भारत में मानसून न केवल एक मौसमी घटना है, बल्कि यह कृषि, पेयजल की उपलब्धता और बिजली उत्पादन के लिए जिम्मेदार होने के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, सामान्य रूप से मानसून केरल तट पर 1 जून के आसपास प्रवेश करता है और जुलाई तक पूरे देश को कवर करता है। हालांकि, जब मानसून समय से पहले आता है, तो यह विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, जल संसाधन, बिजली उत्पादन, और पर्यावरण के लिए कई अवसर लाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था का लगभग 14% हिस्सा कृषि पर निर्भर है, और 70% से अधिक खेती मानसून पर आधारित है। समय से पहले मानसून का आगमन खरीफ फसलों की बुवाई को समय पर शुरू करने में मदद करता है, जिससे किसानों की आय और खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है।
जल संसाधनों की दृष्टि से, जल्दी बारिश जलाशयों और भूजल स्तर को रिचार्ज करती है, जिससे पेयजल संकट और सूखे की आशंका कम होती है। केंद्रीय जल आयोग (CWC) के आंकड़ों के अनुसार, भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में मानसून के दौरान 80% तक जल भंडारण होता है। इसके अलावा, जल्दी मानसून जलविद्युत उत्पादन को बढ़ावा देता है, जो भारत की कुल बिजली आपूर्ति का लगभग 13% हिस्सा है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, यह गर्मी की तपिश और वायु प्रदूषण को कम करता है। हालांकि, जल्दी मानसून के साथ ज्यादा बारिश और बाढ़ जैसे जोखिम भी जुड़े हैं, जो इसे बेहतर ढंग से मैनेज करने की मांग करते हैं।
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इस लेख में खबरगांव आपको बताएगा कि मानसून के समय से पहले आने की वजह से कृषि, बिजली उत्पादन, जल संसाधन, और अन्य क्षेत्रों पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ता है?
खरीफ की फसलों की बुवाई समय पर
भारत में कृषि काफी हद तक मानसून पर निर्भर है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, देश की 60% से अधिक कृषि भूमि वर्षा आधारित है। समय से पहले मानसून का आगमन खरीफ फसलों जैसे धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास, और मूंगफली की बुवाई को समय पर शुरू करने में मदद करता है। सामान्य रूप से खरीफ की बुवाई जून के मध्य से शुरू होती है, लेकिन जल्दी बारिश से मई के अंत या जून की शुरुआत में बुवाई करना संभव हो जाता है। 2023 में, IMD ने बताया था कि समय से पहले मानसून (25 मई को केरल में) की वजह से मध्य भारत में 10% अधिक क्षेत्रों में बुवाई हो पाई।
सिंचाई की लागत में कमी
जल्दी बारिश से मिट्टी में नमी का स्तर बढ़ता है, जिससे सिंचाई की लागत कम होती है। 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, जब समय से पहले बारिश हुई तब मानसून-निर्भर क्षेत्रों में किसानों को सिंचाई पर 20-30% तक कम खर्च करना पड़ा। यह विशेष रूप से मध्य प्रदेश, बिहार, और ओडिशा जैसे राज्यों में लाभकारी है, जहां सिंचाई की सुविधाएं सीमित हैं।
इसके अलावा, समय पर पानी की उपलब्धता से फसलों की जड़ें मजबूत होती हैं, और फसल चक्र पूरा होने से पैदावार में 15-20% की वृद्धि हो सकती है। उदाहरण के लिए, 2021 में जल्दी मानसून के कारण धान की पैदावार में 8% की वृद्धि दर्ज की गई थी।
हालांकि, समय से पहले मानसून आने से अतिवृष्टि यानी कि जरूरत से ज्यादा बारिश होने का भी जोखिम बना रहता है। 2019 में जल्दी और भारी मानसून ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में 10 लाख हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचाया।
बेहतर फसल विकास
समय पर और पर्याप्त पानी उपलब्ध होने से फसलों की जड़ें मजबूत होती हैं, और पोषक तत्वों का अवशोषण बेहतर होता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है।
दोहरी फसल की संभावना
जल्दी मानसून से खरीफ फसलों के जल्दी पकने की संभावना बनती है, जिससे रबी फसल की बुवाई के लिए अतिरिक्त समय मिलने की संभावना बढ़ जाती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां दोहरी खेती संभव है। इस तरह से फसलों का चक्र बढ़ने से किसान की आय बढ़ती है।
कृषि संबंधी अन्य गतिविधियां
जल्दी बारिश से कृषि से संबंधित अन्य गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलता है तालाबों और जलाशयों में पानी की मात्रा बढ़ती है, जिससे मछली पालन को बढ़ावा मिलता है। 2023 में, आंध्र प्रदेश में मछली उत्पादन में 10% की वृद्धि दर्ज की गई।
बिजली उत्पादन पर प्रभाव
मानसून का समय से पहले आना जलविद्युत उत्पादन के लिए वरदान है। भारत में जलविद्युत कुल बिजली उत्पादन का लगभग 12.5% हिस्सा है, और यह मानसून पर निर्भर है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के अनुसार, 2024 में भारत की जलविद्युत क्षमता 47,000 मेगावाट थी। जल्दी बारिश से जलाशयों में पानी का स्तर जल्दी बढ़ता है, जिससे बिजली उत्पादन में स्थिरता आती है। उदाहरण के लिए, 2023 में जल्दी मानसून के कारण भाखड़ा नांगल और सरदार सरोवर जैसे बांधों में 15% अधिक जल भंडारण हुआ, जिससे गर्मियों में बिजली कटौती 10% कम हुई।
जल्दी मानसून से ग्रिड पर दबाव कम होता है, क्योंकि जलविद्युत संयंत्र कोयला और गैस जैसे महंगे ईंधनों पर निर्भरता को कम करते हैं। 2022 में, जलविद्युत उत्पादन में 12% की वृद्धि ने कोयले की खपत को 8 मिलियन टन कम किया। इसके अलावा, बिजली उत्पादन बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में भी बिजली की आपूर्ति बेहतर होती है, जिससे कृषि और छोटे उद्योगों को लाभ होता है।
हालांकि, ऐसी स्थिति में डैम का बेहतर मैनेजमेंट जरूरी है, क्योंकि अचानक भारी बारिश से बांधों पर दबाव बढ़ सकता है, जैसा कि 2018 के केरल बाढ़ में देखा गया था।
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जल संसाधन पर प्रभाव
जल संसाधनों के लिए मानसून का समय से पहले आना अत्यंत महत्वपूर्ण है। केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में 80% जल भंडारण मानसून के दौरान होता है। जल्दी बारिश से जलाशय, नदियां, और तालाब जल्दी भर जाते हैं, जिससे पेयजल आपूर्ति और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होता है। 2023 में, जल्दी मानसून ने देश के जलाशयों में औसतन 25% अधिक जल भंडारण सुनिश्चित किया।
भूजल होता है रिचार्ज
भूजल स्तर का रिचार्ज भी मानसून के जल्दी आने से होने वाला एक बड़ा लाभ है। नेशनल ग्राउंडवाटर बोर्ड के अनुसार, भारत में 30% क्षेत्रों में भूजल स्तर गंभीर रूप से कम है। जल्दी मानसून से कुओं और बोरवेल में पानी का स्तर सुधरता है, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पेयजल संकट कम होता है। उदाहरण के लिए, 2021 में राजस्थान और गुजरात में जल्दी बारिश से भूजल स्तर में 10-15% सुधार हुआ।
जल संरक्षण के लिए उचित बुनियादी ढांचा अगर हो तो यह और भी ज्यादा फायदेमंद हो जाता है, लेकिन ऐसा न होने की स्थिति में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है, जैसा कि 2020 में असम और बिहार में देखा गया, जहां 50 लाख लोग प्रभावित हुए।
वायु प्रदूषण को घटाने में मददगार
जल्दी मानसून गर्मी की तपिश को कम करता है और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करता है। 2023 में, दिल्ली में जल्दी बारिश ने पीएम 2.5 स्तर को 20% तक कम किया। यह पेड़-पौधों और जैव-विविधता के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि समय पर पानी की उपलब्धता होने से पेड़-पौधे ज्यादा संख्या में पैदा होते हैं और इसकी वजह से वन्यजीवों की भी संख्या में बढ़ोत्तरी होती है।
टूरिज़म पर असर
जल्दी मानसून आने से हिल स्टेशन और प्राकृतिक स्थल काफी आकर्षक बन जाते हैं। 2022 में, केरल और हिमाचल प्रदेश में पर्यटन आय में 15% की वृद्धि हुई, क्योंकि जल्दी बारिश ने प्राकृतिक सौंदर्य को काफी बढ़ा दिया।
इस तरह से देखें तो मानसून का समय से पहले आना कृषि, बिजली उत्पादन, जल संसाधन, और पर्यावरण के लिए बेहतर साबित होता है। यह खरीफ की फसलों की पैदावार बढ़ाता है, जलाशयों और भूजल को रिचार्ज करता है, और जलविद्युत उत्पादन को बेहतर बनाता है। हालांकि, अगर प्रबंधन की उचित व्यवस्था न हो तो इसकी वजह से अतिवृष्टि और बाढ़ जैसे जोखिमों की भी संभावना बढ़ती है।