गर्मी तेजी से बढ़ रही है। झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में लू चलने लगी है। कई हिस्सों में पारा 42 डिग्री को पार कर गया है। इस साल भी जबरदस्त हीटवेव चलने के आसार हैं। अब जब गर्मी बढ़ेगी तो बिजली की मांग और खपत बढ़ना भी जाहिर है।
हालांकि, इस बीच नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि गर्मी में बिजली की मांग 15 से 20 GW तक बढ़ सकती है। इससे बिजली की सप्लाई पूरी करने में दिक्कत आ सकती है और बिजली कटौती की समस्या से भी जूझना पड़ सकता है।
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रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
NLDC ने अपनी रिपोर्ड में आशंका जताई है कि मांग बढ़ने से बिजली कटौती की समस्या भी हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे ज्यादा दिक्कत मई में आने की आशंका है। मई में बिजली की सप्लाई पर असर पड़ सकता है। वहीं, जून में बिजली की पूरी सप्लाई न होने की 20 फीसदी संभावना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मई और जुलाई के बीच डिमांड और सप्लाई में 15 GW का अंतर देखने को मिलता है। इस साल भी यही संभावना है, जिससे बिजली कटौती की समस्या हो सकती है।
NLDC ने रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि बिजली संकट से निपटने के लिए कोयले पर चलने वाले पावर प्लांट में कैपेसिटी बढ़ाई जानी चाहिए। इसके साथ ही रिन्यूएबल एनर्जी यानी सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों को भी तेजी से विकसित किए जाने की जरूरत है।
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कितनी हो सकती है इस बार डिमांड?
पिछले साल बिजली की डिमांड 250 गीगावाट (GW) के पीक लेवल तक पहुंच गई थी। पिछले साल दिसंबर में सरकार ने संसद में बताया था कि मई में बिजली की डिमांड 249.85 GW तक पहुंच गई थी। जून में 244.52 GW, जुलाई में 226.78 GW और अगस्त में 216.48 GW तक पहुंच गई थी।
इस साल बिजली की मांग 270 GW तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत में हर साल बिजली की डिमांड 6 फीसदी की दर से बढ़ रही है। अब यह 7 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। 2030 तक देश में बिजली की पीक डिमांड 446 GW तक पहुंच सकती है।
आंकड़ों से पता चलता है कि 5 साल में देश में बिजली की डिमांड 35 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई है। 2019-20 में बिजली की पीक डिमांड 183 GW तक पहुंच गई थी। तब 182 GW डिमांड पूरी हो गई थी। पिछले साल यह डिमांड 249 GW तक हो गई थी।
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कैसे पूरी होगी यह डिमांड?
अभी भारत में ज्यादातर बिजली कोयले से बनती है। नीति आयोग के इंडिया क्लाइमेट एंड एनर्जी डैशबोर्ड के मुताबिक, देश में जितनी बिजली पैदा होती है, उसमें से 72.57% कोयले से बनती है।
कोयले के अलावा 8.74% पानी से, 3.15% न्यूक्लियर एनर्जी से, 1.87% गैस से और लगभग 14% रिन्यूएबल एनर्जी से बिजली बनाई जाती है। इन सभी की कैपेसिटी 466 GW है। यानी इन सभी स्रोतों से हर महीने 466 GW तक बिजली बन सकती है।
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) के चेयरमैन घनश्याम प्रसाद ने कुछ दिन पहले न्यूज एजेंसी PTI को बताया था कि इस साल गर्मी में बिजली की डिमांड 270 GW तक पहुंचने की उम्मीद है और इसे पूरा करने की तैयारी भी कर ली गई है।
उन्होंने बताया था कि आयातित कोयले से चलने वाले प्लांट अप्रैल तक फुल कैपेसिटी में काम करेंगे। इससे 17 GW की बिजली ज्यादा पैदा होगी। इसके अलावा 10 से 12 GW बिजली गैस आधारित प्लांट से बनेगी। उन्होंने बताया था कि नई कैपेसिटी तैयार की गई है, जिससे 32 GW बिजली रिन्यूएबल एनर्जी से पैदा होगी।
घनश्याम प्रसाद ने बताया था, 'बिजली की मांग पूरी करने के लिए हम पूरी कैपेसिटी का इस्तेमाल करेंगे, फिर चाहे वो कोयला हो, गैस हो या हाइड्रो हो। हाइड्रो पावर प्लांट को पानी बचाने को कहा गया है, ताकि बिजली की मांग पूरी कर सकें। इस साल बर्फबारी अच्छी हुई है, इसलिए उम्मीद है कि हाइड्रो प्लांट से अच्छी बिजली पैदा होगी। पिछले साल की तुलना में इस साल कोयले की स्थिति भी काफी अच्छी है।'
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कोयले-पानी से कैसे बनती है बिजली?
दुनिया में कोयले का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में होता है। हालांकि, बिजली की जरूरत पूरा करने के लिए आयात भी खूब होता है। इसलिए कोयला आयात करने वालों में भारत दूसरे नंबर पर है।
कोयले से बिजली बनाने के लिए सबसे पहले इसे खदानों से निकाला जाता है और पावर प्लांट में लाया जाता है। फिर कोयले को पीसकर पाउडर जैसा बनाया जाता है। पीसे हुए कोयले को एक भट्ठी में डालकर हाई टेंपरेचर पर चलाया जाता है, जिससे भाप पैदा होती है। यह भाप टरबाइन को घुमाती है जो जनरेटर से जुड़ा होता है। टरबाइन जब घूमता है तो उसकी एनर्जी जनरेटर के जरिए इलेक्ट्रिक एनर्जी में बदल जाती है। सबसे आखिर में इस इलेक्ट्रिक एनर्जी को पावर ग्रिड में भेजा जाता है, जिससे घरों तक बिजली पहुंच जाती है।
पानी से भी इसी तरह से बिजली बनती है। हाइड्रो पावर प्लांट में पानी को जमा किया जाता है और एक पाइप के जरिए इसे टरबाइन तक भेजा जाता है। पानी का फ्लो इतना ज्यादा होता है, जिससे टरबाइन घूम सके। यह टरबाइन जनरेटर से जुड़ा होता है। टरबाइन के घूमने से जो एनर्जी निकलती है, वह जनरेटर के जरिए इलेक्ट्रिक एनर्जी में तब्दील हो जाती है। इसके बाद इस बिजली को पावर ग्रिड में भेजा जाता है।