शिक्षा मंत्रालय ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE), केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) और नवोदय विद्यालय समिति (NVS) से अपने स्कूलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बचपन से जुड़ी घटनाओं पर आधारित फिल्म 'चलो जीते हैं' दिखाने का निर्देश दिया है।
11 सितंबर को जारी एक पत्र में मंत्रालय ने इन संस्थाओं को 16 सितंबर से 2 अक्टूबर तक स्कूलों में फिल्म दिखाने को कहा है। पत्र में बताया गया है कि यह फिल्म छात्रों को चरित्र, सेवा और जिम्मेदारी जैसे विषयों पर सोचने-समझने में मदद करेगी। साथ ही, यह नैतिक शिक्षा, सहानुभूति, आत्ममंथन और प्रेरणा को बढ़ावा देने में भी उपयोगी होगी।
मंत्रालय का तर्क
मंत्रालय ने स्कूलों में फिल्म को दिखाने के पीछे तर्क दिया है कि इससे छात्रों के जीवन में अहम बदलाव आएंगे। मंत्रालय का कहना है कि यह फिल्म नैतिक तर्क के लिए एक केस स्टडी के रूप में भी काम कर सकती है।
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क्या है मंत्रालय का कार्यक्रम?
शिक्षा मंत्रालय पीएम मोदी के जन्मदिन का मौके पर 'प्रेरणा: एक अनुभवात्मक शिक्षण कार्यक्रम' चला रहा है। इसमें विद्यालय शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय के साथ अन्य विभाग भी सहभागिता है। इस कार्यक्रम के तहत 65 बैच देश भर के 650 जिलों को कवर कर चुके हैं। इसका संचालन 1888 में स्थापित गुजरात के वडनगर स्थित वर्नाक्यूलर स्कूल से किया जाता है, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पढ़ाई शुरू की थी।'
'गैर-फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार'
मंत्रालय ने बताया कि सात साल पहले रिलीज हुई इस फिल्म को 66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में पारिवारिक मूल्यों पर आधारित सर्वश्रेष्ठ गैर-फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। पत्र में कहा गया है, 'प्रेरणा कार्यक्रम के अंतर्गत, इस फिल्म ने प्रतिभागियों पर गहरी छाप छोड़ी है, जिन्होंने इसे अपने अंदर शामिल किया है और जो उनके व्यवहार और कार्यों में दिखाई देता है।'
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इसमें आगे बताया गया है कि प्रतिभागियों में अनुभव के जरिए सीखने को बढ़ाने के लिए 'प्रेरणा' में मूल्य-आधारित सत्य, कहानी सुनाने, स्थानीय खेलों और व्यावहारिक गतिविधियों जैसे शैक्षिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक तरीका है फिल्में दिखाना, जो मूल्यों, जीवन की कहानियों, इतिहास, नैतिक समस्याओं और मानवीय भावनाओं को जीवंत करता है।
