वक्फ (संशोधन) अधिनियम के संसद से पास होने के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। 17 अप्रैल को सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 7 दिन का समय दिया था। अब केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि इस मामले पर जानबूझकर झूठ फैलाया जा रहा है और अदालत को गुमराह किया जा रहा है। केंद्र सरकार का कहना है कि कानून में यह स्थापित है कि कोई भी संवैधानिक अदालत किसी भी तरह के वैधानिक प्रावधान पर रोक नहीं लगाएगी। केंद्र सरकार ने अपने एफिडेविट में 'वक्फ बाय यूजर' के बारे में कहा है कि इसको लेकर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि जिनके पास अपना दावा साबित करने के कागज नहीं होगे, वे इससे प्रभावित होंगे। केंद्र सरकार का कहना है कि यह बात झूठ है और सिर्फ रजिस्ट्रेशन की शर्त ही जरूरी है।

 

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर करके वक्फ कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब इस कानून के 3 प्रावधानों पर अंतरिम आदेश जाने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि, तब केंद्र सरकार ने इसके लिए 7 दिन का वक्त मांगा था। तब सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि इस दौरान सेंट्रल वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्ड में कोई नई नियुक्ति नहीं नहीं होगी। साथ ही, वक्फ बाय यूजर की संपत्ति भी वक्फ की संपत्ति ही रहेगी और उसे डिनोटिफाई नहीं किया जाएगा। अब इसी सब पर केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है।

 

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केंद्र सरकार ने क्या-क्या कहा?

 

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के मामले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर किसी भी तरह की कोई रोक लगाने का विरोध किया है। केंद्र सरकार ने अपना तर्क रखा है कि कानून में यह स्थापित बात है कि कोई भी संवैधानिक अदालत किसी भी तरह के वैधानिक प्रावधानों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से कोई रोक नहीं लगाएगी।

 

 

वक्फ बाय यूजर पर स्पष्टीकरण

 

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि 'वक्फ बाय यूजर' के वैधानिक संरक्षण को हटाने का मतलब यह नहीं है कि किसी मुस्लिम शख्स को वक्फ बनाने से रोका जाएगा। इस एफिडेविट में आगे कहा गया है कि जानबूझकर और सोच समझकर बेहद शरारतपूर्ण ढंग से ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि जिन वक्फ के पास दावा साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं होंगे, वे इससे प्रभावित होंगे। केंद्र सरकार ने कहा है कि यह न सिर्फ झूठ है बल्कि इसके जरिए जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश भी की जा रही है।

 

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केंद्र सरकार ने आगे कहा है कि सेक्शन 3 (1)(r) के तहत 'वक्फ बाय यूजर' वाला संरक्षण लेने के लिए किसी भी तरह का ट्रस्ट, डीड या अन्य दस्तावेज सबूत के तौर पर नहीं मांगा जा रहा है। इसके लिए सिर्फ एक शर्त यह है कि 8 अप्रैल 2025 तक ऐसी संपत्तियों का रजिस्टर्ड होना जरूरी है क्योंकि पिछले 100 सालों से भी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य रहा है।

 

केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि जो संशोधन किए गए हैं, वे संपत्तियों के प्रबंधन में धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करने के लिए हैं, इसलिए वे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करते हैं। अपने जवाब में केंद्र ने लिखा है, 'वक्फ (संशोधन) कानून 2025 पूरी तरह से धर्म निरपेक्षता के दायरे में है। यह किसी भी तरह से इस्लाम की मूल जरूरतों, परंपराओं या प्रार्थना पद्धति का उल्लंघन नहीं करता है।'

 

गैर मुस्लिमों को शामिल करने पर क्या कहा?

 

सेंट्रल वक्फ काउंसिल और राज्यों के वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने के बारे में केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है, 'सेंट्रल वक्फ काउंसिल की भूमिका सिर्फ सलाह तक है और यह किसी भी तरह से किसी जमीन के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है। धर्मनिरपेक्ष स्टेट बोर्ड के पास रेगुलेटरी शक्तियां हैं। ऐसे कई कानूनी फैसले भी हैं जिनमें कहा गया है कि वक्फ बोर्ड सिर्फ मुस्लिम संस्था नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है।' 

 

केंद्र ने कहा है कि इससे मुस्लिमों के अधिकारों पर कहीं से कोई फर्क नहीं पड़ता है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि इन बदलावों से इन संस्थाओं में मुस्लिम अल्पसंख्यक भी नहीं होने वाले हैं। सेंट्रल वक्फ काउंसिल में 22 में अधिकतम 4 गैर मुस्लिम हो सकते हैं और वक्फ बोर्ड में 11 में अधिकतम 3 गैर मुस्लिम।