भारत 2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी करेगा। स्कॉटलैंड के ग्लासगो में कॉमनवेल्थ की स्पोर्ट्स जनरल असेंबली में इसे मंजूरी दी गई। अब 2030 में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन अहमदाबाद में होगा। जैसे ही भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी सौंपी गई, वैसे ही 20 गरबा डांसरों और 30 ढोल बजाने वालों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। आखिरी बार 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स हुए थे।
कॉमनवेल्थ गेम्स में 70 से ज्यादा देशों के खिलाड़ी हिस्सा लेंगे। इतना ही नहीं, 2030 के गेम्स में 15 से 17 नए खेल भी शामिल किए जाएंगे।
एथलेटिक्स और पैरा एथलेटिक्स, स्विमिंग और पैरा स्विमिंग, टेबल टेनिस और पैरा टेबल टेनिस, बाउल्स और पैरा बाउल्स, वेटलिफ्टिंग और पैरा पावरलिफ्टिंग, आर्टिस्टिक जिमनास्टिक्स, नेटबॉल और बॉक्सिंग तो होगी। इनके अलावा आर्चरी, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, टी20 क्रिकेट, साइकिलिंग, डाइविंग, हॉकी, जूडो, शूटिंग और रेसलिंग जैसे कई नए खेल भी शामिल किए जा सकते हैं। होस्ट कंट्री दो नए या पारंपरिक खेलों का भी प्रस्ताव दे सकती है।
मेजबानी मिलने के बाद जहां गुजरात सरकार बोल रही है कि 2030 से पहले सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया जाएगा। वहीं, सोशल मीडिया पर ऐसे दावे भी किए जा रहे हैं कि कॉमनवेल्थ करवाना घाटे का सौदा होता है। दावा किया जा रहा है कि मेजबानी की लड़ाई सिर्फ भारत और नाइजीरिया के बीच थी, जिसमें भारत ने बाजी मार ली। क्या ऐसा है? समझेंगे लेकिन पहले जानते हैं कि मेजबानी मिलने के बाद अब भारत को क्या करना होगा?
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भारत को क्या करना होगा?
भारत को अब कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा। ग्लासगो में भारतीय अधिकारियों ने बताया कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए समय से पहल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया जाएगा।
गुजरात सरकार में प्रमुख सचिव (खेल) अश्विनी कुमार ने कहा, 'हम अच्छी तरह तैयार हैं। फंडिंग मिल गई है। बजट पर ध्यान से काम किया जा रहा है। ज्यादातर वेन्यू पहले से ही तैयार हैं। हमें पूरा भरोसा है कि हम ऐसे गेम्स कराएंगे जिन्हें आने वाले सालों में याजद किया जाएगा।'
उन्होंने कहा, 'हमारे पास अभी भी कुछ वेन्यू हैं जहां आज कॉमनवेल्थ गेम्स हो सकते हैं। बस थोड़ा-बहुत बदलाव किया जा सकता है। हम जो नए वेन्यू बनाने जा रहे हैं, वे 2028 के आखिर या 2029 की शुरुआत तक पूरे हो जाएंगे।'
उन्होंने बताया कि दो बड़े स्पोर्ट्स प्रोजेक्ट बनने जा रहे हैं। उन्होंने कहा, 'हम दो बड़े स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट लाने जा रहे हैं। एक है सरदार वल्लभ भाई पटेल स्पोर्ट्स एन्क्लेव। इसमें एरिना, एक्वेटिक फैसिलिटी और टेनिस कोर्ट होगा। हम पुलिस एकेडमी स्पोर्ट्स हब भी बनाने जा रहे हैं, जिसमें एथलेटिक्स स्टेडियम, शूटिंग सेंटर, एरिना और हाई परफॉर्मेंस सेंटर होगा।'
उन्होंने कहा, 'अप्रैल 2026 तक कंस्ट्रक्शन शुरू हो जाएगा और इसे 2028 के आखिर या 2029 की शुरुआत तक पूरा कर लेंगे। हम अक्टूबर 2029 में वर्ल्ड पुलिस और फायर गेम्स भी होस्ट करने जा रहे हैं, जिसमें दुनियाभर से साढ़े 9 हजार से ज्यादा फायर और पुलिस वाले हिस्सा लेंगे।' उन्होंने कहा कि इन सबका मकसद अहमदाबाद को भारत की स्पोर्ट्स कैपिटल बनाना है और इसे 2036 के ओलंपिक के लिए दिखाना है।
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लेकिन क्या ये घाटे का सौदा है?
भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी मिलना बड़ी कामयाबी मानी जा रही है। हालांकि, सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सवाल उठा रहे हैं कि इसकी जरूरत क्या थी?
ओपन लेटर नाम के X अकाउंट से एक पोस्ट की गई है। इसमें पूछा गया है- 'भारत 2030 कॉमनवेल्थ गेम्स होस्ट करेगा। सवाल बस इतना है- क्यों? पिछला जो हमने होस्ट किया था, वह एक बहुत बड़ा स्कैम बन गया।'
पोस्ट में दावा करते हुए लिखा गया है, 'लगभग हर बार होस्ट देश को इससे बहुत कम या कोई फायदा नहीं होता और खर्च बहुत बड़ा हो जाता है। 2026 का ओरिजिनल होस्ट पीछे हट गया। मलेशिया को ऑफर किया गया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया। अब स्कॉटलैंड इसका छोटा वर्जन होस्ट कर रहा है।'
आगे लिखा गया है, 'कोई भी देश इसे होस्ट नहीं करना चाहता। 2030 की मेजबानी के लिए सिर्फ भारत और नाइजीरिया ने अप्लाई किया था। तो हां, हम ऐसा क्यों करना चाहते हैं?'
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क्या ऐसा सच है?
दुनिया में पहली बार कॉमनवेल्थ गेम्स 1930 में कनाडा के हैमिल्टन में हुए थे। तब इसे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स कहा जाता था। तब से ही हर 4 साल में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन किया जाता है।
कॉमनवेल्थ गेम्स को हमेशा बहुत खर्चीला माना जाता है। यूके की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी ने 2023 में कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर एक स्टडी छापी थी। इसमें कहा गया था कि बड़े-बड़े स्पोर्ट्स इवेंट में औसतन खर्चा अनुमान से 170% ज्यादा हो जाता है। यानी कि खर्च का अंदाजा जो लगाया जाता है, उससे कई गुना ज्यादा हो जाता है।
यही कारण है कि अब दुनियाभर के देश कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी लेने से बच रहे हैं। 2026 के कॉमनवेल्थ गेम्स ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में होने थे। मगर बाद में विक्टोरिया ने इससे इनकार कर दिया। विक्टोरिया के प्रीमियर डेनियल एंड्र्यू ने कहा था, 'इसका अनुमानित खर्च पहले 2.6 अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर था, जो असल में बढ़कर दोगुने से भी ज्यादा हो गया। सच कहूं तो 12 दिन के इवेंट के लिए 6-7 अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर? हम ऐसा नहीं कर रहे हैं।'
मलेशिया को मेजबानी करने को कहा गया लेकिन उसने भी मना कर दिया। अब ग्लासगो में ही 2026 के कॉमनवेल्थ गेम्स होंगे। ग्लासगो में यह छोटे स्तर पर होगा, जिसमें सिर्फ 10 गेम ही होंगे। खर्च की वजह से शूटिंग, आर्चरी, हॉकी और बैडमिंटन जैसे खेलों को शामिल नहीं किया गया है।
असल में कॉमनवेल्थ जैसे मेगा स्पोर्ट्स इवेंट के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बहुत खर्चा होता है लेकिन बाद में इसका कोई खास इनपुट नहीं निकलता।

अब 2010 में भारत ने जब आखिरी बार कॉमनवेल्थ गेम्स होस्ट किया था तो इस पर 1,600 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया था। मगर खर्च हुआ था 70 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा। तभी इसमें घोटाले का आरोप भी लगा था।
हालांकि, ऐसा नहीं है कि कॉमनवेल्थ जैसे गेम्स को होस्ट करने से सिर्फ नुकसान ही होता है। कई बार इसका फायदा भी होता है। उदाहरण के लिए 2018 में ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स हुए थे। तब इस पर लगभग 95 करोड़ यूरो खर्च हुआ था लेकिन इससे लगभग 190 करोड़ रुपये से ज्यादा का आर्थिक फायदा होने का अनुमान है। इसी तरह 2022 में बर्मिंघम में जब इसे किया गया था तो इससे बर्मिंघम की अर्थव्यवस्था को 10 करोड़ यूरो का फायदा पहुंचा था।
