुना होगा, लेकिन दुनियाभर में तेजी से अकेलापन बढ़ रहा है। वो दिन दूर नहीं जब सच में लोग अपना याराना याद करेंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अकेलेपन को 'वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता' घोषित कर रखा है। अकेलेपन ने न केवल अमेरिका, बल्कि दुनियाभर की चिंता बढ़ा रखी है। इस मामले में डब्ल्यूएचओ ने एक अंतराष्ट्रीय आयोग का गठन किया है। यह आयोग अकेलेपन के बारे में जागरुकता फैला रहा है।
संगठन का मानना है कि अकेलेपन का शरीर पर उतना ही घातक असर होता है, जितना एक दिन में 15 सिगरेट पीने का होता है। महामारी घोषित होने के बाद मार्क जुकरबर्ग जैसे उद्योगपतियों की निगाहें अकेलेपन को एक मुनाफे के बिजनेस में तब्दील करने पर टिकी हैं। आज हम जानेंगे कि अकेलेपन की महामारी क्या है, इसका सेहत पर क्या असर होता है और मार्क जुकरबर्ग इससे मुनाफा कैसे कमाना चाहते हैं?
कोरोना महामारी ने बढ़ाई समस्या
कोरोना महामारी के बाद दुनियाभर में अकेलापन बढ़ा है। लोग घर से काम करने लगे। सोशल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन ने लोगों को एक नए माहौल में ढलने का मौका दिया। अमेरिकी सर्जन जनरल विवेक मूर्ति का कहना है कि अमेरिका में आधे से अधिक युवा कोरोना महामारी से पहले ही अकेलेपन को महसूस करने लगे थे। कोविड-19 के दौरान कई लोग अकेलेपन में डूब चुके थे। अकेलापन न केवल इंसान, बल्कि समाज के लिए भी घातक है।
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हार्वर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ एजुकेशन के मेकिंग केयरिंग कॉमन (एमसीसी) परियोजना से जुड़े शोधकर्ताओं ने अकेलेपन से जुड़ा सर्वे किया। सर्वे के मुताबिक अमेरिका में 21 फीसदी युवा अकेलेपन से जूझ रहे हैं। बुजुर्गों में अकेलापन सबसे कम है। 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में 10 फीसदी अकेलपन देखने को मिला है। सालाना 30000 डॉलर से कम कमाने वाले अमेरिकी लोगों में लगभग 29 फीसदी अकेलापन देखने को मिला है। एमसीसी की रिपोर्ट के मुताबिक अकेलेपन और मानसिक स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध मिला है। अकेलेपन से जूझने वाले 81 फीसदी लोगों में अवसाद और चिंता की भावना देखने को मिली है।
सामाजिक रिश्ते क्यों जरूरी?
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक अच्छे सामाजिक संबंध हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। दुनियाभर में 4 में से 1 वृद्ध व्यक्ति अकेलेपन से जूझ रहा है। वहीं 5 से 15% किशोर अकेलेपन का अनुभव करते हैं। मोटापा और धूम्रपान से असमय मौत का जितना खतरा होता है, ठीक उतना ही जोखिम अकेलेपन से भी है। अकेलेपन के कारण 50 फीसदी तक याददाश्त से जुड़ी समस्या का खतरा रहता है। 32 फीसदी तक स्ट्रोक का खतरा भी हो सकता है।
क्यों बढ़ रहा अकेलापन?
- तकनीक: सोशल मीडिया और मोबाइल फोन पर लोग अधिक समय बिताने लगे हैं। इस कारण वास्तविक दुनिया से उनका कटाव होगा। अमेरिका में लगभग 73 फीसदी लोगों ने तकनीक को अकेलेपन का जिम्मेदार ठहराया है।
- परिवार से दूरी: 66 फीसदी लोगों का मानना है कि परिवार से दूरी अकेलेपन की एक वजह है। लोगों को अपने फैमिली के साथ रहने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा है।
- व्यक्तिवादी समाज: मौजूदा समय में सामुदायिक जीवन खत्म हो रहा है। लोग अपने तक ही सीमित है। अपनी लाइफ-अपनी मर्जी को मनाने वाले लोग अब अकेलेपन से गुजर रहे हैं। 58 फीसदी लोग व्यक्तिपरक समाज को अकेलेपन का जिम्मेदार मानते हैं।
- धार्मिक व आध्यात्मिक जीवन का अभाव: लोग अपने तक सीमित है। धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन से दूरी अकेलेपन को बढ़ा रही। धार्मिक उत्सव और त्योहार लोगों को एक-दूसरे से घुलने-मिलने का मौका देते हैं, लेकिन सरपौट दौड़ती जिंदगी में इन सबक चीजों के लिए समय निकाल पाना मुश्किल होता है। 50 फीसदी लोगों का यही मानना है।
क्या है जुकरबर्ग का बिजनेस मॉडल?
हाल ही में पॉडकास्टर द्वारकेश पटेल के साथ बातचीत में मार्क जुकरबर्ग ने अकेलेपन से निपटने का नुस्खा बताया। मगर यह नुस्खा कम, बिजनेस मॉडल ज्यादा लगा। जुकरबर्ग का मानना है कि अकेलेपन से निपटने के लिए सामुदायिक केंद्र और मानसिक स्वास्थ्य सहायता पर खर्च करने की जरूरत नहीं है। मार्क का मानना है कि सोशल मीडिया पर एआई दोस्त और एआई डॉक्टर के जरिए इसका हाल निकाला जा सकता है। जाहिर सी बात है कि जुकरबर्ग कोई धर्मार्थ काम करने नहीं निकले हैं। उनकी हर रणनीति के पीछे बिजनेस प्लान होता है।
कैसे काम करेगी जुकरबर्ग की तकनीक?
जुकरबर्ग मेटा पर एक फीड बनाना चाहते हैं। इसमें रील की तरह आपको कंटेंट दिखेगा। खास बात यह होगी कि आप रील में दिखने वाले शख्स से सीधे बात कर सकेंगे। वह आपके सवालों का जवाब देगा। इसमें फीड एल्गोरिदम का इस्तेमाल किया जाएगा, जो आपके व्यवहार के हिसाब से आपको जवाब देगा। मतलब जुकरबर्ग एआई दोस्तों की मदद से अकेलेपन से निपटने की तैयारी में है। संभावना यह है कि मेटा इस डेटा का इस्तेमाल अन्य बिजनेस उद्देश्यों में भी कर सकती है। हो सकता है कि भविष्य में कोई ऐसा एआई मॉडल सामने आए, जो सब्सक्रिप्शन बेस पर एआई दोस्त बनाने की पेशकश करे।
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क्या विकसित देशों की बीमारी है अकेलापन?
अभी तक माना जाता है कि अकेलापन विकसित देशों की समस्या है, लेकिन अब यह अफ्रीका और भारत में भी तेजी से बढ़ने लगी है। नौकरी की तलाश में पलायन, सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल और सिर्फ अपने से मतलब रखने की प्रवृत्ति ने भारत जैसे मजबूत सामाजिक संबंध वाले देश में अकेलेपन की समस्या को गंभीर बना दिया है। अमेरिकी सर्जन जनरल विवेक मूर्ति के मुताबिक, दुनिया के सभी क्षेत्रों में चार में से एक वृद्ध अकेलेपन से जूझ रहा है। अफ्रीका में, 12.7 और यूरोप में 5.3% फीसदी युवा अकेलेपन का शिकार हैं।