2025 में भारत 4.3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। यह उपलब्धि भारत की आर्थिक प्रगति का प्रतीक है, जो पिछले एक दशक से 6-7% की औसत वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ रही है। दूसरी ओर, चीन 19.5 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो भारत से लगभग साढ़े चार गुना बड़ी अर्थव्यवस्था है। दोनों देशों की आबादी और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में समानताएं होने के बावजूद, उनके आर्थिक विकास के रास्ते अलग हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, भारत की जीडीपी 2030 तक 6.8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है, जबकि चीन की उम्रदराज आबादी और कर्ज जैसे मुद्दे उसकी गति को धीमा कर सकते हैं। भारत का युवा श्रम बल और कम कर्ज-जीडीपी अनुपात (Debt-GDP Ratio) उसे लंबी अवधि में मजबूत बनाता है, जबकि चीन का मैन्युफैक्चरिंग और बुनियादी ढांचे पर भारी निवेश उसे वैश्विक व्यापार में बढ़त देता है।
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खबरगांव इस लेख में आपको बताएगा कि भारत और चीन के आर्थिक विकास मॉडल में क्या अंतर है? सुधारों के समय से लेकर, अलग अलग सेक्टरों के योगदान, बुनियादी ढांचा, जनसंख्या, और वित्तीय स्थिरता के बारे में इस लेख में तुलना करेंगे।
अर्थव्यवस्था मे कितना अंतर
चीन की अर्थव्यवस्था 2025 में लगभग $19.53 ट्रिलियन है, जिससे वह अमेरिका के बाद दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी हुई है, वहीं भारत की GDP अभी $4.27 ट्रिलियन है, लेकिन इसकी विकास दर चीन से ज़्यादा है।
Fitch Ratings ने भारत की मिड-टर्म ग्रोथ को 6.4% बताया है, जबकि चीन के लिए यह 4.3% है। एशियन डेवलेपमेंट बैंक (ADB) के मुताबिक 2025 में भारत की आर्थिक वृद्धि 7.0% रहेगी जबकि चीन की 4.5%।
इस तरह से भारत की अर्थव्यवस्था चीन की तुलना में अभी काफी छोटी है, लेकिन तेज़ी से बढ़ रही है। आने वाले वर्षों में भारत का योगदान वैश्विक विकास में और बढ़ेगा।
कब शुरू हुए आर्थिक सुधार
आर्थिक सुधारों के समय की बात करें तो चीन ने भारत से पहले और तेजी से आर्थिक सुधार शुरू किए, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी। चीन ने 1978 में डेंग शियाओपिंग के नेतृत्व में सुधार शुरू किए, जिसमें बाजार खोलना, निर्यात बढ़ाना और विदेशी निवेश शामिल था, जबकि भारत ने 1991 में आर्थिक सुधार शुरू किए, जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था।
चीन को 13 साल पहले शुरुआत का फायदा मिला। 1978 से 2014 तक चीन की अर्थव्यवस्था हर साल औसतन 10% की दर से बढ़ी, जबकि भारत की 6% की दर से। 2024 में चीन की जीडीपी 18.77 ट्रिलियन डॉलर थी, जबकि भारत की 3.91 ट्रिलियन डॉलर। क्रय शक्ति समता (PPP) में, चीन की जीडीपी 37.07 ट्रिलियन डॉलर थी, जो भारत की 16.02 ट्रिलियन डॉलर से 2.31 गुना ज्यादा थी। भारत के सुधार धीमे थे, क्योंकि देश की आजादी के बाद लाइसेंस राज जैसी कई बाधाएं थीं।
इंडस्ट्री बनाम सर्विस सेक्टर
चीन की अर्थव्यवस्था मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात पर आधारित है, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था सर्विस सेक्टर और घरेलू खपत पर। चीन को ‘दुनिया की फैक्ट्री’ कहा जाता है। 2024 में उसकी अर्थव्यवस्था का 30% हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग से आया। निर्यात-केंद्रित नीतियों, सस्ते श्रम और बुनियादी ढांचे ने इसे 2009 तक दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक बनाया।
2021 में चीन का वैश्विक व्यापार 6 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा था, जिसमें 80% हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग का था। भारत में 50% अर्थव्यवस्था सर्विस सेक्टर (जैसे आईटी, बैंकिंग, टेलीकॉम) से आती है। मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा सिर्फ 20% है। भारत की अर्थव्यवस्था में 58% हिस्सा घरेलू खपत से आता है, जबकि चीन में यह 38% है। 2022 में भारत की घरेलू खपत 2.1 ट्रिलियन डॉलर थी, जो चीन की 6.6 ट्रिलियन से एक-तिहाई थी। भारत का आईटी निर्यात तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में वह चीन से पीछे है।
बुनियादी ढांचे में निवेश
चीन ने बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है, जबकि भारत का निवेश इस सेक्टर में कम रहा है। चीन ने 1990 से 2014 तक अपनी जीडीपी का 45-50% हिस्सा बुनियादी ढांचे (जैसे रेल, हवाई अड्डे, बंदरगाह) में लगाया, जबकि भारत ने 22-30%। इस निवेश ने चीन को मैन्युफैक्चरिंग और व्यापार में बढ़त दी। 2024 में चीन की अर्थव्यवस्था 19.5 ट्रिलियन डॉलर थी, और 2007 में उसका व्यापार वृद्धि (433 बिलियन डॉलर) भारत के कुल व्यापार से ज्यादा थी। भारत में बुनियादी ढांचे की कमी (जैसे बिजली, सड़कें) एक चुनौती है। 2024 में भारत ने जीडीपी का 3% बुनियादी ढांचे पर खर्च किया, जबकि चीन ने 9%।
हालांकि, भारत की योजनाएँ जैसे PLI स्कीम और सूर्योदय योजना प्रगति दिखाती हैं। भारत का टेलीकॉम सेक्टर 1991 में 5 मिलियन लाइनों से बढ़कर 2023 में 200 मिलियन से ज्यादा हो गया, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग के लिए भौतिक ढांचा अभी कमजोर है।
डेमोग्राफी में अंतर
भारत की युवा आबादी अभी भविष्य में फायदा देगी, जबकि चीन की उम्रदराज आबादी उसके लिए एक चुनौती बनती जा रही है। भारत की औसत आयु 28 साल है, जबकि चीन की 39 साल। भारत की कामकाजी आबादी 2060 तक बढ़ेगी, जबकि चीन की आबादी कम हो रही है (जन्म दर 6.4 प्रति 1,000)। 2050 तक भारत की आबादी 1.7 बिलियन होगी। इससे भारत की जीडीपी 2025 में 6.5% और 2026 में 6.3% बढ़ेगी, जो चीन के 4% से ज्यादा है।
चीन की एक बच्चा नीति ने उसकी प्रति व्यक्ति आय को 1980 से 1998 तक सात गुना बढ़ाया ($3117 बनाम भारत का $1760), लेकिन अब उसकी श्रम शक्ति घट रही है। भारत के 63 मिलियन MSME 111.4 मिलियन लोगों को रोजगार देते हैं, जो जीडीपी का 35% हिस्सा है। लेकिन भारत में रोजाना 1,000-1,100 नए उद्यम शुरू होते हैं, जबकि चीन में 16,000-18,000।
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सरकारी नियंत्रण बनाम प्राइवेटाइजेशन
चीन की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से सरकार द्वारा नियंत्रित है, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था मार्केट रेग्युलेटेड है। सरकार की योजनाएं जैसे "Made in China 2025" और "Dual Circulation" मैन्युफैक्चरिंग ज्यादा से ज्यादा घरेलू बाजार को कैप्चर करने पर ज़ोर देती हैं। चीन की सरकार अब भी बड़ी कंपनियों (जैसे बैंक, टेलीकॉम, इंफ्रास्ट्रक्चर) पर पूरी तरह से नियंत्रण रखती है।
वहीं भारत की बात करें तो भारत की अर्थव्यवस्था निजी कंपनियों और बाजार पर आधारित है। सरकार की "आत्मनिर्भर भारत" योजना स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देती है। भारत वैश्विक कंपनियों के लिए "चीन के विकल्प" (China Plus One) के रूप में उभर रहा है।
कर्ज कितना?
भारत का कर्ज-जीडीपी अनुपात कम है, जो उसे वित्तीय लचीलापन देता है, जबकि चीन का कर्ज ज्यादा है। 2022 में भारत का कर्ज-जीडीपी अनुपात 172.7% था, जबकि चीन का लगभग 300%। चीन का ज्यादा कर्ज बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट से आया, जो अब जोखिम पैदा कर रहा है।
भारत का सरकारी कर्ज-जीडीपी अनुपात जर्मनी के बाद सबसे कम है। IMF के अनुसार, भारत की जीडीपी 2027 तक 5.07 ट्रिलियन डॉलर होगी। भारत की जीडीपी 2015 के 2.1 ट्रिलियन से 2025 में 4.3 ट्रिलियन तक 103.1% बढ़ी। चीन की जीडीपी में 76% वृद्धि हुई, लेकिन उसका कर्ज और घटती श्रम शक्ति चुनौती है। भारत की कम कर्ज नीति उसे लंबे समय तक तेज विकास की संभावना देती है।
2025 में भारत के चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से उसकी प्रगति साफ दिखती है। चीन ने जल्दी सुधारों, मैन्युफैक्चरिंग और बुनियादी ढांचे से 19.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाई, लेकिन उसकी उम्रदराज आबादी और कर्ज चुनौतियाँ हैं। भारत की सर्विस-आधारित, घरेलू खपत वाली अर्थव्यवस्था, युवा आबादी और कम कर्ज के साथ तेजी से बढ़ रही है। 2030 तक भारत की जीडीपी 6.8 ट्रिलियन डॉलर हो सकती है। चीन की तरह स्केल हासिल करने के लिए भारत को मैन्युफैक्चरिंग और बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना होगा।
