भारत सरकार ने एक बड़ा प्रशासनिक बदलाव करने की घोषणा की है। अब देश में 'राजभवन' को आधिकारिक रूप से 'लोकभवन' के नाम से जाना जाएगा। गृह मंत्रालय के निर्देशों के बाद यह निर्णय तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है। उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों ने इस बदलाव की शुरुआत भी कर दी है। राज्यपालों ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की है। यह कदम सरकारी संस्थानों की छवि को अधिक जन-केंद्रित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
राज्यपालों ने अपनी पोस्ट में कहा कि यह नाम परिवर्तन न केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाला कदम है। आपको बता दें कि इससे पहले भी कई स्तरों पर नाम बदले गए हैं।
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लोकभवन, कोलकाता का पोस्ट
लोक भवन, कोलकाता ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर नाम बदलने की जानकारी दी। गवर्नर ने लिखा, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के बदलाव लाने वाले और प्रेरणा देने वाले नेतृत्व के साथ, जिसने समाज के सभी तबकों के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की है, जो VIKSIT BHARAT की ओर आगे बढ़ रहे शानदार समय में है। देश भर के राजभवनों और राजनिवासों का नाम एक साथ LOK BHAWAN और LOK NIWAS रखने का फैसला किया गया है, जैसा कि 25 नवंबर, 2025 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक नोटिफिकेशन में कहा गया है।
बदले गए कई सारे नाम
पिछले 10 वर्षों में नाम बदलने का सिलसिला तेजी से बढ़ रहा है, जो ब्रिटिश काल से चल रही विरासत को पीछे छोड़ने का प्रयास है। 2016 में पीएम आवास के नाम से इसकी शुरुआत हुई थी। पीएम आवास का नाम 7 रेसकोर्स रोड से बदलकर लोक कल्याण मार्ग किया गया था। इसके बाद राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ किया गया। अब पीएम ऑफिस का परिसर सेवा तीर्थ के रूप में जाना जाएगा और साथ ही केंद्रीय सचिवालय अब कर्तव्य भवन कहलाएगा जिसका मकसद यह याद दिलाना है कि पब्लिक सर्विस एक कमिटमेंट है, कोई पद नहीं।
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सरकार का संदेश
BJP की मानें तो यह पीएम मोदी के पब्लिक सर्विस के विजन का हिस्सा है। पीएम के नेतृत्व में ड्यूटी और ट्रांसपेरेंसी के मैसेज को मजबूत करने के लिए सरकारी काम की जगहों और पब्लिक जगहों के नाम बदले गए। इसके पीछे का तर्क यह है कि सरकार का काम लोगों की सेवा करना है।
एक BJP लीडर ने कहा कि ये बदलाव भले ही सिंबॉलिक लगें, लेकिन करीब से देखने पर यह एक बड़े आइडियोलॉजिकल बदलाव को दिखाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र अब पावर से ज्यादा जिम्मेदारी और स्टेटस से ज्यादा सेवा को महत्व देता है। उन्होंने कहा कि नाम बदलने का मतलब सोच बदलना भी है, क्योंकि संस्थाएं बोलती हैं। आज संस्थाएं सेवा, ड्यूटी और नागरिक-प्रथम शासन की भाषा बोलती हैं।
