पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने रूस और इजरायल के अलावा स्वदेशी निर्मित हथियारों और तकनीक का न केवल इस्तेमाल किया बल्कि इनके घातक हमले से दुनिया को हैरत में डाल दिया। चीन के एयर डिफेंस सिस्टम को भारतीय हथियार भेदने में सफल रहे। वहीं जिन तुर्किये के ड्रोनों की चर्चा दुनियाभर में खूब हो रही थी, वे भारतीय हथियारों के आगे ढेर होते दिखे। चीन की पीएल-15 मिसाइल भी भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम आकाश के सामने टिक नहीं सकी। पाकिस्तान के खिलाफ 4 दिन के संघर्ष में भारत ने दुनिया के सामने अपने स्वदेशी हथियारों की नुमाइश की। अब भारत के हथियार सिर्फ टेस्टेड ही नहीं बल्कि बैटल टेस्टेड हैं।

 चीन के अरमानों पर फिरा पानी

अमेरिका और यूरोप के बाद चीन सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बनना चाहता है। मगर पाकिस्तान में उसके हथियारों को भारत ने जैसे मात दिया है, उससे उसकी मंशा पर पानी फिर गया है। चीन के हथियार और एयर डिफेंस सिस्टम को खरीदने से पहले कोई भी देश सौ बार सोचेगा। यहां तक कि पाकिस्तान को भी शायद अब चीनी हथियारों पर भरोसा न रहे। पाकिस्तान की सेना चीन से खरीदे एच-क्यू9 डिफेंस सिस्टम के भरोसे थी। मगर चीन को खुद ही इस पर विश्वास नहीं है। तभी तो उसने रूस से एस-300 खरीद रखा है।  

 

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ब्रह्मोस ने पलटी बाजी

पाकिस्तान के 11 एयरबेस को उड़ाने में भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल किया था। सीजफायर के बाद भारत ने लखनऊ में एक और ब्रह्मोस उत्पादन सुविधा शुरू की है। पाकिस्तान के चीनी एयर डिफेंस सिस्टम के पास इस मिसाइल को रोकने की ताकत ही नहीं थी। ब्रह्मोस ने अपने सटीक हमलों से दुनिया का ध्यान अपनी ओर खीजा है। मिसाइल का उत्पादन भारत और रूस मिलकर करते हैं।ह एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। हवा, पानी और जमीन कहीं से भी इसे दागा जा सकता है। साल 2022 में भी भारत ने पाकिस्तान पर गलती से ब्रह्मोस मिसाइल दाग दी थी। तब भी पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम इसे रोक नहीं पाया था। 

 

  • दुनिया की सबसे तेज सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइलों में से एक।
  • आवाज की गति से लगभग 3 गुना तेज हमला करने में सक्षम।
  • 290 किमी तक बिल्कुल सटीक लक्ष्य भेदने की काबिलियत।
  • यूएवी की तरह ही मिसाइल के लक्ष्य को बदला जा सकता है।
  • ब्रह्मोस एयरोस्पेस कंपनी करती है इसका उत्पादन।

 

आसियान देशों के सहारे चीन को घेर सकता भारत

भारत अभी तक फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल बेच चुका है। फिलीपींस की चीन से नहीं बनती है। ऐसे में दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागीरी से परेशान देशों को भारत अपनी मिसाइल और एयर डिफेंस सिस्टम बेच सकता है। खासकर तब जब यह चीनी तकनीक के आगे अधिक घातक साबित हुए हैं। वियतनाम ने भी चीन से निपटने की खातिर भारत के ब्रह्मोस मिसाइल में दिलचस्पी दिखाई है। आसियान देशों में भारत चीन के खिलाफ अपना हथियार बाजार खड़ा कर सकता है, क्योंकि अधिकांश देश चीन के दबदबे से परेशान हैं। इंडोनेशिया ने भी ब्रह्मोस पर दिलचस्पी दिखाई है। इसके अलावा ब्राजील, अर्जेंटीना, चिली, सिंगापुर, थाईलैंड, सऊदी अरब, कतर, ओमान औरर संयुक्त अरब अमीरात इस रेस में शामिल हैं।

 

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आर्मेनिया और साइप्रस बन सकते विकल्प

भारत के खिलाफ तुर्किये और अजरबैजान ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया है। ऐसे में भारत तुर्किये के प्रतिद्वंद्वी साइप्रस और अजरबैजान के दुश्मन आर्मेनिया को अपने घातक हथियार बेच सकता है। भारत पहले ही आकाश एयर डिफेंस सिस्टम आर्मेनिया को बेच चुका है। अब भारत के सामने इन देशों को अपने बैटल टेस्टेड हथियार बेचने का न केवल शानदार विकल्प है, बल्कि तुर्किये और अजरबैजान को रणनीतिक मात देने का अवसर भी है।

 

अफ्रीका में कई अवसर

भारत एशिया और अफ्रीका के हथियार बाजार में चीन के घटिया क्वालिटी वाले हथियारों को मुद्दा बना हावी हो सकता है। चीन अफ्रीफी बाजार में अपने हथियारों को खापाने की कोशिश में है। कुछ समय पहले अफ्रीकी देशों में चीनी बाइक खूब दिखती थीं। मगर बाद में भारत की बाइक कंपनियों ने चीन के एकाधिकार को खत्म किया और अफ्रीकी देशों में छा चुकी हैं। इसके पीछे अच्छी गुणवत्ता प्रमुख वजह है। हथियार के मामले में भी भारत यही रणनीति अपना सकता है।

 

आकाश एयर डिफेंस सिस्टम

आकाश एक छोटी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल सिस्टम है। यह सिस्टम एक साथ कई टारगेट को निशाना बनाने में सक्षम है। 25 किमी के दायरे में यह मिसाइल, ड्रोन और फाइटर प्लेन तबाह कर सकता है। पाकिस्तान के खिलाफ आकाश ने अपनी शानदार क्षमता का प्रदर्शन किया। इसका नया वर्जन आकाश-एनजी है। इसकी रेंज 70-80 किमी तक होगी। मोबाइल सिस्टम होने की वजह से आकाश को तुरंत कहीं पर भी तैनात किया जा सकता है।

 

ड्रोन हब बनना चाहता है भारत

भारत का लक्ष्य 2030 तक देश को ग्लोबल ड्रोन हब बनाना है। अभी 550 से अधिक ड्रोन कंपनियां हैं। अनुमान के मुताबिक भारतीय ड्रोन बाजार 2030 तक 11 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह वैश्विक ड्रोन बाजार का 12.2 फीसदी होगा।

 

D-4 एंटी-ड्रोन सिस्टम 

मीडिया रिपोटर्स के मुताबिक भारत ने D-4 एंटी-ड्रोन सिस्टम का भी इस्तेमाल किया था। यह इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग और स्पूफिंग तकनीकों का इस्तेमाल करके साधारण ड्रोन के अलावा मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहनों को नष्ट करता है। इसमें दुश्मन के ड्रोन को नष्ट करने के लिए लेजर-आधारित किल मैकेनिज्म भी है।

 

  • भारत तापस-बीएच-201 और रुस्तम ड्रोन बना रहा है। इन ड्रोनों का मुख्य रूप से खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही उद्देश्यों में किया जाएगा।
  • भारत स्वार्म ड्रोन को बनाने में जुटा है। निजी फर्म के साथ मिलकर डीआरडीओ स्वार्म ड्रोन तकनीक पर काम करने में जुटा है।
  • डीआरडीओ घातक नाम से एक मानवरहित लड़ाकू हवाई वाहन (UCAV) विकसित करने जुटा है। यह मिसाइल दागने और बम गिराने में सक्षम होगा।
  • भारत नागास्त्र नाम से एक लोइटरिंग म्यूनिशन बनाने में जुटा है। यह ड्रोन पहले आसमान में घूमता है। जब वह लक्ष्य की सटीक पहचान कर लेता है तो एक साथ तेजी से हमला करता है।

बढ़ रहा भारत का रक्षा निर्यात

पिछले साल भारत ने रिकॉर्ड 24,000 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात किया। यह आकंड़ा 2013-14 की तुलना में 34 गुना ज्यादा है। अब लक्ष्य साल 2029 तक इस आंकड़े को 50000 करोड़ रुपये तक बढ़ाना है। आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 में स्वदेशी रक्षा उत्पादन रिकॉर्ड 1.27 लाख करोड़ तक पहुंच गया था। मौजूदा समय में भारत मिसाइलों और ड्रोन के अलावा धनुष आर्टिलरी गन सिस्टम, एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम, मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) अर्जुन, लाइट स्पेशलिस्ट व्हीकल, हाई मोबिलिटी व्हीकल, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (ALH), लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (LUH), आकाश मिसाइल सिस्टम, वेपन लोकेटिंग रडार, 3डी टैक्टिकल कंट्रोल रडार और सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (SDR) विध्वंसक, स्वदेशी विमान वाहक, पनडुब्बियां, फ्रिगेट, कोरवेट, फास्ट पेट्रोल वेसल, फास्ट अटैक क्रॉफ्ट और ऑफशोर पेट्रोल वेसल जैसी नौसैनिक उत्पादों को तैयार कर रहा है।