ISRO के पूर्व चीफ के. कस्तूरीरंगन का शुक्रवार को उनके बेंगलुरु स्थित आवास पर निधन हो गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की ओर से जारी जानकारी के अनुसार, उनका देहांत सुबह 10 बजकर 43 मिनट पर हुआ।
इसरो द्वारा जारी बयान में यह भी बताया गया है कि आम जनता उनके अंतिम दर्शन कर सके, इसके लिए उनका पार्थिव शरीर रविवार, 27 अप्रैल को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक बेंगलुरु के रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में रखा जाएगा।
डॉ. कस्तूरीरंगन भारत के एक प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे। उन्होंने इसरो, स्पेस कमीशन और अंतरिक्ष विभाग का नेतृत्व करीब नौ सालों तक किया। इसरो प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को कई बड़ी सफलताएं मिलीं।
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पीएम मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री मोदी ने भी डॉ. के. कस्तूरीरंगन के निधन पर शोक जताते हुए लिखा कि 'भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और शिक्षाविद् डॉ. के. कस्तूरीरंगन जी के निधन से मुझे गहरा दुख हुआ है। वह भारत की वैज्ञानिक प्रगति और शिक्षा के क्षेत्र में एक महान व्यक्तित्व थे। उनके महान विजन और देश के प्रति निस्वार्थ सेवा को हमेशा याद किया जाएगा।
डॉ. कस्तूरीरंगन ने इसरो (ISRO) के साथ मेहनत और लगन से काम किया, जिससे भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। उनके नेतृत्व में भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। उनके कार्यकाल में कई महत्वाकांक्षी उपग्रह प्रक्षेपण हुए और नवाचार पर विशेष ध्यान दिया गया।'
कौन थे डॉ. के. कस्तूरीरंगन?
डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के एक प्रमुख वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा विज्ञान और तकनीक के उत्थान में समर्पित किया। वह न सिर्फ ISRO-भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष रहे, बल्कि योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी उन्होंने राष्ट्रीय विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ. कस्तूरीरंगन ने 2003 तक नौ वर्षों से अधिक समय तक ISRO, अंतरिक्ष आयोग और भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में भारत ने PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) और JSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) जैसे लॉन्च शिप्स को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा। इसके साथ ही उन्होंने इनसैट और आईआरएस सैटेलाइट की अगले जनरेशन के विकास की निगरानी भी की।
इससे पहले, उन्होंने इसरो सैटेलाइट सेंटर के निदेशक के रूप में कार्य किया और भास्कर-I व II जैसे शुरुआती अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट के विकास में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक और फिर फिजिक्स में मास्टर्स की पढ़ाई की थी। बाद में उन्होंने एस्ट्रोफिजिक्स में पीएचडी की।
उनकी वैज्ञानिक रुचि एक्स-रे और गामा-रे खगोल विज्ञान में रही। उन्होंने एस्ट्रोफिजिक्स और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में 200 से ज्यादा रिसर्च पेपर प्रकाशित किए और कई पुस्तकों का संपादन भी किया।
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डॉ. कस्तूरीरंगन कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों के सदस्य रहे। वह भारतीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष और विज्ञान कांग्रेस के महासचिव भी रह चुके हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, आईआईटी मद्रास और कई दूसरे संस्थाओं में नेतृत्व पदों पर भी कार्य किया।
उनकी सेवाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान शामिल हैं। इसके अलावा, उन्हें विक्रम साराभाई प्रेरणा पुरस्कार, शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, एम.एन. साहा शताब्दी पदक, गोयल पुरस्कार, आर्यभट्ट पुरस्कार और थिओडोर वॉन कर्मन अवार्ड जैसे कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिले।