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रिटायरमेंट के बाद जजों के लिए राजनीति में आने को लेकर संविधान में क्या हैं नियम?

देश में जजों के राजनीति में आने पर लगातार बहस होती रही है। यही सवाल पूर्व CJI बीआर गवई से भी पूछा गया। समझते हैं कि संविधान में इसे लेकर क्या नियम मौजूद हैं? 

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प्रतीकात्मक तस्वीर, AI Generated Image

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देश में अक्सर इस बात पर बहस होती है कि न्यायाधीशों को राजनीति में शामिल होना चाहिए या नहीं? सवाल है कि संविधान में जजों के राजनीति में शामिल या रिटायरमेंट के बाद कोई पद संभालने को लेकर क्या नियम है? हाल ही में राजनीति में शामिल होने को लेकर एक सवाल पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई से भी पूछा गया। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि मैंने इसके बारे में नहीं सोचा है। मैंने अभी कुछ नहीं करने का फैसला लिया है। 

 

पूर्व CJI एक टीवी चैनल को इंटरव्यू दे रहे थे जहां उनसे पूछा गया, 'आपने कहा था कि रिटायरमेंट के बाद आप जॉब नहीं लेंगे। क्या इस बात की संभावनाएं हैं कि आप राजनीति में आ सकते हैं?' इस पर उन्होंने कहा, 'जहां तक मुझे लगता है, मैं किसी भी ट्रिब्यूनल के प्रमुख का पद स्वीकार नहीं करूंगा। मैं गर्वनर का पद, राज्यसभा में नॉमिनेटेड पद स्वीकार नहीं करूंगा। इस बारे में मैं बहुत साफ हूं।'

 

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संविधान में जजों के लिए मौजूद नियम

भारतीय संविधान में न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट (SC) और हाई कोर्ट (HC)) के न्यायाधीशों के कार्यकाल के बाद की गतिविधियों को लेकर नियम मौजूद है। इसमें केवल वकालत पर स्पष्ट संवैधानिक प्रतिबंध है।

  • संविधान का अनुच्छेद 124(7) स्पष्ट रूप से कहता है कि SC का कोई भी जज रिटायरमेंट के बाद भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी कोर्ट या किसी ट्रिब्यूनल में वकालत नहीं कर सकता।
  • अनुच्छेद 220 HC के जज रिटायरमेंट के बाद केवल SC और उन HC में वकालत करने की अनुमति देता है, जहां उन्होंने पहले जज के रूप में काम नहीं किया था।

नियुक्तियों पर नैतिक बहस

  • राजनीति में शामिल होने या संवैधानिक/कानूनी पदों पर नियुक्त होने पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं है, इसलिए जजों को अक्सर राजनीतिक या कार्यकारी पदों पर नियुक्त किया जाता रहा है।
  • 14वें विधि आयोग (14th Law Commission) ने 1958 में अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि जजों को रिटायरमेंट के बाद सरकारी नौकरी स्वीकार नहीं करनी चाहिए ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहे।
  • न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अक्सर यह मांग उठती है कि रिटायरमेंट के बाद 'कूलिंग-ऑफ' पीरियड (जैसे 2 वर्ष) होनी चाहिए, जिसके दौरान जज कोई भी सरकारी पद स्वीकार न करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनके अंतिम फैसले किसी राजनीतिक फायदे के कारण न लिया गया हों।  

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राजनीति में शामिल हुए प्रमुख जज

  • रंजन गोगोई: भारत के पूर्व CJI, जिन्होंने अपनी रिटायरमेंट के तुरंत बाद राज्यसभा के सदस्य (सांसद) के रूप में शपथ ली थी।
  • अभिजीत गंगोपाध्याय: कलकत्ता HC के जज थे, जिन्होंने मार्च 2024 में पद से इस्तीफा देकर सक्रिय राजनीति में शामिल होने की घोषणा की।
  • बहरुल इस्लाम: वे कांग्रेस पार्टी के नेता, न्यायाधीश बने और फिर इस्तीफा देकर राज्यसभा सांसद बने।
  • के. एस. हेगड़े: SC के जज, जिन्होंने इस्तीफा देने के बाद लोकसभा का चुनाव लड़ा और बाद में लोकसभा अध्यक्ष भी बने।

ये सारे उदाहरण यह दिखाते हैं कि पद से इस्तीफे या रिटायरमेंट के बाद जजों को राजनीति में शामिल होना पूरी तरह से संविधान के अनुरूप है। जजों के इस तरह के फैसले न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के संबंध में नैतिक बहस का विषय बना रहता है। 


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