कांग्रेस ने रविवार (14 दिसंबर) को दिल्ली के रामलीला मैदान में 'वोट चोर गद्दी छोड़' नाम से एक बड़ी रैली का आयोजन किया। इस रैली से कांग्रेस ने बीजेपी-चुनाव आयोग और सरकार की कथित मिलीभगत से चुनावों में वोट चोरी करने की बात की। पार्टी के शीर्ष नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने लाखों की तादाद में मौदूज कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सामने बीजेपी और चुनाव आयुक्तों पर हमला किया। इस दौरान कांग्रेस ने आरोप लगाया कि वोट चोरी सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के डीएनए में है और उसके नेता 'गद्दार' हैं जो लोगों के वोट के अधिकार को छीनने की साजिश रच रहे हैं। यह आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से हटाने की बात कही।
कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार वोट चोरी का मुद्दा उठा रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर वह आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। हालिया बिहार विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने वोट चोरी को मुद्दा बनाने के लिए वोटर अधिकार यात्रा निकाली थी। इसी सिलसिले में कांग्रेस ने रविवार को राजधानी दिल्ली में भी वोट चोरी के मुद्दे पर एक बड़ी रैली का आयोजन किया था। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि वोट चोरी के मुद्दे पर कांग्रेस अभी तक कितनी सफल हो पाई है...
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बिहार में वोट चोरी का मुद्दा
कांग्रेस और उसका शीर्ष नेतृत्व ने सबसे अधिक बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान वोट चोरी का मुद्दा उठाया। पार्टी ने इस मुद्दे के सहारे बीजेपी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश की और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठाया। बिहार की जनता के मन में वोट चोरी का मुद्दा बैठाने के लिए राहुल गांधी के नेतृत्व में महागठबंधन ने वोटर अधिकार यात्रा जैसा बड़ा राजनीतिक अभियान चलाया। यह यात्रा बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले मतदाता अधिकारों की रक्षा और कथित वोट चोरी के खिलाफ शुरू की गई।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराया जा रहा है, जिसके तहत लाखों मतदाताओं (खासकर दलित, ओबीसी, मुस्लिम और गरीब वर्गों के) के नाम हटाए जा रहे हैं। राहुल गांधी ने इसे ही वोट चोरी की साजिश बताया और कहा कि यह लोकतंत्र और संविधान पर हमला है। यात्रा का लक्ष्य जनता को जागरूक करना और मताधिकार की रक्षा करना था।
क्या असफल होगी कोशिश?
17 अगस्त से लेकर 1 सितंबर 2025 तक चली इस 16 दिन की यात्रा में लगभग 1300 किलोमीटर की दूरी तय की गई। बिहार के कुल 20-25 जिलों को कवर किया गया। मगर, जिस जोर-शोर से इस वोट चोरी की यात्रा को निकाला गया और राष्ट्रीय मीडिया से लेकर बिहार में स्थानीय स्तर पर माहौल बनाने की कोशिश की गई, वह असफल रही। इनती बड़ी यात्रा के बाद, जिसमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के शामिल होने के बाद 6 और 11 नवंबर को बिहार विधानसभा के लिए मतदान हुआ।
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बिहार के नतीजे और वोट चोरी
मगर, 14 नवंबर को आए चुनावी नतीजों ने यह साबित कर दिया कि कांग्रेस की वोट चोरी को लेकर की गई वोटर अधिकार यात्रा असफल रही। क्योंकि 243 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 61 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन कांग्रेस सिर्फ छह सीटें ही जीत पाई। इस बार कांग्रेस का बिहार विधानसभा चुनावों में वोट शेयर 8.71 प्रतिशत रहा। 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 9.6 प्रतिशत रहा था। हालांकि तब कांग्रेस ने 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने 19 सीटें जीती थीं।
दरअसल, बिहार की वोटर अधिकार यात्रा में बड़ी भीड़ जुटाई थी, जिसमें विपक्षी एकता दिखाई दी। राहुल गांधी ने इसे लोकतंत्र बचाने की लड़ाई बताया। यात्रा के दौरान मोटरसाइकिल पर सवारी, किसानों से मुलाकात और स्थानीय मुद्दों पर चर्चा हुई। मगर, चुनावी परिणामों में कांग्रेस फिसड्डी साबित हुई।
कांग्रेस की अग्निपरीक्षा
इसी तरह से 14 दिसंबर को कांग्रेस ने दिल्ली से वोट चोर गद्दी छोड़ रैली में एक बार फिर से देश के सामने वोट चोरी का मुद्दा उठाया है। ऐसे में देखना होगा कि दिल्ली 'वोट चोरी' का संदेश देकर इस मुद्दे पर कांग्रेस कितनी सफल हो पाती है? क्योंकि आगे पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां पार्टी की अग्निपरीक्षा होगी।
