ग्लोबल वार्मिग धरती को साल दर साल गर्म कर रही है। ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, फसलों की पैदावार पर असर, स्किन संबंधी बिमारियां से सभी दुश्वारियां  ग्लोबल वार्मिग की वजह से दुनिया के सामने आ रही हैं। इन सबसे बारे में आमतौर पर हम सभी तो पता है लेकिन क्या आपको पता है कि धरती पर बढ़ती हुई गर्मी इंसानों की नींद भी छीन रही है। इसका सीधा सा ये मतलब है कि प्रचंड गर्मी की वजह से लोगों की नींद में बदलाव आ रहा है और यह बात इंसानों को पता भी नहीं है।

 

इंसानों का दिमाग गर्मी के प्रति बहुत संवेदनशील होता है। ज्यादा तापमान शरीर के केंद्रीय थर्मोस्टेट को बढ़ाता है और तनाव की प्रणालियों को सक्रिय कर देता है। वैज्ञानिक तेजी से उन मैकेनिज्म की खोज कर रहे हैं जो शरीर को बढ़ते तापमान के अनुकूल होने में मदद कर सकते हैं। शरीर के अंदर मौजूद ये मैकेनिज्म हमारी नींद को प्रभावित करते हैं और स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं को जन्म देते हैं।

 

नींद को प्रभावित कर रहा तापमान

 

दरअसल, जर्नल स्लीप मेडिसिन में एक आर्टिकल छपा है। जर्नल स्लीप मेडिसिन में प्रकाशित वैज्ञानिक आर्टिकल की 2024 की समीक्षा के मुताबिक, 'जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण की वजह से बढ़ता तापमान इंसानों की नींद को प्रभावित कर रहा है। इस की वजह से स्वास्थ्य, काम करने की इच्छा और जीवन के लिए खतरा पैदा कर रहा है।'

 

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जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित 2022 की एक स्टडी के मुताबिक, '21वीं सदी के पहले दो दशकों के दौरान मनुष्यों ने पहले की तुलना में औसतन 44 घंटे की नींद खो दी है। स्टडी में इसकी वजह बढ़ते तापमान को माना है।'

 

स्टडी में 68 देशों के 47,000 से ज्यादा लोग शामिल

 

यह स्टडी कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के केल्टन माइनर के नेतृत्व की गई है। इंसानों की नींद को लेकर की गई स्टडी में 68 देशों में 47,000 से ज्यादा लोगों को लेकर डेटा तैयार किया गया है। डेटा के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से साल 2099 तक हर आदमी की नींद में सालाना 50 से 58 घंटे की कमी हो सकती है।

 

माइनर और शोध में शामिल अन्य लेखकों ने कहा, 'गर्म दुनिया में नींद की जरूरी कारकों को बढ़ावा देने और इसके अनुकूलन को बढ़ावा देने के लिए हस्तक्षेप और इस क्षेत्र में प्रयोगों की अब तत्काल जरूरत है।' मस्तिष्क में तापमान और नींद को नियंत्रित करने वाले न्यूरॉन्स आपस में अत्यधिक जुड़े हुए हैं और शरीर के आंतरिक थर्मोस्टेट को कम करना नींद की गुणवत्ता में सुधार करने की कुंजी है।

 

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शरीर को कुछ कीमत चुकानी पड़ती है- शोधकर्ता

 

पेरिस साइट यूनिवर्सिटी के एक शोधकर्ता फैबियन सॉवेट के मुताबिक, गर्मी के अनुकूल होने के लिए शरीर को कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। उदाहरण के लिए, हमें अधिक और तेजी से पसीना आता है लेकिन इसके लिए हमें एक्ट्रा पानी पीने की जरूरत होती है। इसकी भी सीमाएं हैं इसलिए हीटवेव के दौरान सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपने व्यवहार को ठीक करें। जैसे कि गर्मी के मुताबिक गतिविधियां करना, उसके हिसाब से शेड्यूल बनाना और कपड़े पहनना शामिल है।

 

कितने तापमान में बेहतर नींद मिलती है?

 

इंसान आम तौर पर सोचे जाने वाले तापमान से ज्यादा तापमान को सहन कर सकता है। फैबियन सॉवेट ने कई अध्ययनों की ओर इशारा करते हुए कहा कि 28 डिग्री सेल्सियस (82.4 डिग्री फारेनहाइट) तक के कमरे के तापमान पर अच्छी नींद हासिल की जा सकती है।

 

इस गलत धारणा को चुनौती देते हुए कि बेडरूम का तापमान 18-20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए फैबियन सॉवेट ने कहा,'टी-शर्ट और शॉर्ट्स जैसे हल्के कपड़े पहनकर और एक साधारण चादर के साथ-साथ अच्छे वेंटिलेशन के साथ सोने से कुछ और डिग्री से निपटने में मदद मिल सकती है।' उन्होंने कहा कि अगर हम हमेशा एयर कंडीशनिंग (AC) के साथ सोते हैं, तो हम कभी भी गर्मी को अनुकूल नहीं कर पाएंगे।
 
नींद के आड़े आने वाली रुकावटों से लड़ें

 

सेंटर फॉर इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च इन बायोलॉजी के न्यूरोसाइंटिस्ट आर्मेल रैन्सिलैक ने कहा कि 28 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान 'बहुत ज़्यादा कॉम्प्लिकेटेड होता है।' नींद की अत्यधिक कमी शरीर की रिकवरी में रुकावटें पैदा करती हैं। कम नींद की वजह से थकान और कार्यस्थल या सड़क पर दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ सकती है।

 

आर्मेल रैन्सिलैक ने कहा कि लंबे समय से नींद पूरी ना होना हमारे मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करता है और वजन बढ़ने, मधुमेह, हृदय संबंधी बीमारियों और यहां तक ​​कि अल्जाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के भी जोखिम को भी बढ़ाता है। 

 

वहीं, नींज की कमी तनाव से लड़ने वाली हमारी प्रतिरोध क्षमता को भी कम कर सकती है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक पड़ता है। गर्म तापमान में बेहतर नींद के लिए, रैन्सिलैक ने जोर देकर कहा कि इसके दुश्मनों से लड़ना या उन पर ध्यान देने की जरूरत है।