ऑपरेशन सिंदूर के बाद अगर किसी मिसाइल की चर्चा सबसे अधिक हो रही है तो वह है ब्रह्मोस मिसाइल है। रूस की स्टेट मीडिया ने हाल ही में उन देशों की लिस्ट जारी की है, जो भारत और रूस के संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को खरीदने में रुचि दिखा रहे है। यह मिसाइल अपनी रफ्तार (मैक 2.8-3.5), सटीकता और मल्टी-प्लेटफॉर्म (जमीन, समुद्र, हवा, और पनडुब्बी) से लॉन्च होने की क्षमता के लिए जानी जाती है। फिलीपींस ने वर्ष 2022 में इसे खरीदा था और अब कई अन्य देश भी इसे अपने हथियारों में शामिल करना चाहते हैं। ऐसे में आइये जानें उन 15 देशों के बारे में जिसने ब्रह्मोस मिसाइल में दिलचस्पी दिखाई है।
वियतनाम
यह तो सभी जानते हैं कि वियतनाम का दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ विवाद है। ब्रह्मोस की तेज गति और सटीक हमले की क्षमता इसे चीन के जहाजों और ठिकानों के खिलाफ प्रभावी बनाती है। वियतनाम पहले से ही भारत के साथ बातचीत में है और यह डील जल्द हो सकती है।
इंडोनेशिया
इंडोनेशिया भी दक्षिण चीन सागर में अपनी समुद्री सीमाओं को मजबूत करना चाहता है। ब्रह्मोस को अपने सुखोई Su-30 विमानों पर तैनात करने की योजना है। साल 2023 में 200 मिलियन डॉलर के सौदे की बात चल रही थी और 2025 में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान सौदा पक्का हो सकता है।
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संयुक्त अरब अमीरात (UAE)
यूएई अपनी रक्षा को और मजबूत करना चाहता है, खासकर मीडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव के बीच। भारत और रूस के साथ अच्छे रिश्ते इसे सौदा करने में आसानी दे रहे हैं। यूएई के साथ बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है और 2016 में सौदे की उम्मीद जताई गई थी।
फिलीपींस
फिलीपींस ने साल 2022 में 375 मिलियन डॉलर में ब्रह्मोस की तट-आधारित एंटी-शिप मिसाइल खरीदी थी, ताकि दक्षिण चीन सागर में चीन के खिलाफ रक्षा मजबूत हो। पहले ही खरीद चुका है और अब अतिरिक्त मिसाइलों के लिए बातचीत कर रहा है।
थाईलैंड
थाईलैंड अपनी नौसेना और वायुसेना को आधुनिक बनाना चाहता है। ब्रह्मोस इसे क्षेत्रीय खतरों से निपटने में मदद कर सकता है। थाईलैंड की भी भारत के साथ शुरुआती बातचीत चल रही है।
मलेशिया
मलेशिया भी दक्षिण चीन सागर में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। ब्रह्मोस की कम ऊंचाई पर उड़ान और तेज गति इसे रडार से बचने में मदद करती है। मलेशिया की भारत से वर्ष 2016 से बातचीत चल रही है।
सिंगापुर
सिंगापुर अपनी छोटी लेकिन अत्याधुनिक सेना को और मजबूत करना चाहता है। ब्रह्मोस इसकी रक्षा रणनीति में फिट बैठता है। सिंगापुर ने रुचि दिखाई है लेकिन सौदा अभी शुरुआती चरण में है।
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ब्रुनेई
ब्रुनेई दक्षिण चीन सागर में अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए ब्रह्मोस को उपयोगी मानता है। इस देश ने भी रुचि व्यक्त की है लेकिन कोई ठोस सौदा नहीं हुआ है।
चिली
चिली अपनी नौसेना को मजबूत करने के लिए ब्रह्मोस जैसे उन्नत हथियार चाहता है। चिली और भारत की 2016 में बातचीत शुरू हुई थी और इसे खरीदने की रुचि बनी हुई है।
अर्जेंटीना
दक्षिण अमेरिका में क्षेत्रीय स्थिरता के लिए, अर्जेंटीना अपनी रक्षा क्षमता बढ़ाना चाहता है। हाल के एक्स पोस्ट्स में रुचि की बात सामने आई है।
ब्राजील
ब्राजील अपनी नौसेना और वायुसेना को आधुनिक बनाना चाहता है। ब्रह्मोस इसे लैटिन अमेरिका में रक्षा बढ़ाने में मदद कर सकता है। ब्राजील ने रुचि दिखाई है और बातचीत शुरुआती दौर में है।
वेनेजुएला
वेनेजुएला क्षेत्रीय तनाव और अमेरिका के साथ संबंधों के कारण अपनी रक्षा को मजबूत करना चाहता है। 2016 से वेनेजुएला इसे खरीदने की रुचि दिखा रहा है।
मिस्र
मिस्र अपनी सेना को आधुनिक बनाना चाहता है और भारत के साथ बढ़ते रक्षा सहयोग का फायदा उठाना चाहता है।
सऊदी अरब
सऊदी अरब मध्य पूर्व में अपनी रक्षा को और मजबूत करना चाहता है। भारत के साथ अच्छे रिश्ते इसे सौदा करने में मदद कर सकते हैं।
कतर
मध्य पूर्व में क्षेत्रीय चुनौतियों के बीच कतर अपनी रक्षा क्षमता बढ़ाना चाहता है।
ब्रह्मोस मिसाइल की खासियत
ब्रह्मोस मिसाइल की रफ्तार की बात करें तो मैक 2.8-3.5 (ध्वनि से 3 गुना तेज), जिससे इसे रोकना मुश्किल है। इसकी रेंज 450-800 किमी तक है। भविष्य में इसकी रेंज 1500 किमी तक हो सकती है।
यह जमीन, समुद्र, हवा और पनडुब्बी से लॉन्च हो सकता है। यह 1 मीटर तक सटीक निशाना लगाता है जिससे यह दुश्मन के ठिकानो को आसानी से नष्ट कर सकता है। इसका 200-300 किलो का वारहेड भारी नुकसान पहुंचाता है। भारत के DRDO और रूस के NPO Mashinostroyeniya ने मिलकर इसे तैयार किया गया है।
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क्यों है इतनी डिमांड?
ब्रह्मोस की सुपरसोनिक स्पीड और कम ऊंचाई पर उड़ान इसे रडार से बचने और दुश्मन के जहाजों या ठिकानों को नष्ट करने में सक्षम बनाती है। दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इसकी डिमांड ज्यादा हैं। मीडिल ईस्ट में भी क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियां हैं। 300 मिलियन डॉलर की लागत से विकसित यह मिसाइल अन्य पश्चिमी मिसाइलों की तुलना में सस्ती और प्रभावी है।