देश की अदालतें कई साल पुराने केसों से भरी पड़ी हैं। चाहे निचली अदालतें हों या हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, हर जगह जज की कमी है और केस ज्यादा हैं। खुद सुप्रीम कोर्ट के पुराने न्यायाधीश भी इस मामले पर चिंता जता चुके हैं। इसी समस्या का समाधान लगातार खोजा भी जा रहा है। यही वजह है कि कई अदालतों में जजों की संख्या बढ़ाने पर भी काम जारी है। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट में लंबित पड़े मामलों का निपटारा करने के लिए टेंपरेरी यानी अस्थायी जजों की नियुक्ति की जाएगी। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 224A का संदर्भ लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐलान के बाद एक रोचक सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि आखिर हाई कोर्ट में अस्थायी जज कैसे नियुक्त किए जा सकते हैं। इस सवाल की वजह यही है कि अभी तक जजों की नियुक्ति के लिए कुछ तय पैमाने रहे हैं जिनको पूरा करने के बाद ही कोई शख्स हाई कोर्ट का जज बन सकता है।

 

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जिन अस्थायी जजों को हाई कोर्ट में नियुक्त किया जाएगा, वे उस बेंच में शामिल किए जाएंगे जिसमें स्थायी जज भी होंगे। इस तरह से बनने वाली बेंच अपराध से जुड़े मामलों का निपटारा करेंगी। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट में अपराध से जुड़े संबंधित अपीलों का पर्याप्त रूप से निपटारा नहीं हो पा रहा है। इस बेंच ने यह भी कहा कि 2021 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संशोधन की जरूरत है ताकि हाई कोर्ट में अस्थायी जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सके।

हर हाई कोर्ट में हजारों केस पेंडिंग

 

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि एक नई अपील पर औसतन 35 साल का समय लग रहा है। । इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में साल 2000 से 2021 के बीच आए केस की संख्या को देखा। इस डेटा के मुताबिक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में 21 साल में लगभग 1.7 लाख अपील दायर की गई हैं जबकि सिर्फ 31 हजार केस में ही फैसला सुनाया जा सका है। मौजूदा समय में भी अपराध से जुड़े मामलों की 63 हजार अपील इलाहाबाद हाई कोर्ट में, 20 हजार अपील पटना हाई कोर्ट में, 20 हजार अपील कर्नाटक हाई कोर्ट में और 21 हजार अपील पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं। 

 

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सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इतने मामलों का निपटारा करने के लिए अस्थायी जज नियुक्त किए जा सकते हैं। देश की सर्वोच्च अदालत का यह भी कहना है कि इस तरह के अस्थायी जज सिर्फ अपराध से जुड़े मामलों की सुनवाई कर सकेंगे, अन्य मामलों की नहीं। अस्थायी जज नियुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को 2021 में सुनाए गए एक फैसले में संशोधन करना होगा। इस फैसले में जजों की नियुक्ति के दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। अब बदलाव करने के लिए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से सलाह भी मांगी गई है।

अनुच्छेद 224A कैसे काम आएगा?

 

संविधान का अनुच्छेद 224 अतिरिक्त और कार्यकारी जजों की नियुक्ति से जुड़ा हुआ है। अनुच्छेद 224 (A) कहता है कि अगर देश के राष्ट्रपति को लगता है कि हाई कोर्ट का काम बढ़ गया है और कुछ समय के लिए जजों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए तो राष्ट्रपति अधिकतम दो साल के समय के लिए योग्य व्यक्तियों को इस पद पर नियुक्त कर सकते हैं।

 

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सुप्रीम कोर्ट का कहना है, 'हमने अलग-अलग हाई कोर्ट और भारत सरकार के हलफनामों में रखी गई अलग-अलग राय पर विचार किया है। हमें लगता है कि मौजूदा समय में अस्थायी जजों की नियुक्ति की जरूरत को देखते हुए यह जरूरी है कि हम कुछ दिशानिर्देश तैयार करें ताकि हाई कोर्ट के जजों को मदद मिल सके।'